Subramanyam Subu Vedam: न्याय की देवी अंधी होती हैं. लेकिन न्याय करने वाला तो आंखों वाला होता है. अमेरिका में एक भारतीय को 43 साल की जेल की सजा हुई, जिसे उन्होंने कभी किया ही नहीं था. लेकिन उनकी मुश्किल इतने से ही समाप्त नहीं हुई. पेंसिल्वेनिया की एक जेल में 40 से अधिक साल सुब्रमण्यम ‘सुबू’ वेदम को आजादी मिली, लेकिन कुछ ही पलों बाद उन्हें फिर से हिरासत में ले लिया गया, इस बार अमेरिकी इमिग्रेशन अधिकारियों द्वारा. सुबू के ऊपर अब भारत निर्वासन (डिपोर्ट यानी वापस भेजने) का खतरा पैदा हो गया है, एक ऐसे देश में जहाँ वह लगभग अजनबी हैं.
64 वर्षीय भारतीय मूल के वेदम इस साल अगस्त में रिहा हुए. लेकिन आजाद होते ही उन्हें यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट (ICE) ने अपनी हिरासत में ले लिया. यह कार्रवाई 1980 के दशक से लंबित एक पुराने निर्वासन आदेश (डिपोर्टेशन ऑर्डर) के तहत की गई. अब उनका परिवार और कानूनी टीम इस बात के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि उन्हें उस देश से बाहर न निकाला जाए, जिसे वह अपने बचपन से ही अपना घर मानते आए हैं.
क्या था सुब्रमण्यम ‘सुबू’ वेदम का अपराध?
वेदम स्थायी अमेरिकी निवासी हैं और नौ महीने की उम्र में भारत से अमेरिका गए थे. उन्होंने अपने लगभग पूरे वयस्क जीवन को पेंसिल्वेनिया में 1980 में 19 वर्षीय थॉमस किन्सर की गोली मारकर हत्या के आरोप में जेल में बिताया. किन्सर का शव स्टेट कॉलेज के पास एक सिंकहोल में मिला था. पुलिस ने उनके हाई स्कूल के साथी पर आखिरी बार उनके साथ देखे जाने का आरोप लगाया. वेदम ने हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा किया, लेकिन उन्हें दो बार दोषी ठहराया गया. पहली बार 1983 और फिर 1988 में. लेकिन उन्हें बिना पैरोल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
सुबु के खिलाफ सबूत छुपाया गया
उन्होंने हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा किया, लेकिन उनकी अपीलें दशकों तक खारिज होती रहीं. 2022 में जाकर नए फॉरेंसिक सबूत सामने आए, जिनसे पता चला कि गोली का घाव उस हथियार से मेल नहीं खाता था जो अदालत में सबूत के रूप में पेश किया गया था. मीडिया रिपोर्ट में सामने आया कि आगे की जांच में यह भी खुलासा हुआ कि आरोप लगाने वाले अभियोजकों (प्रोसेक्यूटर्स) ने एफबीआई की एक रिपोर्ट छिपा ली थी, जो वेदम की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी. मियामी हेराल्ड के अनुसार, अदालत के दस्तावेजों में कहा गया कि रिपोर्ट में किन्सर की खोपड़ी में गोली के छेद का आकार बताया गया था, एक ऐसा सबूत जो अभियोजन पक्ष के इस दावे को कमजोर कर सकता था कि हत्या में .25-कैलिबर की बंदूक का इस्तेमाल हुआ था. अगर वह सबूत उस समय पेश किया जाता, तो वेदम छूट जाते.
खुद को पाक साफ करने के लिए ठुकरा दी समझौता याचिका
उन्होंने मुकदमे के दौरान दो बार ‘प्ली बार्गेन’ (समझौता याचिका) को ठुकरा दिया क्योंकि वह हर हाल में अपना नाम साफ करना चाहते थे. अगस्त 2025 में सेंटर काउंटी के एक जज ने उनकी सजा को रद्द कर दिया, यह पाते हुए कि अभियोजन पक्ष ने रक्षा पक्ष से एफबीआई की एक रिपोर्ट छिपाई थी. जिला अटॉर्नी बर्नी कैंटॉर्ना ने मामले की पुरानी प्रकृति और गवाहों की अनुपलब्धता को देखते हुए सभी आरोप औपचारिक रूप से खारिज कर दिए. वेदम के निर्दोष साबित होने से, वह पेंसिल्वेनिया के इतिहास में सबसे लंबे समय तक गलत तरीके से कैद किए गए व्यक्ति बन गए और अमेरिका के इतिहास में भी सबसे लंबे समय तक गलत सजा भुगतने वालों में से एक.
जेल में हासिल की कई डिग्रियां
जेल में रहने के दौरान, वेदम ने कई शैक्षणिक उपलब्धियाँ हासिल कीं. उन्होंने साक्षरता कार्यक्रम शुरू किए, कैदियों को डिप्लोमा प्राप्त करने में मदद की और कोरेस्पोंडेंस से तीन डिग्रियाँ पूरी कीं सभी magna cum laude सम्मान के साथ, जिनमें 4.0 GPA के साथ एमबीए भी शामिल है. वह पिछले 150 वर्षों में राज्य की जेल में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने वाले पहले कैदी बने.
जेल से निकलते ही मुश्किल में पड़ गए सुबु
लेकिन जैसे ही वह जेल से बाहर निकले, इमिग्रेशन अधिकारी पहले से इंतजार कर रहे थे. एजेंसी ने 1980 के दशक का “पुराना निर्वासन आदेश” लागू किया, जो उनके किशोरावस्था के दौरान हुए एक मादक पदार्थ (LSD रखने और वितरित करने के इरादे) से जुड़े अपराध से संबंधित था. यह आदेश, जो उनकी आजीवन सजा के दौरान निष्क्रिय था, लेकिन उनकी रिहाई के साथ ही लागू कर दिया गया. अब उनके ऊपर भारत निर्वासन की तलवार लटक रही है.
कौन हैं सुबू वेदम?
सुबू वेदम का जन्म भारत में हुआ था और जब वे सिर्फ नौ महीने के थे, तब उन्हें अमेरिका लाया गया. पेंसिल्वेनिया में पले-बढ़े वेदम ने अपना लगभग पूरा वयस्क जीवन जेल में बिताया, उस अपराध के लिए, जिसे उन्होंने किया ही नहीं था. वेदम की माँ का निधन 2016 में हुआ, उन्होंने 34 वर्षों तक हर सप्ताह जेल में जाकर अपने बेटे से मुलाकात की थी. उनके पिता, डॉ. के. वेदम, जो फिजिक्स के प्रोफेसर एमेरिटस थे, उनका निधन सितंबर 2009 में हुआ.
परिवार ने डिपोर्टेशन को बताया विनाशकारी
उनकी भतीजी जो मिलर वेदम ने उन्हें अत्यंत संवेदनशील और करुणाशील व्यक्ति बताया. उन्होंने सालों तक अपने असली व्यक्तित्व को अपने कामों से साबित किया. उन्होंने कहा कि उन्हें भारत भेजना विनाशकारी होगा, “वह नौ महीने की उम्र में भारत छोड़कर आए थे. कोई भी व्यक्ति अपने जीवन की यादें नौ महीने की उम्र से नहीं रख सकता. वह 44 साल से वहाँ नहीं गए, और जिन लोगों को वह बचपन में जानते थे, वे अब इस दुनिया में नहीं हैं. उनका पूरा परिवार, उनकी बहन, उनकी भतीजियाँ, उनकी परनातिनियाँ हम सब अमेरिकी नागरिक हैं और यहीं रहते हैं.” निर्दोष साबित होने के बावजूद, ICE ने उन्हें उनके किशोरावस्था के दौरान हुए ड्रग संबंधी अपराध से जुड़े पुराने निर्वासन आदेश के आधार पर हिरासत में रखा हुआ है.
ICE की हिरासत में वेदम
वेदम के परिवार ने ‘फ्री सुबु’ नामक वेबसाइट पर एक बयान में कहा, “हमारी निराशा के लिए, शुक्रवार 3 अक्टूबर 2025 को सुबु को ICE की हिरासत में स्थानांतरित कर दिया गया. वह फिलहाल मॉशानन वैली प्रोसेसिंग सेंटर में रखे गए हैं. यह इमिग्रेशन मामला सुबु के मूल केस का एक अवशेष है. चूंकि वह गलत सजा अब आधिकारिक रूप से रद्द हो चुकी है और सभी आरोप वापस ले लिए गए हैं, हमने इमिग्रेशन कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह इस मामले को दोबारा खोले और यह ध्यान में रखे कि सुबु को बेगुनाह करार दिया जा चुका है.”
परिवार ने शुरू किया सार्वजनिक अभियान
एजेंसी ने उन्हें आजीवन अपराधी (करियर क्रिमिनल) बताया है. हालांकि यह दावा उनकी वकील एवा बेनक ने सख्ती से खारिज किया. उनका कहना है कि अगर वेदम को गलत तरीके से हत्या के मामले में दोषी नहीं ठहराया गया होता, तो उनका आव्रजन मामला वर्षों पहले ही सुलझ गया होता. उनके परिवार ने अब एक सार्वजनिक अभियान शुरू किया है और निर्वासन को रोकने के लिए कानूनी याचिकाएं दायर की हैं. परिवार ने कहा, “चूंकि वह गलत सजा अब आधिकारिक तौर पर रद्द कर दी गई है और सुबू के खिलाफ सभी आरोप खारिज हो चुके हैं, हमने इमिग्रेशन कोर्ट से अनुरोध किया है कि मामला फिर से खोला जाए और यह ध्यान में रखा जाए कि सुबू अब निर्दोष साबित हो चुके हैं.”
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