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Jamui vidhaan sabh: गिद्धौर रियासत, 800 साल का शाही इतिहास और चंदेल वंश की गौरवगाथा

Jamui vidhaan sabha: बिहार के जमुई जिले में एक रियासत ऐसी भी रही, जिसने 8 सदियों तक अपनी शाही परंपरा कायम रखी. तलवार की धार से लेकर मंदिर निर्माण तक—गिद्धौर रियासत के चंदेल राजा आज भी इतिहास के पन्नों में अमर हैं.

Jamui vidhaan sabha: 12वीं सदी में मध्य प्रदेश से आए चंद्रवंशी चंदेल राजपूतों ने गिद्धौर रियासत की नींव रखी. कालिंजर के वीर वंशज राजा वीर विक्रम सिंह ने यहां राज किया और इसे बिहार की सबसे बड़ी रियासतों में शामिल कर दिया. इस शाही परिवार ने सिर्फ युद्ध में ही नहीं, बल्कि संस्कृति और आस्था में भी अपनी छाप छोड़ी.

गिद्धौर रियासत की स्थापना

इतिहासकारों के अनुसार, गिद्धौर रियासत के संस्थापक चंदेल राजा वीर विक्रम सिंह मूलतः मध्य प्रदेश के महोबा और कालिंजर के चंदेल राजवंश से थे, जिनके पूर्वज खजुराहो के मंदिरों के निर्माता थे. 1266 ई. में वीर विक्रम सिंह ने नागोरिया नामक दुसाध आदिवासी प्रमुख को पराजित कर गिद्धौर में अपना साम्राज्य स्थापित किया. यहीं से बिहार में उनकी शाही यात्रा की शुरुआत हुई.

चंदेल वंश का विस्तार

चंदेल वंश की जड़ें 9वीं शताब्दी तक जाती हैं. राजा नन्नुक ने इसकी नींव रखी, जबकि राजा परमर्दि देव के काल में दिल्ली के पृथ्वीराज चौहान और बाद में मुगलों से संघर्ष हुआ. हार के बाद चंदेल शासक अलग-अलग दिशाओं में फैल गए—किसी ने हिमाचल में बिलासपुर राज्य बसाया, तो किसी ने मिर्जापुर और विजयगढ़ में रियासतें बनाईं.

शिकार में भी थे माहिर महाराज

गिद्धौर के महाराज बहादुर चंद्र मौलेश्वर सिंह अपने साहस के लिए प्रसिद्ध हुए. 1932 में उन्होंने लछुआड़ जंगल में 10 फुट लंबे सफेद बाघ का अकेले शिकार किया—ऐसा करने वाले वे भारत के तीसरे व्यक्ति थे. इस बाघ का नमूना आज भी कोलकाता के नेशनल म्यूजियम में सुरक्षित है. उन्होंने अजगर का भी शिकार किया था, जिसका ज़िक्र ‘द कैट्स ऑफ इंडिया’ में मिलता है.

भक्ति और मंदिर निर्माण में अग्रणी

गिद्धौर रियासत भक्ति भाव में भी अग्रणी रही. राजा सुखदेव बर्मन ने खैरा में 108 शिवलिंगों वाला मंदिर बनवाया, जिसे बाद में मुगलों ने क्षतिग्रस्त कर दिया. 1596 में राजा पूरण सिंह ने झारखंड के देवघर में प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का निर्माण कराया.पूरण सिंह की ख्याति इतनी थी कि मुगल सम्राट उनके पारसमणि पर नज़र गड़ाए बैठे थे.

अंग्रेजी दौर में संघर्ष और जागीर की वापसी

1741-1765 में राजा अमर सिंह ने बक्सर की लड़ाई में बंगाल के नवाब का साथ दिया. अंग्रेजों ने उनकी रियासत का बड़ा हिस्सा जब्त कर लिया, लेकिन बाद में राजा गोपाल सिंह ने ब्रिटिश राज से महेश्वरी और डुमरी की जागीर वापस पा ली.

एक गौरवशाली विरासत

गिद्धौर रियासत केवल एक राजनीतिक सत्ता नहीं, बल्कि 800 वर्षों का वह इतिहास है जिसमें युद्ध, संस्कृति, आस्था और साहस—सभी एक साथ समाहित हैं. खैरा और गिद्धौर के किले आज भी इस शाही वंश के गवाह बने खड़े हैं.

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Pratyush Prashant
Pratyush Prashant
कंटेंट एडिटर. लाड़ली मीडिया अवॉर्ड विजेता. जेंडर और मीडिया में पीएच.डी. . वर्तमान में प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम में काम कर रहे हैं. साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि रखते हैं.

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