Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी हलचल तेज हो गई है. राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के बाद कांग्रेस ने भी अब अपनी चुनावी रणनीति पर पूरी तरह फोकस कर लिया है. पार्टी ने दिल्ली में दो दिन तक चली लंबी बैठकों के बाद सीट शेयरिंग का फॉर्मूला लगभग तय कर लिया है. कांग्रेस इस बार सीटों के नंबर गेम में नहीं फंसना चाहती, बल्कि उन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है, जहां जीत की गारंटी ज्यादा हो.
कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने क्या कहा?
बिहार कांग्रेस के नेताओं ने दिल्ली में हुई बैठक में पार्टी नेतृत्व के सामने उन सीटों की सूची रखी, जिन पर पार्टी चुनाव लड़ना चाहती है. बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने साफ किया है कि कांग्रेस 70 से कम सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है, लेकिन शर्त यही है कि सीटें सम्मानजनक और जीत की संभावनाओं वाली हों. उन्होंने कहा- “गठबंधन में नए साथी आए हैं, तो सभी को समझौता करना होगा. अच्छी और खराब सीटों का संतुलन बनाना जरूरी है. कांग्रेस अपनी सूची राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे को सौंप चुकी है, जिस पर समन्वय समिति में चर्चा जारी है. 15 सितंबर तक सीट बंटवारे पर अंतिम फैसला होने की उम्मीद है.”
2020 की गलती नहीं दोहराएगी कांग्रेस
2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन सिर्फ 19 पर ही जीत सकी. उस समय कांग्रेस को जिन सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ा, उनमें से ज्यादातर सीटें एनडीए के गढ़ मानी जाती थीं. करीब 45 सीटें ऐसी थीं, जहां कांग्रेस पिछले चार चुनावों में हार चुकी थी. जबकि इन सीटों पर बीजेपी और जेडीयू का दबदबा कायम रहा था. यही वजह रही कि कांग्रेस को कमजोर सीटें मिलने का खामियाजा भुगतना पड़ा. इस बार कांग्रेस पहले से ज्यादा सतर्क है और ऐसी गलती दोहराने को तैयार नहीं. पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह अपनी पसंद की सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी.
55-60 सीटों पर लड़ने का प्लान
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने इस बार 55 से 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. संख्या भले ही कम हो, लेकिन फोकस विनिंग फॉर्मूले पर होगा. कांग्रेस उन सीटों पर जोर दे रही है, जहां पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी या जहां उसका परंपरागत वोटबैंक अब भी कायम है. मौजूदा विधायकों वाली सीटें तो कांग्रेस हर हाल में अपने पास रखेगी, साथ ही उन सीटों को भी चुना है जहां दलित और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
सीमांचल पर कांग्रेस का फोकस
कांग्रेस ने इस बार सीमांचल इलाके को लेकर विशेष रणनीति बनाई है. सीमांचल की 26 सीटों में से कांग्रेस 16 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और इस क्षेत्र में किसी तरह का समझौता करने के मूड में नहीं है. इसकी वजह साफ है- कांग्रेस के चार में से तीन सांसद सीमांचल से आते हैं. कटिहार से तारिक अनवर, किशनगंज से डॉ. मो. जावेद और पूर्णिया से पप्पू यादव ने सीमांचल में कांग्रेस की ताकत को और मजबूत किया है. मुस्लिम बहुल होने के कारण यह इलाका कांग्रेस के लिए मुफीद माना जाता है. यही वजह है कि पार्टी यहां ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने खाते में चाहती है.
एम-डी समीकरण पर रणनीति
कांग्रेस ने इस बार एम-डी यानी मुस्लिम-दलित समीकरण पर फोकस किया है. पार्टी मानती है कि बिहार में उसका परंपरागत वोटबैंक इन्हीं वर्गों में सुरक्षित है. यही कारण है कि कांग्रेस ने सीमांचल के अलावा दलित बहुल इलाकों की सीटों को भी प्राथमिकता दी है. 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भी कांग्रेस को यह भरोसा दिया है कि जहां मुस्लिम और दलित वोट एकजुट होते हैं, वहां जीत की संभावना बढ़ जाती है.
आरजेडी से टकराव की आशंका
कांग्रेस की इस रणनीति के बाद सवाल उठ रहा है कि क्या आरजेडी इस पर सहमत होगी? आरजेडी परंपरागत रूप से एम-वाई समीकरण (मुस्लिम-यादव) पर भरोसा करती रही है और सीमांचल की सीटों को लेकर वह भी समझौते के मूड में नहीं रहती. ऐसे में सीट शेयरिंग पर आरजेडी और कांग्रेस के बीच खींचतान बढ़ सकती है. हालांकि कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस बार अगर सही सीटें मिलीं तो पार्टी का प्रदर्शन बेहतर होगा और गठबंधन को फायदा मिलेगा.
संख्या नहीं, जीत जरूरी
कांग्रेस ने इस बार स्पष्ट कर दिया है कि उसके लिए सीटों की संख्या से ज्यादा अहमियत जीत की है. पार्टी चाहती है कि गठबंधन में उसका योगदान संख्या से नहीं बल्कि विनिंग सीटों से आंका जाए. यही कारण है कि उसने 70 सीटों के बजाय 55-60 सीटों पर सहमति जताई है.
“क्वालिटी ओवर क्वांटिटी” पर काम कर रही कांग्रेस
बिहार कांग्रेस इस बार पूरी तरह से “क्वालिटी ओवर क्वांटिटी” की रणनीति पर काम कर रही है. पार्टी का मानना है कि सीमांचल और दलित-मुस्लिम बहुल इलाके में उसकी पकड़ मजबूत है. ऐसे में यदि सही सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला तो उसका प्रदर्शन पिछली बार से बेहतर होगा. हालांकि, असली परीक्षा सीट बंटवारे के समय होगी, क्योंकि आरजेडी और अन्य सहयोगियों के साथ सहमति बनाना आसान नहीं होगा.
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