वाशिंगटन : मंगल पर मौजूद एक प्राचीन महासागर में कभी पृथ्वी के आर्कटिक सागर से ज्यादा पानी था लेकिन यह लाल ग्रह इस जल का 87 प्रतिशत हिस्सा अंतरिक्ष में गंवा बैठा. मंगल की सतह पर इस सागर द्वारा घेरा गया क्षेत्र पृथ्वी पर अटलांटिक महासागर द्वारा घेरे गए क्षेत्र से कहीं ज्यादा है.
एक नये अध्ययन में यह पाया गया है. वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने ग्रह के वातावरण के निरीक्षण के लिए और इस वातावरण के विभिन्न हिस्सों में जल के गुणों के चित्रण के लिए डब्ल्यू एम केक वेधशाला और नासा की इंफ्रारेड टेलीस्कोप फैसिलिटी में ईएसओ की बहुत बडी दूरबीन और उपकरणों का इस्तेमाल किया.
शोधकर्ताओं ने कहा कि लगभग चार अरब साल पहले मंगल ग्रह पर पर्याप्त मात्रा में जल था, जो ग्रह की पूरी सतह पर लगभग 140 मीटर की गहराई तक फैल सकता था लेकिन इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि यह द्रव मंगल के उत्तरी गोलार्ध के लगभग आधे हिस्से में और कुछ अन्य क्षेत्रों में एक महासागर की शक्ल में एकत्र हो गया, जिनकी गहराई 1.6 किलोमीटर से ज्यादा थी.
साइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित शोधपत्र के प्रमुख लेखक और अमेरिका में नासा के ग्रीनबेल्ट स्थित गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक जी. विलेनुएवा ने कहा, ‘हमारा अध्ययन इस बात का ठोस आकलन पेश करता है कि किसी समय मंगल पर कितना पानी था. वह इस बात का पता यह मापकर लगाता है कि कितना पानी अंतरिक्ष में समाप्त हो गया.’
विलेनुएवा ने कहा, ‘इस काम के साथ हम मंगल पर जल के इतिहास को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं.’ यह नया आकलन मंगल के वातावरण में जल की दो थोडी भिन्न किस्मों के विस्तृत मापन पर आधारित है. इनमें से एक रूप तो जल की सबसे स्वाभाविक किस्म है, जो कि हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन के एक परमाणु से बनी है.
दूसरी किस्म एचडीओ की है, जिसे अर्द्ध भारी जल भी कहा जाता है. इसमें हाइड्रोजन के एक परमाणु को इसका ही थोडा भारी समरुप यानी ड्यूटीरियम प्रतिस्थापित कर देता है. चूंकि ड्यूटीरियम वाला जल सामान्य जल से भारी है इसलिए यह वाष्पन के जरिए अंतरिक्ष में आसानी से नहीं जाता. इसलिए ग्रह से जितना ज्यादा जल कम हुआ, यहां एचडीओ और एच2ओ में उतना ही बडा अनुपात होगा.