आजकल अधिकतर वित्तीय सलाहकार हमेशा से यही सलाह देते हैं कि इक्विटी फंड में निवेश का लक्ष्य छोटी अवधि के बजाय लंबी अवधि का होना चाहिए क्योंकि जितने लंबे समय के लिए निवेश करेंगे, रिटर्न उतना ही बेहतर होता है. विशेषज्ञों के अनुसार लंबी अवधि का लक्ष्य रखने से बाजार के उतार-चढ़ाव का निवेश पर ज्यादा असर नहीं होता और बाजार का जोखिम इसमें कवर हो जाता है. क्रिसिल ने भी अपने रिसर्च में कहा है कि लंबी अवधि के निवेश से निगेटिव रिटर्न का खतरा न के बराबर हो जाता है. रिपोर्ट के अनुसार सही म्यूचुअल फंड का चुनाव कर लंबी अवधि के लिए लक्ष्य तय करें, तो एसआइपी के जरिये आप मोटी रकम जुटा सकते हैं.
क्रिसिल ने अपनी रिसर्च में और भी कई रोचक निष्कर्ष दिये हैं. रिसर्च में क्रिसिल-एम्फी इक्विटी फंड प्रदर्शन इंडेक्स के पिछले 15 साल से जून 2019 तक के प्रदर्शन को आधार बनाया गया है. इसमें देखा गया है कि 15 साल में 5,000 रुपये हर महीने एसआइपी के आधार पर इक्विटी फंडों का में निवेश करने पर उनका प्रदर्शन कैसा रहा. इंडेक्स में लार्ज-कैप इक्विटी, लार्ज-कैप और मिडकैप इक्विटी, मल्टी-कैप, मिडकैप, स्मॉल-कैप इक्विटी, फोकस्ड इक्विटी और वैल्यू और कॉन्ट्रास्ट कैटेगरी से म्यूचुअल फंड स्कीम शामिल किया गया.
लंबी अवधि में निगेटिव रिटर्न का खतरा कम
अध्ययन से पता चला कि इक्विटी फंडों में निवेश का लक्ष्य लंबी अवधि का हो, तो निगेटिव रिटर्न का जोखिम बहुत कम हो जाता है. क्रिसिल रिसर्च के आंकड़े क्या बताते हैं, देखें.
एसआइपी की अवधि निगेटिव रिटर्न की घटनाएं
01 वर्ष 25%
02 वर्ष 17%
03 वर्ष 8%
04 वर्ष 5%
05 – 10 वर्ष 0%
मैक्सिमम और मिनिमम रिटर्न का अंतर कम
यह भी देखा गया कि निवेश का लक्ष्य लंबी अवधि का हो, तो एसआइपी द्वारा दिये जाने वाले अधिकतम और न्यूनतम रिटर्न का अंतर बेहद कम हो जाता है. इसका मतलब है कि शॉर्ट टर्म में हो सकता है कि किसी स्कीम का रिटर्न बहुत कम या निगेटिव रहा हो, लेकिन लंबी अवधि में इक्विटी फंडों में बेहतर रिटर्न की उम्मीद बढ़ जाती है.
जितनी लंबी अवधि, उतना ज्यादा रिटर्न
क्रिसिल रिसर्च के अनुसार एसआइपी के जरिये जितनी लंबी अवधि के लिए निवेश होगा, एसआइपी फंड उतना ही बड़ा होगा.
पॉवर ऑफ कंपाउंडिंग को जानें
पॉवर ऑफ कंपाउंडिंग बहुत ही आकर्षक है. आइए इसको एक उदाहरण से समझते हैं. मान ले कि एक व्यक्ति ने 10000 रुपये हर साल निवेश करता है और उसपर उसे आठ प्रतिशत का ब्याज मिलता है.
तो एक साल में उसका वार्षिक ब्याज 800 रुपये होगा. जब यही ब्याज की राशि उसी निवेश में पुनः निवेशित होता है, तो अगले साल की उपार्जित आमदनी में न केवल मूल 10000 रुपये बल्कि 800 रुपये का अतिरिक्त निवेश भी रहेगा. अतः दूसरे वर्ष ब्याज की राशि 864 रुपये होगी. और जैसे-जैसे साल बढ़ते जायेंगे, सालाना ब्याज में भी वृद्धि होती जायेगी.
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