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चीन तो बहाना, असली खेल कुछ और…! अफगानिस्तान का सबसे बड़ा ‘ताश का पत्ता’ बगराम एयरबेस पर ट्रंप का खुला पूरा राज

Trump Warns Taliban Bagram Air Base: ट्रंप ने तालिबान को दी बगराम एयरबेस एयरबेस वापस करने की चेतावनी, चीन-अमेरिका तनाव और अफगानिस्तान की राजनीति पर पड़ते असर के बीच जानें पूरी कहानी और विशेषज्ञों की राय.

Trump Warns Taliban Bagram Air Base: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने “बगराम एयरबेस एयरबेस वापस नहीं किया, तो बुरी चीजे होने वाली हैं.” ट्रंप ने इसे अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा और बाद में पत्रकारों से कहा कि वे बेस को जल्दी वापस चाहते हैं. ट्रंप की इस धमकी के पीछे सिर्फ सैन्य महत्व ही नहीं, बल्कि चीन के बढ़ते प्रभाव और उनकी राजनीतिक छवि की चिंता भी छिपी है.

अफगानिस्तान का सबसे बड़ा ‘ताश का पत्ता’, ट्रंप क्यों बार-बार कर रहे हैं याद?

ये वही बेस है जिसे अमेरिका ने 2001 के बाद तालिबान के खिलाफ लड़ाई की रीढ़ बना दिया था. जुलाई 2021 में अमेरिकी और NATO सैनिकों की हड़बड़ी में वापसी ने तालिबान को पूरे देश पर कब्जा करने का रास्ता खोल दिया. ट्रंप तब से इस बेस के खोने पर बार-बार खेद जताते रहे हैं और इसे सीधे-सीधे चीन के बढ़ते प्रभाव से जोड़ते हैं.

बगराम का भूगोल और गेमचेंजर सालंग टनल

विशेषज्ञ बताते हैं कि बगराम, काबुल से करीब 60-70 किलोमीटर उत्तर, परवॉन प्रांत में है. और परवॉन अफगानिस्तान का असली ‘गेमचेंजर’. क्यों? क्योंकि यहीं से गुजरती है 2.6 किलोमीटर लंबी सालंग टनल, जो काबुल को मजार-ए-शरीफ और उत्तरी इलाकों से जोड़ती है. यही नहीं, यहां से निकलते हाईवे सीधे गजनी और कंधार (दक्षिण) और बामियान (पश्चिम) को जोड़ते हैं. साफ मतलब है कि जो परवॉन पर कंट्रोल करेगा, उसके पास आधा अफगानिस्तान की चाबी होगी.

रूस से अमेरिका तक की कहानी

इतिहासकारों के मुताबिक, 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बगराम एयरफील्ड बनाया था. उस दौर में कोल्ड वॉर अपने चरम पर थी. बाद में यही बेस सोवियत-अफगान युद्ध (1979–89) में रूसियों का बड़ा ठिकाना बना. फिर आया 2001. अमेरिका पर 9/11 का हमला हुआ और शुरू हुई ‘वार ऑन टेरर’. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, तब से बगराम, अमेरिका का ऑपरेशनल हब बन गया. यहीं से ड्रोन उड़ते, यहीं से स्पेशल ऑपरेशन निकलते और यही बेस अफगानिस्तान में अमेरिकी मौजूदगी की पहचान बन गया.

अब चीन की दिलचस्पी क्यों?

कहानी यहीं नहीं रुकती. बगराम की अहमियत आज भी उतनी ही है जितनी कल थी. वजह है, चीन. बताया जाता है कि चीन और तालिबान की नजदीकियां सिर्फ निवेश और सुरक्षा तक सीमित नहीं हैं. असल दांव बगराम पर नजर है. वजह साफ है कि बगराम से चीन का लोप नूर सिर्फ 2,000 किलोमीटर दूर है.इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ये वही जगह है जहां चीन ने 1964 में पहला एटम बम टेस्ट किया था. और आगे बढ़ें तो किंगहाई प्रांत में कोको नूर न्यूक्लियर फैसिलिटी है. यानी बगराम से बैठकर कोई ताकतवर खिलाड़ी, सीधे चीन के न्यूक्लियर गलियारे को देख सकता है.

Bagram Air Base Afghanistan
Bagram Air Base Afghanistan

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Trump Warns Taliban Bagram Air Base: ट्रंप की चिंता सिर्फ अमेरिका नहीं, चीन भी है

चाइनीज मीडिया साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, ट्रंप का बगराम फोकस चीन के शिनजियांग में बढ़ती परमाणु क्षमता के जवाब में है. अफगानिस्तान का यह बेस चीन की पश्चिमी सीमा से 800 किलोमीटर से कम दूरी पर है. लानझोउ विश्वविद्यालय के अफगानिस्तान अध्ययन केंद्र और बेल्ट एंड रोड रिसर्च सेंटर के कार्यकारी निदेशक झू योंगबियाओ ने कहा, “ट्रंप बस चीन का बहाना बना रहे हैं. असली मकसद उनके घरेलू राजनीतिक दर्शकों के लिए संकेत देना है.”

बीजिंग ने भी तुरंत विरोध किया. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा कि अफगानिस्तान का भविष्य अफगान लोगों के हाथ में होना चाहिए और क्षेत्रीय तनाव को भड़काना स्वीकार्य नहीं है. काबुल ने भी अमेरिकी हस्तक्षेप को खारिज किया और बातचीत पर जोर दिया.

विदेशी विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के ही अनुसार, जगन्नाथ पांडा (सलानझोउ यूनिवर्सिटी) का कहना है कि बगराम एयरबेस की वापसी तालिबान की सहमति के बिना संभव नहीं और यह चीन, रूस और ईरान से तीव्र प्रतिक्रिया को उकसा सकता है.

वीना रामचंद्रन (भारतीय शोधकर्ता, बीरला इंस्टिट्यूट) के अनुसार, यह बेस शिनजियांग से लगभग 1,000 किलोमीटर की दूरी पर है और अमेरिकी निगरानी चीन के पश्चिमी क्षेत्रों और अल्पसंख्यक सुरक्षा पर प्रभाव डाल सकती है.

डेनिस वाइल्डर (पूर्व CIA अधिकारी, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी) का कहना है कि बगराम एयरबेस ड्रोन निगरानी और चीन के परमाणु कार्यक्रम पर निगरानी के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.

लिसेलोट ओडगार्ड (हडसन इंस्टिट्यूट) का कहना है कि ट्रंप का प्रस्ताव पहले से ही अस्थिर क्षेत्र में तनाव बढ़ा रहा है और संभावित अमेरिकी समझौता अफगानिस्तान के दुर्लभ पृथ्वी संसाधनों तक पहुंच से जुड़ा हो सकता है.

अहमद सईद (पाकिस्तानी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मैरीटाइम अफेयर्स) चेतावनी देते हैं कि अमेरिकी सैन्य कदम अफगानिस्तान को फिर से संघर्ष में खींच सकते हैं और क्षेत्र को अस्थिर कर सकते हैं.

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ट्रंप और बाइडेन का अफगानिस्तान पर जुड़ाव

ट्रंप लगातार अपने पूर्ववर्ती जो बाइडेन को अफगानिस्तान से अमेरिकी अव्यवस्थित वापसी के लिए जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. उन्होंने बेस की ताकत और रनवे की लंबाई का हवाला देते हुए कहा, “आप वहां किसी भी चीज को उतार सकते हैं. आप वहां एक ग्रह भी उतार सकते हैं.”

ट्रंप का बगराम एयरबेस पर जोर चीन-अमेरिका प्रतिद्वंद्विता और उनकी राजनीतिक छवि से जुड़ा हुआ है. यह कदम संभवतः अमेरिका और चीन के बीच न्यू कोल्ड वॉर की झलक भी दिखाता है. बगराम एयरबेसड्रामा सिर्फ अमेरिका और तालिबान के बीच की लड़ाई नहीं है. यह चीन के बढ़ते परमाणु प्रभाव, अफगानिस्तान में अमेरिका की वापसी और क्षेत्रीय तनाव का मिश्रण है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अफगानिस्तान और मध्य एशिया में अस्थिरता पैदा कर सकता है और वैश्विक राजनीतिक खेल में नए मोड़ ला सकता है.

Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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