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दुनिया के 5 सबसे खतरनाक आदिवासी समुदाय, जो अब तक बाहरी दुनिया से अछूते हैं! जानें उनका खौफनाक राज

World Most Isolated Tribal Communities: आधुनिक सभ्यता से दूर, दुनिया में आज भी कुछ समुदाय ऐसे हैं जो अपनी पुरानी परंपराओं और प्रकृति से जुड़ी जीवनशैली को सहेज कर रखे हुए हैं. जानिए सेंटिनली, कोरोवाई, हिम्बा, ताइनो और आवा जैसे पांच आदिवासी समूहों की कहानी जो हमें याद दिलाते हैं कि असली सभ्यता क्या होती है.

World Most Isolated Tribal Communities: हम और आप शहरों में रहते हुए अकसर सोचते हैं कि दुनिया हर दिन बदल रही है, तकनीक आगे बढ़ रही है, इंटरनेट सब कुछ जोड़ रहा है. लेकिन इस धरती पर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस “आधुनिक दुनिया” का हिस्सा नहीं हैं. जो आज भी वैसे ही जी रहे हैं जैसे उनके पूर्वज सैकड़ों साल पहले जीते थे. ना मोबाइल, ना मशीन, ना बिजली बस जंगल, नदी, पहाड़ और वो पुराना रिश्ता जो इंसान और प्रकृति के बीच कभी टूटा ही नहीं. इन आदिवासी समुदायों ने अपनी परंपरा, भाषा और जीवनशैली को ऐसे सहेज रखा है जैसे कोई अपने सबसे कीमती खजाने को छिपा कर रखता है. आईए जानते हैं ऐसे पांच समुदायों के बारे में, जो आज भी अपनी दुनिया में वैसे ही जी रहे हैं जैसे सदियों पहले थे.

1. सेंटिनली- दुनिया से अलग, अंडमान के रहस्यमयी लोग

अंडमान द्वीपसमूह के बीचोबीच बसा उत्तर सेंटिनल द्वीप दुनिया का सबसे रहस्यमय इलाका माना जाता है. यहां रहते हैं सेंटिनली लोग जो आज तक बाहरी दुनिया से जुड़ना नहीं चाहते. अगर कोई उनके पास जाने की कोशिश करे तो वो स्वागत नहीं करते, बल्कि धनुष-बाण से अपना बचाव करते हैं.

भारत सरकार ने इस द्वीप के पास जाना पूरी तरह से मना किया हुआ है, ताकि सेंटिनली और बाहरी लोग दोनों सुरक्षित रहें. सेंटिनली न खेती करते हैं, न आधुनिक साधन इस्तेमाल करते हैं. वे जंगल और समुद्र से वही लेते हैं जितनी जरूरत हो. उनका ये अलग रहना जिद नहीं, बल्कि अपनी पहचान और सुरक्षा की समझदारी है.

2. कोरोवाई- पेड़ों पर घर बनाने वाले लोग, पापुआ के जंगलों में बसे

इंडोनेशिया के पापुआ प्रांत के घने जंगलों में कोरोवाई नाम के लोग रहते हैं. इनकी पहचान है पेड़ों की ऊंचाई पर बने घर. कुछ घर तो 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं. ऐसा करने से वे बाढ़, कीड़ों और दुश्मन जनजातियों से सुरक्षित रहते हैं. बीबीसी न्यूज की रिपोर्ट बताती है कि 1970 के दशक तक दुनिया को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. कोरोवाई की ये जीवनशैली दिखाती है कि इंसान अगर चाहे तो किसी भी माहौल में अपने तरीके से ढल सकता है. जहां हम तकनीक से ऊंचाई छूने की कोशिश करते हैं, वहीं ये लोग पेड़ों की ऊंचाई पर जिंदगी बसा चुके हैं.

3. हिम्बा- लाल मिट्टी से रंगे लोग, जो रेगिस्तान को भी घर बना लेते हैं

नामीबिया के उत्तर में रहते हैं हिम्बा लोग. ये अर्ध-खानाबदोश पशुपालक हैं, जो सूखे इलाकों में भी अपने मवेशियों के साथ जीवन जीते हैं. उनकी पहचान है उनकी चमकदार लाल त्वचा जो गेरू और मक्खन के मिश्रण से बनती है. ये मिश्रण उन्हें सूरज की तपिश और रेगिस्तानी धूल से बचाता है. उनके बालों के जटिल हेयरस्टाइल और गहने उनकी संस्कृति का हिस्सा हैं. UNESCO के अनुसार, हिम्बा लोग दिखाते हैं कि परंपरा और आधुनिकता साथ-साथ चल सकते हैं. उन्होंने दुनिया के बदलने के बावजूद अपनी पुरानी रीति-रिवाजों को पूरी मजबूती से संभाल रखा है.

4. ताइनो- इतिहास से मिटाए गए, लेकिन खून में अब भी जिंदा

प्यूर्टो रिको में रहने वाले ताइनो लोगों को कभी इतिहास ने “गायब” मान लिया था. लेकिन Smithsonian Magazine में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, आज भी प्यूर्टो रिको के कई लोगों के खून में ताइनो डीएनए मौजूद है. यानी उनका अस्तित्व मिटा नहीं, बस बदल गया. कई परिवार आज भी ताइनो भाषा, रीति-रिवाज और कला को संजोए हुए हैं. उनकी विरासत बताती है कि संस्कृति कभी पूरी तरह मरती नहीं वो बस रूप बदल लेती है. आज ये परंपराएं प्यूर्टो रिको की पहचान को और भी गहराई देती हैं.

World Most Isolated Tribal Communities: आवा- अमेजन के जंगलों में जिंदा आखिरी खानाबदोश

ब्राजील के अमेजन जंगल में रहते हैं आवा लोग जो आज भी पूरी तरह से खानाबदोश जीवन जीते हैं. वो न खेती करते हैं, न पक्के घर बनाते हैं. उनका सब कुछ जंगल से आता है खाना, आश्रय और उनके विश्वास तक. लेकिन अब उनका जीवन खतरे में है. Survival International की रिपोर्टों के अनुसार, अवैध कटाई और जंगलों पर कब्जे के कारण उनकी जमीन हर दिन घटती जा रही है. फिर भी आवा लोग अपने जंगल और परंपरा दोनों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी कहानी सिर्फ जीने की नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ जीने की है. 

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Govind Jee
Govind Jee
गोविन्द जी ने पत्रकारिता की पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल से की है. वे वर्तमान में प्रभात खबर में कंटेंट राइटर (डिजिटल) के पद पर कार्यरत हैं. वे पिछले आठ महीनों से इस संस्थान से जुड़े हुए हैं. गोविंद जी को साहित्य पढ़ने और लिखने में भी रुचि है.

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