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कुछ सावधानियां बरत किडनी रोग से बचें

डॉ प्रज्ञा पंत एमबीबीएस, एमडी, डीएम नेफ्रोलॉजी नेफ्रोलॉजिस्ट, आर्किड मेडिकल सेंटर, रांची शरीर में किडनी का मुख्य कार्य शुद्धीकरण का होता है. लेकिन शरीर में किसी रोग की वजह से जब दोनों किडनी अपना सामान्य कार्य करने में अक्षम हो जाते हैं, तो इस स्थिति को हम किडनी फेल्योर कहते हैं. अगर किसी को किडनी […]

डॉ प्रज्ञा पंत
एमबीबीएस, एमडी, डीएम नेफ्रोलॉजी
नेफ्रोलॉजिस्ट, आर्किड मेडिकल सेंटर, रांची
शरीर में किडनी का मुख्य कार्य शुद्धीकरण का होता है. लेकिन शरीर में किसी रोग की वजह से जब दोनों किडनी अपना सामान्य कार्य करने में अक्षम हो जाते हैं, तो इस स्थिति को हम किडनी फेल्योर कहते हैं.
अगर किसी को किडनी कि बीमारी हो जाती है, तो तुरंत गुर्दा (किडनी) रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए. दरअसल, समय पर सही इलाज होने से डायलिसिस से बचा जा सकता है. लोगों में अक्सर यह भ्रम रहता है कि किडनी रोग का मतलब ही डायलिसिस होता है. डायलिसिस पर जाने वाले हर 100 मरीज में से 50 मरीज ऐसे होते हैं, जो मात्र दवाई, जीवनशैली और खान-पान में बदलाव लाकर ही स्वस्थ रह सकते हैं.
इलाज करवाने से बेहतर है बचाव : किसी भी रोग का इलाज करवाने से हमेशा बेहतर होता है, उससे बचाव करना. यह बात गुर्दा रोगों के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि अक्सर यह रिवर्सिबल नहीं होता. बचाव के लिए जीवनशैली में कुछ बदलाव जरूरी है, जैसे – शुगर तथा बीपी पर कंट्रोल रखना, अपने आहार में नमक तथा मांसाहारी चीजों को शामिल नहीं करना, मोटापा पर कंट्रोल रखना, नियमित व्यायाम को अपने दिनचर्या में शामिल करना, धूम्रपान न करना आदि.
डायबीटिक व बीपी के मरीज ज्यादा : नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ प्रज्ञा पंत बताती हैं कि अस्पताल में किडनी के मरीजों में से ज्यादातर डायबीटिक नेफ्रोपैथी तथा बीपी नेफ्रोपैथी के मरीज काफी आते है. डायबिटीज तथा बीपी का अनियंत्रित रहना ही इनका मुख्य कारण है.
शुगर या बीपी कंट्रोल में न रहे तो उससे अनेक बड़ी बीमारियों से हम ग्रसित हो सकते हैं. किडनी की बीमारी भी उनमें से एक है. डायबीटिक नेफ्रोपैथी में शरीर सूजने लगता है, जो पैरों से शुरू हो़ता है. डायबीटिक नेफ्रोपैथी के मरीजों में शुगर को कंट्रोल में रख कर साथ में किडनी की दवाइयां दी जाती हैं. ऐसे में किडनी के मरीजों को समय-समय पर बेहतर देखभाल की जरूरत होती है.
आनुवंशिक रोग भी इसमें शामिल : किडनी रोग में जेनेटिक बीमारियां भी शामिल हैं. आमतौर पर शुरुआत में इसका पता लगाना मुश्किल है तथा टेस्ट में भी इसके लक्षण सामने नहीं आते. इसमें मरीज के किडनी में सिस्ट बन जाता है, जिससे किडनी का आकार बड़ा होने लगता है. ज्यादातर मरीज को 40 वर्ष की आयु में इसका अनुमान होता है.
कब पड़ती है डायलिसिस की जरूरत : जब किडनी की कार्य क्षमता 80-90 प्रतिशत तक घट जाती है, तो यह स्थिति किडनी डिजीज की होती है. इसमें अपशिष्ट उत्पाद और द्रव शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं.
विषाक्त पदार्थ जैसे – क्रिएटिनिन और अन्य नाइट्रोजन अपशिष्ट उत्पादों के रूप में शरीर में जमा होने से मतली उलटी, थकान सूजन और सांस फूलने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इन्हें सामूहिक रूप से यूरीमिया कहते हैं. ऐसे समय में सामान्य चिकित्सा प्रबंधन अपर्याप्त हो जाता है और मरीज को डायलिसिस शुरू करने की आवश्यकता होती है. ब्लड में यूरिया, क्रिएटिनिन अत्यधिक बढ़ जाने पर डायलिसिस करनी पड़ती है.
इन आदतों से बचें
पेशाब आने पर करने न जाने से किडनी खराब हो सकती है.
पानी कम मात्रा में पीने से किडनी को खतरा रहता है.
शुगर के इलाज में लापरवाही करने से भी किडनी पर असर होता है.
अधिक मात्रा में मांस खाने से किडनी कमजोर हो सकती है.
पेन किलर लगातार लेना किडनी के लिए बेहद हानिकारक होता है.
ज्यादा शराब पीने से लिवर के साथ-साथ किडनी भी खराब होने लगती है.
काम के बाद जरूरी आराम न करने से किडनी पर बुरा असर पड़ता है.
बरतें सतर्कता
जिनको डायबिटीज है.
जिन्हें उच्च रक्तचाप की समस्या है.
जिनको हृदय संबंधी बीमारी है.
यदि परिवार में किसी को किडनी की बीमारी है.
यदि 40 साल से ज्यादा उम्र हो.
किडनी रोग के लक्षण
शरीर में सूजन आना.
पेशाब की मात्रा कम होना, पेशाब में जलन, लाल पेशाब होना.
अत्यधिक कमजोरी, उलटी या खून की कमी.
अचानक से शुगर के मरीज का शुगर कम हो जाना.
किडनी रोग की जांच
खून में यूरिया, क्रिएटिनिन की मात्रा, पेशाब की जांच
पेट का अल्ट्रासाउंड.
डायलिसिस पर जा चुके
मरीज के लिए सावधानियां
आहार में लिक्विड चीजें कम लेनी चाहिए. किडनी खराब होने पर खून की सफाई के प्रॉसेस में रुकावट आती है और आमतौर पर मरीज को पेशाब भी कम आने लगता है.
लिक्विड चीजों में पानी के अलावा दूध, दही, चाय, कॉफी, आइसक्रीम, बर्फ और दाल-सब्जियों की तरी शामिल हैं. इसके अलावा चावल और ब्रेड आदि में भी पानी होता है.
लिक्विड पर कंट्रोल रखने से दो डायलसिस के बीच में मरीज का वजन अधिक नहीं बढ़ता. दो डायलिसिस के बीच में ज्यादा वजन बढ़ने से डायलिसिस का प्रॉसेस पूरा होने पर कई बार कमजोरी या चक्कर आने की शिकायत भी होने लगती है.
डायट चार्ट के अनुसार ही चलें.
बीमारी में खान-पान पर कंट्रोल बहुत जरूरी है. डायट एक्सपर्ट की सलाह जरूरी है.
कोई भी दवाई लेने से पहले किडनी रोग विशेषज्ञ से सलाह लें.

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