Global Air Pollution Deaths: सोचिए, आप हर रोज जो हवा सांस में लेते हैं, वही आपकी सेहत को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रही है. नई स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में यही सच सामने आया है. रिपोर्ट चेतावनी देती है कि वायु प्रदूषण अब हाई ब्लड प्रेशर के बाद दुनिया में अकाल मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है. यह रिपोर्ट बोस्टन के हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (HEI) ने वाशिंगटन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन और जिनेवा स्थित NCD एलायंस के साथ मिलकर तैयार की है.
रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में वायु प्रदूषण के कारण 7.9 मिलियन लोग मर गए, यानी लगभग हर आठ मौत में से एक. इनमें 4.9 मिलियन मौतें बाहरी सूक्ष्म पार्टिकल (PM2.5) के कारण, 2.8 मिलियन मौतें घर के अंदर वायु प्रदूषण के कारण और 470,000 मौतें ओजोन प्रदूषण के कारण हुई हैं.
भारत और चीन सबसे ज्यादा प्रभावित
2023 में भारत और चीन में वायु प्रदूषण से दो मिलियन (भारतीय नंबर सिस्टम में इसे ‘बीस लाख’ कहेंगे) से ज्यादा मौतें हुईं, जो पूरी दुनिया में होने वाली मौतों का आधा से ज्यादा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 90 प्रतिशत मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुई हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र हैं दक्षिण एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया. अन्य देश जो प्रभावित हुए हैं वो हैं बांग्लादेश, पाकिस्तान, नाइजीरिया जहां 2 लाख से अधिक मौतें हुई और इंडोनेशिया, म्यांमार, मिस्र में 1 लाख से अधिक मौतें हुई हैं. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि प्रदूषण का असर हवा साफ होने के बाद भी लंबे समय तक रहता है. अकेले 2023 में, 7.9 मिलियन मौतें और 232 मिलियन स्वस्थ जीवन वर्ष वायु प्रदूषण के कारण नष्ट हुए.
वायु प्रदूषण और उससे होने वाली गंभीर बीमारियां
वायु प्रदूषण अब सिर्फ सांस की बीमारी तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह डिमेंशिया, हृदय रोग और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों से भी जुड़ा हुआ है. 2023 के अनुमान के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण करीब 6,26,000 लोग डिमेंशिया से मर गए और 11.6 मिलियन साल स्वस्थ जीवन खो गए. क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) में होने वाली हर दो मौतों में से एक का कारण वायु प्रदूषण था. हृदय रोग में होने वाली हर चार मौतों में से एक, और डिमेंशिया में चार में से एक से अधिक मौतें प्रदूषण के कारण हुईं. मधुमेह में भी छह में से एक मौत खराब हवा के कारण हुई. कुल मिलाकर, 95 प्रतिशत मौतें 60 साल से ऊपर के लोगों में हुईं, और अधिकतर मौतें गैर-संचारी रोगों की वजह से थीं.
कौन ले रहा है सबसे गंदी हवा
दुनिया की लगभग 36 प्रतिशत आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां WHO के न्यूनतम मानक से ऊपर PM2.5 का स्तर है. करीब 11 प्रतिशत लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां कोई राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक ही मौजूद नहीं है. भारत और दक्षिण एशिया में हवा की खराब गुणवत्ता के मुख्य कारणों में वाहन धुआं, खेती में फसल जलाना, कोयले से चलने वाले बिजली घर और शहरों में निर्माण धूल शामिल हैं. इसके अलावा, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में प्राकृतिक घटनाएं जैसे धूल भरी आंधी और जंगल की आग स्थिति को और खराब कर देती हैं.
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