28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जयंती पर विशेष : अद्वितीय बलिदानी श्री गुरु गोविंद सिंह जी

जसबीर सिंह, सेवानिवृत्त महाप्रबंधक, एसबीआइ गुरु गोविंद सिंह जी अद्वितीय बलिदानी थे. अापने देश की सेवा में अपने पिता, चारों पुत्र, अपनी माता जी एवं स्वयं का बलिदान कर दिया. इसके समकक्ष उदाहरण इतिहास के किसी पन्ने में ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता. अापने अन्याय एवं अत्याचार से जूझने में सर्व-वंश का बलिदान कर दिया, […]

जसबीर सिंह, सेवानिवृत्त महाप्रबंधक, एसबीआइ

गुरु गोविंद सिंह जी अद्वितीय बलिदानी थे. अापने देश की सेवा में अपने पिता, चारों पुत्र, अपनी माता जी एवं स्वयं का बलिदान कर दिया. इसके समकक्ष उदाहरण इतिहास के किसी पन्ने में ढूंढ़ने से भी नहीं मिलता. अापने अन्याय एवं अत्याचार से जूझने में सर्व-वंश का बलिदान कर दिया, पर कभी हार नहीं मानी. सजे हुए दीवान में जब बच्चों की माता जी ने पूछा कि बच्चे कहां हैं, तो आपका जवाब था-
‘इन पुत्रन के सीस पर, वार दिए सुत चार
चार मूए तो किआ हुआ, जीवत कई हजार.’
अपने जीवन का उद्देश्य व्यक्त करते हुए आपने ‘वचित्र नाटक’ में कहा-
‘धर्म चलावन संत उबारन, दुष्ट सभन को मूल उपारन,
यही काज धरा हम जनमं, समझु लेहु साधू सब मनमं.’
धर्म की रक्षा, संत पुरुषों का उद्धार और दुष्टों का सफाया करने के लिए ही मैंने जन्म लिया है. इसलिए गुरुजी के लिए यह एक सामान्य युद्ध नहीं था अपितु यह धर्म-युद्ध था. अपनी कृति ‘जफरनामा’ जो अौरंगजेब को लिखा गया ‘विजय पत्र’ है, अपने उसकी धर्मांधता, आतंक और अत्याचार का घोर विरोध करते हुए, इस प्रकार उसको लिखा-
‘चूं कार अज हमा हीलते दर गुजश्त,
हलाल असत बुरदन बा शमीशीर दसत.’
अर्थात जब भी मार्ग, उपाय अवरुद्ध एवं विफल हो जायें, तो अत्याचार और अधर्म के विरुद्ध खड़ग धारण करना सर्वथा उचित है. कहना नहीं होगा कि वे अकारण युद्ध के प्रेमी नहीं थे वरन् धर्म-युद्ध के प्रेमी थे. उनका लक्ष्य युद्ध नहीं, युद्ध का अंत था. ये बात भी गौर करने की है कि उनके अनुयायियों में अनेक मुसलमान भी थे जिन्होंने इस धर्म-युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर उनकी सहायता की थी.
‘अकाल पुरुष’ परमात्मा की वंदना करते हुए आप सिर्फ ये वरदान मांगते हैं कि शुभ कार्यों के सम्पादन में भी कभी भी पीछे नहं हटूं और धर्म-युद्ध में शत्रुओं का नाश कर निश्चय ही विजय प्राप्त करूं. अापने कहा-
‘देह शिवा वर मोहि इहै शुभ करमन ते कबहूं न टरौं,
न डरों अरि सो जब जाइ लरों, निशचै कर अपनी जीत करों.’
गुरु गोविंद सिंह जी बाहरी कर्मकांडों की वर्जना करते थे और लोगों को अंधविश्वास की बेड़ियों से मुक्ति पाने की सलाह देते थे. अापके अनुसार ईश्वर से सच्चे प्रेम का नाता जोड़ना चाहिए और उसकी संतान-मानवमात्र से ऊंच-नीच का भाव त्याग कर प्यार, विनम्रता एवं भाईचारे का भाव होना चाहिए. अापने कहा –
‘‘साच कहों सुन लेह सभै
जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पाइयो’’
प्रसिद्ध आर्य-समाजी लाला दौलत राय ने गुरु जी के लिए अपनी श्रद्धांजलि के उद्गार इस तरह व्यक्त किये हैं-
श्री गुरु गोविंद सिंह केवल सिख पंथ के गुरु नहीं, वरन विश्व के महान लोक-नायक और युग-प्रवर्तक महापुरुष थे. उनका व्यक्तित्व असाधारण और बहुमुखी था. वे लोकप्रिय धार्मिक गुरु भी थे और प्रगतिशील समाज सुधारक भी, चतुर राजनीतिज्ञ भी थे और सच्चे देश भक्त भी, कुशल सेनानी भी थे और निर्भीक योद्धा भी, दार्शनिक विद्वान भी थे और ओजस्वी महाकवि भी.
राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और साहित्यिक क्षेत्रों में से किसी एक-दो को चुन कर प्रयत्न करनेवाले महापुरुष तो समय-समय पर अनेक हुए हैं परंतु उक्त सभी क्षेत्रों में समान रूप से अद्वितीय, श्री गोविंद सिंह जैसे महापुरुष विश्व इतिहास में दुर्लभ हैं.
प्रसिद्ध सूफी कवि किबरीया खां उनके बारे में अपने उद्गार इस तरह प्रकट करते हैं –
‘क्या दशमेश पिता तेरी बात करूं जो तने परोपकार किये,
एक खालस खालसा पंथ सजा, जातों के भेद निकाल दिये,
इस तेग के बेटे तेग पकड़, दुखियों के काट जंजाल दिये,
उस मुलको-वतन की खिदमत में, कहीं बाप दिया कहीं लाल दिये.’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें