Bihar Election 2025: बिहार की राजनीति में इस वक्त बयानबाजी का दौर तेज हो गया है. चुनावी साल में जन सुराज पार्टी के संयोजक प्रशांत किशोर ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर तीखा हमला बोला है. उन्होंने कांग्रेस-राजद गठबंधन की महत्वाकांक्षी “माई बहिन मान योजना” को अव्यावहारिक बताते हुए सीधा सवाल उठाया कि इसका बजट आखिर कहां से आएगा.
“तेजस्वी कैलकुलेटर से भी नहीं कर सकते हिसाब”
एक न्यूज पोर्टल के कार्यक्रम में बोलते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि तेजस्वी यादव को वह कैलकुलेटर दे दें और कैमरे पर उनसे कहें कि बताइए- अगर बिहार की हर महिला को हर महीने 2,500 रुपये दिए जाएं, तो सालभर में कितना बजट लगेगा? पीके ने तंज कसते हुए कहा, “तेजस्वी यादव इतनी बड़ी गणना कैलकुलेटर से भी नहीं कर पाएंगे.” उन्होंने योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि “इतनी बड़ी राशि कहां से आएगी, यह गठबंधन बता ही नहीं रहा है.”
राजद पर पारिवारिक पार्टी होने का आरोप
प्रशांत किशोर ने राजद की संस्कृति पर भी सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि लालू यादव के समय में जितने दबंग और बाहुबली नेता थे, वे आज भी पार्टी में कायम हैं. “सुभाष यादव और साधु यादव के बाद आज तेजस्वी और तेज प्रताप आ गए. फर्क सिर्फ चेहरों का है, कल्चर वही है.”
उन्होंने गया के सुरेंद्र यादव, दरभंगा के ललित यादव, दानापुर के रीतलाल यादव और नवादा के राजबल्लभ यादव जैसे नेताओं का नाम लेते हुए कहा कि ये सभी लालू के जमाने से राजद में सक्रिय हैं और इन्हें हटाने की हिम्मत आज तक किसी ने नहीं दिखाई. पीके का आरोप था कि शराब माफिया और बालू माफिया अब भी पार्टी के साथ हैं.
माई बहिन मान योजना पर सियासत
महागठबंधन ने हाल ही में “माई बहिन मान योजना” की घोषणा की है, जिसके तहत राज्य की हर महिला को प्रतिमाह 2,500 रुपये देने का वादा किया गया है. कांग्रेस ने इसके लिए पंजीकरण प्रक्रिया भी शुरू कर दी है.
हालांकि, पीके का कहना है कि यह योजना केवल चुनावी छलावा है, क्योंकि बिहार की वित्तीय स्थिति इतनी बड़ी राशि देने की इजाजत नहीं देती. उन्होंने जनता से अपील करते हुए कहा कि “राजनीतिक दल चुनावी वादों से पहले यह बताएं कि इसके लिए पैसा कहां से आएगा.”
चुनावी समीकरण पर असर
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि प्रशांत किशोर का यह हमला सीधे तौर पर महागठबंधन और खासकर तेजस्वी यादव की साख पर है. बिहार में जहां जातिगत समीकरण चुनावी राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं, वहीं पीके लगातार मुद्दों को “विकास बनाम वादों” की बहस में बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

