शुक्रवार को, चौथा बिम्सटेक सम्मेलन अट्ठारह बिंदुओं की घोषणा के साथ खत्म हो गया. इस घोषणा के बाद उम्मीद की जा रही है कि यह बिम्सटेक के अधिकार क्षेत्रों में आर्थिक और तकनीकी गतिविधियों को प्रसार देगा व इनमें बढ़ोतरी होगी. इसके अतिरिक्त, बिम्सटेक के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों ने बिम्सटेक ग्रिड इंटरकनेक्शन को स्थापित करने के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर भी किया.
बिम्सटेक के चेयरमैन केपी शर्मा ओली ने समापन के अवसर पर कहा कि, चौथे बिम्सटेक सम्मेलन में बंगाल की खाड़ी की क्षेत्रीय परिधि में शांति, सामंजस्य और सद्भावना कायम करने सहित सभी पहलुओं पर गंभीरता से बातचीत की गयी. बिम्सटेक सम्मेलन 2018 में, आतंकवाद के बढ़ते प्रभाव, राष्ट्रीय सुरक्षा, नशीले पदार्थों की अवैध व्यापार, साइबर क्राइम, प्राकृतिक आपदा, कारोबार एवं संपर्क से जुड़े विषयों पर चर्चा की गयी और आपसी सहयोग मजबूत बनाने पर जोर दिया गया.
पिछला बिम्सटेक सम्मेलन साल 2016 में गोवा में हुआ था और उस दौरान भी आतंकवाद को लेकर आपसी एकजुटता बढ़ाने और उसका मिलकर सामना करने पर विचार-विमर्श किया गया था. इस बैठक में भी सामूहिक स्वर में कहा गया था कि आतंकी गतिविधियों को किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किया सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, नेपाल के राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के साथ बैठक की. भारत और इन देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई.
क्या बोले प्रधानमंत्री मोदी!
बिम्सटेक सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बिम्सटेक के देश हिमालय और बंगाल की खाड़ी के बीच में आते हैं, जिससे बाढ़, चक्रवाती तूफान और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बना रहता है. इस स्थिति में बिम्सटेक देशों को मानवीय सहायता और आपदा राहत के लिए सहयोग और संपर्क बढ़ाने के लिए साथ आना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारा एक-दूसरे का सहयोग करना और आपस में सामंजस्य बिठाना जरूरी है. उन्होंने कहा कि बिम्सटेक देश सिर्फ कूटनीतिक संबंध बनाने ही साथ नहीं आये हैं, अपितु संस्कृति, इतिहास, कला, भाषा, खान-पान की संस्कृति भी जोड़ने आये हैं.
नरेंद्र मोदी ने सभी सदस्यों के सामने कृषि अनुसंधान और अन्य विभिन्न क्षेत्रों पर सम्मेलन की मेजबानी करने की भी पेशकश की. उन्होंने नालंदा यूनिवर्सिटी में बंगाल की खाड़ी की कला, संस्कृति और अन्य विषयों पर अनुसंधान के लिए ‘सेंटर फार बे ऑफ बंगाल स्टडीज’ स्थापित करने की योजना की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि आज सारे देश आतंकवाद और सीमा पार के अपराधों से जूझ रहे हैं. यह बात रखते हुए, उन्होंने नशीले पदार्थों की तस्करी का आतंकी नेटवर्कों से जुड़े होने का उदाहरण भी दिया. सभी सदस्यों को आमंत्रण देते हुए उन्होंने कहा कि भारत नार्कोटिक्स से जुड़े सभी मुद्दों पर बिम्सटेक के अंतर्गत ही सम्मेलन की मेजबानी करना चाहता है. नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक देशों को भारत के ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों का साझीदार बताया.
नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में बिम्सटेक महिला सांसदों के लिए विशेष फोरम की स्थापना का प्रस्ताव भी रखा और बिम्सटेक यूथ कॉन्क्लेव और बैंकिंग कॉन्क्लेव को शुरू करने का प्रस्ताव भी रखा. बिम्सटेक में शामिल हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने अपने ट्विटर अकॉउंट पर लिखा कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं की बिम्सटेक प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने की प्रतिबद्धता के साथ यह शिखर सम्मेलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया.’ शुक्रवार को सम्मेलन में शामिल होने के अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने म्यांमार के राष्ट्रपति विन मिन्त, थाइलैंड के प्रधानमंत्री प्रयुथ चान ओचा और भूटान सरकार के मुख्य सलाहकार दाशो शेरिंग वांगचुक से भी मुलाकात की.
भारत के लिए बिम्सटेक
बिम्सटेक मुख्य उद्देश्य बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के बीच तकनीकी और आर्थिक सहयोग स्थापित करना है. एक्ट ईस्ट पॉलिसी और नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी को लेकर बिम्सटेक भारत के लिए महत्वपूर्ण है. भारत ने अक्तूबर 2016 में उरी में हुए आतंकवादी हमले के बाद अगले महीने पाकिस्तान में होने जा रहे सार्क सम्मेलन का बहिष्कार किया और पाकिस्तान को कारण बताया था. भारत आज भी अपने कदम पर कायम है और अब बिम्सटेक पर पूरा ध्यान दे रहा है.
सार्क की स्थिति
भारत ने सार्क को लेकर फिर कहा है कि पाकिस्तान द्वारा सीमा पर हो रही आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देते रहने की स्थिति में सक्रिय होना बहुत मुश्किल है. भारत के अनुसार, उसने पाकिस्तान द्वारा सार्क देशों के कार्यों में अड़ंगा डालने, सार्क क्षेत्र में चल रही विध्वंसकारी शक्तियों की गतिविधियों के कारण ही खुद को इससे दूर किया है. सार्क सम्मेलन वर्णानुक्रम के अनुसार सदस्य देशों के भीतर दो वर्षों के अंतराल पर आयोजित होता था. काठमांडू में, 2014 में हुए सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्साहित होकर प्रतिभाग किया था. लेकिन, उसके बाद से भारतीय रणनीतियों में बहुत परिवर्तन आया है. भारत अभी सार्क का बहिष्कार किये हुए है, जिसके बाद से ऐसी सूरत नहीं बन पायी है, जिससे दोबारा सदस्य देश सार्क सम्मेलन आयोजित किये जाने की दिशा में कदम बढ़ा सकें. इमरान खान के प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए जाने के बाद पाकिस्तान के राजनयिकों ने कहा है कि हम नये सिरे से कोशिश कर रहे हैं कि बातचीत शुरुआत की जाये और इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन आयोजित किया जाये. भारत का साफ कहना है कि ‘टॉक एंड टेरर’ एक साथ नहीं चल सकता. हालांकि, हाल ही में इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री चुने जाने पर नरेंद्र मोदी ने निजी तौर पर बधाई दी थी, जिसका सबने स्वागत किया थी. पाकिस्तान भी अब इस कोशिश में है कि बातचीत का सिलसिला शुरू किया जाये. इमरान खान ने भी इसके संकेत दिये हैं और कहा है कि बातचीत से ही किसी भी समस्या का हल निकल सकता है. भारत ने भी समय-समय पर यह महसूस किया है कि सार्क के बहिष्कार से दक्षिण एशियाई देशों के बीच अपना दबदबा कायम करने के मौके खो रहा है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान श्रीलंका सार्क के सदस्य हैं.
पाकिस्तान के लिए चिंता
पाकिस्तान द्वारा आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन किये जाने के कारण भारत ने 2016 में पाकिस्तान का बहिष्कार का आह्वान किया था जिसे दक्षिण एशियाई देशों ने अपना समर्थन दिया था. इसके बाद इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन को टाल दिया गया था. इस घटना के माध्यम से भारत ने लगातार पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई देशों के बीच हाशिये पर धकेला है, जिससे पाकिस्तान की छवि को नुकसान पहुंचा है. इधर बिम्सटेक के माध्यम से भारत दक्षिण एशिया में अपना दबदबा बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील है. इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद राजनीतिक हलकों में यह बात चल रही है कि अब पाकिस्तान नये सिरे से दक्षिण एशियाई देशों, खासकर भारत से बातचीत का सिलसिला शुरू करेगा.