Japan PM Shigeru Ishiba Resign Why: जापान की सियासत में शनिवार को बड़ा उलटफेर देखने को मिला. प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. इशिबा ने नवंबर 2024 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन महज 10 महीने बाद ही उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ रही है. इस्तीफे के ऐलान के बाद उन्होंने अपनी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) से आपातकालीन नेतृत्व चुनाव कराने को कहा है. हालांकि, नया नेता चुने जाने तक इशिबा कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहेंगे.
10 महीने में क्यों टूटी कुर्सी? (Japan PM Shigeru Ishiba Resign Why)
68 वर्षीय शिगेरु इशिबा के लिए यह कार्यकाल बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हुआ. उनके कार्यकाल में लगातार बढ़ती महंगाई, जनता का असंतोष और चुनावी हार उनके लिए भारी पड़ गई. जुलाई 2025 में हुए उच्च सदन के चुनाव में उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, जिससे एलडीपी के भीतर असंतोष और तेज हो गया. तब भी उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया था, लेकिन पार्टी के भीतर दबाव लगातार बढ़ता रहा.रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने जनता के गुस्से और महंगाई की समस्या से निपटने की बजाय अमेरिका के साथ ट्रेड डील और टैरिफ मुद्दों पर ज्यादा ध्यान दिया. यह फैसला उनकी पार्टी और गठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हुआ.
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अमेरिका-जापान समझौते पर उठे सवाल (Japan PM Shigeru Ishiba Resign Why)
अपने कार्यकाल के दौरान इशिबा ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बड़ा व्यापार समझौता किया. इस समझौते के तहत जापान ने अमेरिका से कम टैरिफ के बदले 550 अरब डॉलर का निवेश करने का वादा किया.
हालांकि, इस डील ने जापान की अर्थव्यवस्था पर उल्टा असर डाला. देश की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री बुरी तरह प्रभावित हुई और आर्थिक विकास धीमा पड़ गया. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इशिबा के इस कदम ने जनता का भरोसा कमजोर किया और एलडीपी को नुकसान पहुंचाया.
इस्तीफा देते समय भावुक हुए इशिबा
इस्तीफे का ऐलान करते हुए शिगेरु इशिबा भावुक नजर आए. उन्होंने कहा,“जापान और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते और राष्ट्रपति के आदेश पर हस्ताक्षर के साथ हमने बड़ी मुश्किल पार की है. अब मैं अगली पीढ़ी को जिम्मेदारी देना चाहता हूं.” उनके इस बयान के बाद राजनीतिक अनिश्चितता और भी गहराती दिख रही है.
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राजनीतिक असर: येन की कीमत गिरी, बॉन्ड बिके
इशिबा के इस्तीफे के तुरंत बाद जापानी मुद्रा येन कमजोर हो गई. साथ ही, सरकारी बॉन्ड की बिक्री में इजाफा देखने को मिला. विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक नया नेता सामने नहीं आता, वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रहेगा.
कौन बनेगा JAPAN का अगला प्रधानमंत्री?
इशिबा के इस्तीफे के बाद अब एलडीपी के भीतर नए नेतृत्व को लेकर दौड़ शुरू हो गई है. साने ताकाइची को संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है. ताकाइची ढीली आर्थिक नीतियों के समर्थन में हैं और बैंक ऑफ जापान की ब्याज दर बढ़ाने की आलोचना करती रही हैं. विश्लेषकों के अनुसार, यदि वे चुनी जाती हैं तो यह वित्तीय बाजार के लिए अहम साबित होगा.
शिंजिरो कोइज़ुमी पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे और एक राजनीतिक परिवार से आते हैं. इशिबा सरकार में कृषि मंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें महंगाई और बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण का जिम्मा दिया गया था. उनकी छवि एक लोकप्रिय युवा नेता की है. गौर करने वाली बात है कि पिछले साल एलडीपी नेतृत्व के चुनाव में इशिबा ने ताकाइची को बेहद कम अंतर से हराया था.
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एलडीपी की चुनावी हार और अंदरूनी कलह
जापान के मीजी यासुदा रिसर्च इंस्टीट्यूट के अर्थशास्त्री काज़ुताका माएदा का कहना है, “लगातार चुनावी हार के बाद इशिबा का इस्तीफा देना जरूरी था.” विशेषज्ञों के अनुसार, पार्टी अब किसी ऐसे चेहरे की तलाश में है, जो जनता का भरोसा जीत सके और बाजार को स्थिर कर सके. हालांकि, पार्टी के पास संसद में बहुमत नहीं है. ऐसे में यह भी तय नहीं है कि अगला एलडीपी अध्यक्ष सीधे प्रधानमंत्री बन जाएगा.
क्या होंगे अगले कदम?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगला नेता पद संभालने के बाद जनता का विश्वास हासिल करने के लिए अचानक चुनाव करा सकता है. विपक्ष भले ही कमजोर हो, लेकिन हाल के दिनों में अति-दक्षिणपंथी और माइग्रेशन-विरोधी संसेतो पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है. इससे जापान की मुख्यधारा की राजनीति में नए मुद्दों की एंट्री हो सकती है.
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जनता का मूड: चुनाव की जल्दी नहीं
क्योदो समाचार एजेंसी के सर्वे के मुताबिक, 55% जापानी नागरिकों का मानना है कि अभी तुरंत चुनाव कराने की जरूरत नहीं है. जनता चाहती है कि पहले नया नेतृत्व बने और उसके बाद सरकार की दिशा तय हो. शिगेरु इशिबा का कार्यकाल छोटा जरूर रहा, लेकिन इस दौरान जापान की राजनीति और अर्थव्यवस्था दोनों बड़े बदलावों से गुजरे. अब एलडीपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है नया चेहरा चुनने की, जो न सिर्फ जनता का भरोसा जीत सके बल्कि अमेरिका के साथ रिश्ते और घरेलू अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन भी बना पाए. आने वाले हफ्ते जापान की राजनीति के लिए बेहद अहम साबित होने वाले हैं.

