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मुंशी प्रेमचंद की जयंती आज : कौन सोचेगा कलम के सिपाही की प्रतिमा इस हाल में क्यों?

प्रेमचंद रंगशाला के पास प्रेमचंद गोलंबर है. कभी इसकी स्थापना कथा सम्राट को सम्मान देने के लिए हुई थी. लेकिन आज इसके हालात देखकर यही लगता है कि हम प्रेमचंद को हर दिन अपमानित कर रहे हैं. साहित्य के प्रति सरकारी अधिकारियों की संवेदनशीलता देखनी हो तो एक बार यहां घूम आये. यह गोलंबर बहुत […]

प्रेमचंद रंगशाला के पास प्रेमचंद गोलंबर है. कभी इसकी स्थापना कथा सम्राट को सम्मान देने के लिए हुई थी. लेकिन आज इसके हालात देखकर यही लगता है कि हम प्रेमचंद को हर दिन अपमानित कर रहे हैं.
साहित्य के प्रति सरकारी अधिकारियों की संवेदनशीलता देखनी हो तो एक बार यहां घूम आये. यह गोलंबर बहुत कुछ कहता नजर आयेगा. अव्वल तो यह कि आज भी यहां लगी प्रतिमा सिस्टम की नजर में साहित्य के बौनेपन का एहसास दिलाती है. किसी गोलंबर पर इतनी छोटी प्रतिमा का दिखना आपको आश्चर्य में डाल सकता है. यहां लगा शिलापट्ट भी इतना बदहाल है कि इसपर लिखा पढ़ना भी मुश्किल है.
सरकारी पदाधिकारियों और मंत्रियों के स्तर से कई बार घोषणाएं हाे चुकी हैं कि इस प्रतिमा की जगह प्रेमचंद की बड़ी सी प्रतिमा यहां लगायी जायेगी लेकिन यह सब आज तक नहीं हुआ. नयी प्रतिमा लगना तो दूर इस गोलंबर की कभी साफ – सफाई भी नहीं होती. हद तो यह कि आज प्रेमचंद जयंती है लेकिन एक दिन पहले तक यहां सफाई या रंगाई – पुताई का काम नहीं हुआ. शायद अधिकारियों को यह जरूरी नहीं लगा होगा.

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