नयी दिल्ली : अमेरिका-चीन व्यापार तनाव से भारत को बहुत ज्यादा फायदा मिलता नहीं दिखाई देता है. इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) की एक रिपोर्ट में यह निष्कर्ष सामने आया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए मौजूदा नीतिगत अड़चनों, कड़े श्रम कानूनों तथा भूमि अधिग्रहण की मुश्किल प्रक्रिया की वजह से भारत इस तनाव से कुछ ज्यादा फायदा नहीं उठा पायेगा. रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका-चीन व्यापार तनाव की वजह से कुछ वैश्विक कंपनियां अपने विनिर्माण आधार का विविधीकरण कर रही है और कुछ उत्पादन चीन से बाहर ले जा रही हैं, लेकिन इसका फायदा भारत को नहीं मिलेगा.
ईआईयू के विश्लेषक सार्थक गुप्ता ने कहा कि निवेश के मामले में भारत क्षेत्रीय समकक्षों की तुलना में पिछड़ सकता है, क्योंकि यहां बड़े पैमाने पर उत्पादन को लेकर नीतिगत अड़चनें हैं, श्रम कानून कड़े हैं और भूमि अधिग्रहण और परमिट की प्रक्रिया काफी मुश्किल है और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) की संख्या सीमित है. गुप्ता ने कहा कि कॉरपोरेट कर में हालिया की गयी कटौती से भारत के कारोबारी वातावरण का आकर्षण बढ़ेगा, लेकिन इसके बावजूद हमारा मानना है कि भारत विनिर्माण के वैकल्पिक गंतव्य के रूप में चीन का स्थान नहीं ले पायेगा.
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जारी रहने से वैश्विक व्यापार प्रभावित हो रहा है. इन सब घटनाक्रमों के बीच दक्षिण पूर्व एशिया विशेषरूप से वियतनाम और थाइलैंड विनिर्माण गंतव्य के रूप में चीन का विकल्प बनकर उभर रहे हैं. गुप्ता ने कहा कि यदि ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका और बांग्लादेश में नीतिगत माहौल भारत की तुलना में अधिक तेजी से सुधरता है, तो मध्यम अवधि में ये देश भी भारत की तुलना में अधिक आकर्षक गंतव्य बन सकते हैं.
रिपोर्ट कहती है कि विश्व बैंक की कारोबार सुगमता रैंकिंग में 2019 में भारत की स्थिति काफी सुधरी है और साथ ही बुनियादी ढांचा निवेश भी बढ़ा है, लेकिन बड़ी परियोजनाओं के लिए यहां भूमि अधिग्रहण काफी समय लेने वाली महंगी प्रक्रिया है. साथ ही, यहां श्रम कानून काफी अंकुश लगाने वाले हैं. गुप्ता ने कहा कि इसके अलावा भारत में परमिट और मंजूरियां हासिल करना काफी चुनौतीपूर्ण है.
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