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प्रशांत किशोर – सोशल मीडिया का जादू या जमीन पर भी जन सुराज की मजबूत पकड़? पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट

Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जन सुराज एक मजबूत पहचान बना चुकी है. चंपारण जैसे क्षेत्रों में पदयात्रा और मुद्दों पर मुखरता के कारण उनकी पकड़ जमीनी स्तर पर बढ़ी है. संगठनात्मक ढांचे की मजबूती निचले स्तर पर अभी भी उनके लिए एक चुनौती है, जिससे यह सवाल बना हुआ है कि उनके लिए सोशल मीडिया का उत्साह वोट में कितना बदलेगा.

Bihar Chunav 2025, आदर्श सिंह : प्रशांत किशोर की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और उनकी बनाई पार्टी जन सुराज अब बिहार की राजनीति में एक चर्चित नाम बन चुकी है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यह पहचान सोशल मीडिया तक सीमित है या वास्तव में जमीन पर जन सुराज की पकड़ मजबूत हुई है.

पदयात्रा से राजनीतिक पार्टी तक का सफर

प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2022 को बिहार के पश्चिम चंपारण से जन सुराज पदयात्रा की शुरुआत की थी. लगभग ढाई साल में उन्होंने करीब 4000 किलोमीटर पैदल चलकर राज्य के सैकड़ों गांव-गांव तक पहुंच बनाई. इस दौरान उन्होंने शिक्षा, बेरोजगारी, पलायन और खेती जैसे मुद्दों पर लोगों से बातचीत की. इससे पहले मई से सितंबर 2022 के बीच वे जिला मुख्यालयों तक पहुंचे और स्थानीय प्रबुद्धजनों और आम लोगों से मुलाकात की थी.

ढाई साल की पदयात्रा पूरी होने के बाद 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी का आधिकारिक ऐलान हुआ. 11 अप्रैल 2025 को पटना के गांधी मैदान में पार्टी की पहली बड़ी रैली आयोजित की गई. हालांकि भीड़ उम्मीद के मुताबिक नहीं जुटी और खाली कुर्सियों को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए.

पीके ने इस नाकामी के लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया और तुरंत घोषणा की कि वे एक बार फिर पूरे बिहार में बदलाव यात्रा करेंगे. इस बार कई जगह सभाओं में भीड़ उमड़ी और तस्वीरों ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी.

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सीतामढ़ी में पीके की जन सभा में उमड़ी भीड़

मुद्दों पर जनता से जुड़ाव

जन सुराज का नारा है- “जन सुराज आएगा, 5 चीज हो जाएगा.” इसमें युवाओं के पलायन को रोकना, बुजुर्गों को 2000 रुपये पेंशन, महिलाओं को सस्ता ऋण, बच्चों को विश्वस्तरीय शिक्षा और किसानों को खेती से बेहतर आमदनी शामिल है. पीके की प्रोफेशनल टीम और संगठन इसे गांव-गांव तक ले जा रहे हैं.

संगठन की ओर से चलाए जा रहे परिवार लाभ कार्ड अभियान ने लोगों का ध्यान खींचा है. इसके तहत दावा किया जा रहा है कि एक परिवार को 20 हजार रुपये तक की मासिक मदद मिलेगी. यही वजह है कि पार्टी के फॉर्म भरवाने में लोगों की भारी रुचि देखी जा रही है.

लोगों की राय

पश्चिम चंपारण के बलथर चौक निवासी 65 वर्षीय राजमंगल प्रसाद कहते हैं, “प्रशांत किशोर ही सही लगते हैं. जो बात करते हैं, भरोसेमंद लगती है. यहां तो उनके नाम पर बहुत वोट हैं.” वहीं 19 वर्षीय छोटेलाल कहते हैं कि स्थानीय नेताओं ने मदद नहीं की लेकिन “पीके ने हमारी मदद करवाई.”

युवा राजू तो पीके को “मसीहा” बताते हैं. पूर्वी चंपारण के रक्सौल में एक ऑटो चालक कहते हैं, “प्रशांत किशोर हर जगह जाते हैं, सबसे मिलते हैं और सही सलाह देते हैं.”

पीके के स्टाइल का जमीन पर असर

पत्रकार शशि शेखर के अनुसार “इसमें कोई शंका नहीं है कि प्रशांत किशोर अपने संदेश को आम लोगों तक पहुँचाने में कामयाब हैं. पदयात्रा, जनसभाओं और सोशल मीडिया के जरिए उन्होंने अपनी बात लोगों तक पहुँचा दी है. जब हम ग्राउंड में जाते हैं तो यह पता चलता है. और सोशल मीडिया पर भी लोग उनको इसलिए सुन रहे हैं क्योंकि बिहार में लगभग 25-30 साल की राजनीति के बाद पहली बार ऐसा मौका आया कि जब कोई नेता इतना मुखर होकर सामने आया है, जो अभी तक नेता बना भी नहीं है. और उसने भाजपा के दिग्गजों के खिलाफ आरोप लगाए. सत्ताधारी दल जदयू के बड़े नेताओं के खिलाफ भी आरोप लगाए. ऐसा 30 सालों में होता हुआ हमने नहीं देखा क्योंकि विपक्ष भी विरोध के नाम पर रस्मअदायगी का काम करता आया है. लंबे समय बाद ऐसा देखने को मिला कि डॉक्युमेंट्स के साथ मुखर होकर कोई सत्ता में बैठे नेताओं का ऐसे विरोध कर रहा है. इससे लोगों के बीच पीके की स्वीकार्यता बढ़ी है, लोगों को लगा है कि यह आदमी हिम्मती है.”

इसके अलावा भी पलायन पर प्रशांत किशोर की मुखरता लोगों में गहरी छाप छोड़ रही है. जब वह महिलाओं को संबोधित करते हैं तो कहते हैं कि “छठ में जब आपका पति और बेटा बिहार आएगा, तो फिर उसको वापस नहीं जाना पड़ेगा.” यह महिला मतदाता के बीच खूब चर्चा का विषय बना हुआ है.

संगठन कितना मजबूत ?

पत्रकार शशि शेखर के अनुसार जिला स्तर पर जन सुराज का संगठन अच्छी स्थिति में है. प्रखंड स्तर और पंचायत स्तर पर संगठन उतना मजबूत अभी नहीं हो पाया है. जो मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, उनके बैठकों और सभाओं में जाकर संगठन के भीतर ही आरोप-प्रत्यारोप होता है.

जिला स्तर के संगठन के नेता पंचायत स्तर तक संगठन के लिए बढ़िया से काम नहीं कर पा रहे. ऐसे में सवाल तो है कि जादू सिर्फ स्क्रीन पर है या ग्राउंड पर भी है. तो इसके पीछे भी इनका जो संगठनात्मक ढांचा है, वह ज़िला स्तर पर तो मजबूत दिखता है लेकिन निचले स्तर पर वह कमजोर प्रतीत होता है.

खासकर चंपारण, मुजफ्फरपुर समेत कई ज़िलों में कमोबेश यही स्थिति है. सीधा इसको समझें तो सोशल मीडिया पर जो उपस्थिति जन सुराज की है, संगठन के लेवल पर वह उपस्थिति ग्राउंड पर नहीं है. और यह इनको हानि भी पहुँचा सकता है.” वन मैन आर्मी होना भी पीके की चुनावी सफलता में रोड़ा बन सकता है. लोगों में स्वीकार्यता के मामले में जन सुराज में प्रशांत किशोर के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं दिखता है.

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सोशल मीडिया बनाम ग्राउंड रियलिटी

सोशल मीडिया पर जन सुराज की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो रहे हैं. लेकिन सवाल है कि यह उत्साह वोट में बदल पाएगा या नहीं. वरिष्ठ पत्रकार शशि शेखर मानते हैं कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल हर युग में नेताओं ने किया है. गांधीजी ने अखबार और रेडियो का सहारा लिया, वहीं भाजपा और आम आदमी पार्टी ने डिजिटल टूल्स का. आज प्रशांत किशोर भी उसी रणनीति का उपयोग कर रहे हैं.

शशि शेखर कहते हैं, “चंपारण में पीके का असर इसलिए ज्यादा दिखता है क्योंकि उन्होंने वहां सबसे ज्यादा वक्त बिताया. गांव-गांव में लोग जन सुराज को जानते हैं. राज्य स्तर पर प्रभाव है, लेकिन यह वोट में कितना बदलेगा, यही असली सवाल है.”

ढाई साल की पदयात्रा, हजारों किलोमीटर का सफर और लगातार जनता से संवाद ने प्रशांत किशोर को बिहार की राजनीति में एक मजबूत खिलाड़ी बना दिया है. भीड़ और जनसमर्थन की तस्वीरें एक नई कहानी कह रही हैं, लेकिन चुनाव ही यह साबित करेगा कि जन सुराज सिर्फ डिजिटल लहर है या वाकई बिहार में सत्ता परिवर्तन की आहट.

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Paritosh Shahi
Paritosh Shahi
परितोष शाही डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत राजस्थान पत्रिका से की. अभी प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. देश और राज्य की राजनीति, सिनेमा और खेल (क्रिकेट) में रुचि रखते हैं.

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