बिहार विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. सूबे की राजनीति में दखल रखने वाली पार्टियां अपने तरकश के हर तीर के धार को तीखा कर रही है. वहीं, अब भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को धर्मेंद्र प्रधान को बिहार चुनाव का प्रभारी बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह चुनाव में किसी तरह की लापरवाही करने के मूड में नहीं है. इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह प्रधान का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है. पार्टी ने उन्हें अब तक जिन भी राज्यों का कमान दी है बदले में प्रधान ने पार्टी को जीत का तोहफा दिया है.
मोदी कैबिनेट में तय किया राज्य मंत्री से कैबिनेट तक का सफर
ओडिशा से ताल्लुक रखने वाले प्रधान खुद लो प्रोफाइल रहकर पार्टी के लिए काम करने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कई मौकों पर अपनी रणनीतिक क्षमता और संगठनात्मक कौशल के कारण भाजपा को कई राज्यों में जीत दिलाया. नरेंद्र मोदी की पहली कैबिनेट में वह राज्य मंत्री के तौर पर शामिल हुए लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने अपनी काबीलियत साबित की पार्टी और सरकार में उनका कद बढ़ता गया और उन्होंने राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री तक का सफर तय किया.

पार्टी की कमजोरियों को ताकत में बदलने में माहिर हैं प्रधान
धर्मेंद्र प्रधान कठिन राज्यों में भाजपा की कमजोरियों को ताकत में बदलने में माहिर हैं, खासकर जहां जातिगत और क्षेत्रीय गठबंधन चुनौतीपूर्ण होते हैं. इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में देखने के लिए मिला. जब किसान आंदोलन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर चल रही थी. ऐसे में पार्टी ने प्रधान को चुनाव प्रभारी बनाया. यूपी में पार्टी की कमान मिलने के बाद प्रधान ने जातीय समीकरणों को संतुलित करके और मोदी-योगी के ‘मैजिक’ को मजबूत करके 403 सीटों वाली विधानसभा में 255 सीटें दिलाई और यूपी में लगातार दूसरी बार बीजेपी की सरकार बनवाई.
ओडिशा में बनवाई BJP की सरकार
वहीं, जब पार्टी ने फैसला किया कि इस बार ओडिशा की कमान प्रधान को दी जाएगी तो उन्होंने पार्टी को जीताने में अपना सब कुछ झोंक दिया. 2024 में ओडिशा में भाजपा की पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. गृह प्रदेश में प्रधान ने स्थानीय मुद्दों पर फोकस रखा पार्टी को लोकसभा की 20 सीटें और 78 विधानसभा सीटें दिलाईं. उनकी भूमिका को ‘ओडिशा विजय का शिल्पकार’ माना गया.

हरियाणा को जीतकर बने मोदी के लेफ्टिनेंट
यहां भी धर्मेंद्र प्रधान चुनाव प्रभारी थे. एक्जिट पोल्स के उलट भाजपा ने लगातार तीसरी बार सरकार बनाई, वो भी 48 सीटें जीत कर. उनकी ‘चुपचाप’ रणनीति ने जाट-गैर जाट समीकरण को तोड़ा और पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट किया. कई विश्लेषकों ने उन्हें ‘मोदी का भरोसेमंद लेफ्टिनेंट’ कहा. ये तमगा प्रधान को यूं ही नहीं मिला. इसके पीछे का मुख्य कारण ये था कि जब बीजेपी के नेता ही यह मान चुके थे कि पार्टी के खिलाफ सूबे में सरकार विरोधी लहर है इसके बावजदू उन्होंने पार्टी को यहां जीत दिलाई.
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बिहार के लिए कितने कारगर होंगे?
बिहार में जब भी एनडीए गठबंधन में कोई मतभेद या तनाव होता है, तो अक्सर ‘संकट मोचक’ बनकर धर्मेंद्र प्रधान सामने आते रहे हैं. इसकी बड़ी वजह धर्मेंद्र प्रधान की नीतीश कुमार से पर्सनल ट्यूनिंग रही. धर्मेंद्र प्रधान का सक्सेस रेट इतना जबर्दस्त है कि उनको इग्नोर करना मुश्किल है. ऐसे में जब बिहार में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए मजबूत स्थिति में है, लेकिन आरजेडी-कांग्रेस वाले महागठबंधन और नीतीश कुमार की अस्थिरता चुनौतियां हैं. वे बिहार के सामाजिक-आर्थिक मुद्दों (जैसे- रोजगार, विकास और मोदी की योजनाओं) पर जोर देकर एनडीए को मजबूत कर सकते .
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