दशमत सोरेन
विविध पर्व एवं त्योहार हमारे जीवन में सामाजिक, धार्मिक, वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक सभी दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. ये हमें हमारी धार्मिक परंपरा एवं संस्कृति से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. पर्व-त्योहार में स्वच्छ-निर्मल मन से हम ईश्वर की पूजा व उपासना करते हैं. हम ईश्वर के साथ एकाकार होने का प्रयत्न करते हैं. भाई-बहन के प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन के दिन आदिवासी संताल समुदाय के लोग गोमहा पर्व मनाते हैं.
इस दिन वे करम देवता की पूजा अर्चना करते हैं. गांव के युवा पास के वन में जाकर करम डाली को काटकर लाते हैं. मांदर व नगाड़े की थाप पर नाचते-गाते हुए गांव के अखड़ा में पूजन-विधि के साथ उसे स्थापित करते हैं. गांव के समस्त ग्रामीण उस करम डाली को करम देवता का प्रतीक मानकर अच्छी फसल व परिवार के सभी लोगों की मंगल कामना करते हैं. गांव की महिलाएं करम देवता को धूप-दीप जलाकर चुमावन करती हैं.
अपने घर को धन संपत्तियों से भरा-पूरा व परिवार में हमेशा हंसी-खुशी का माहौल बनाये रखने के लिए प्रार्थना करती हैं. संताल समाज में मान्यता है कि करम देवता की श्रद्धा व भक्ति भाव से पूजा करने वाले के घर में कभी भी धन-संपत्ति की कमी नहीं होती है. उनकी हमेशा कृपा दृष्टि बनी रहती है.
रिंझा व डंठा नृत्य से होता है करम देवता का स्वागत आदिवासी समुदाय में हर पर्व-त्योहार के अलग-अलग नृत्य हैं. गोमहा के खास मौके पर रिंझा व डंठा नृत्य किया जाता है. यह नृत्य करम देवता के स्वागत में प्रस्तुत किया जाता है. महिला व पुरुष जो भी इस नृत्य में शामिल होते हैं वे पारंपरिक लिबास में होते हैं.
हाल के दिनों में कई जगहों पर यह देखने को मिला है कि लोग गोमहा पर्व तो मनाते हैं लेकिन वे करम देवता की पूजा नहीं करते हैं. इस वजह से वहां रिंझा व डंठा नृत्य भी नहीं होता है. रिंझा नृत्य विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है.
काड़ो-कुइली की कथा
आदिवासी संताल समुदाय में भाई-बहन के बीच राखी बांधने का चलन तो नहीं है लेकिन राखी पर्व के दिन अर्थात गोमहा पर्व के दिन संताल समुदाय भाई-बहन काड़ो व कुइली को स्मरण जरूर करता है. यह महज संयोग है कि दोनों पर्व एक ही दिन मनाये जाते हैं.
बड़े-बुजुर्ग बाते हैं : माता-पिता की मृत्यु के बाद भाई-बहन अपने मामा के घर में रहने के लिए चले गये. मामा अपने भांजे व भांजी को काफी प्रेम करते थे. लेकिन उनकी मामी दोनों का नापसंद करती थी. वह दोनों से घर के कामकाज कराती थी.
सामाजिक मान्यता है कि गोमहा पर्व के दिन मामी ने भांजे-भांजी को खेत में काम करने के लिए भेज दिया. इस बात का पता जब मामा को चला तो वे दौड़े-दौड़े खेतों में गये. तब वे देखते हैं कि उनके भांजे-भांजी का आधा शरीर सांप के रूप में बदल गया था.
मामा दोनों को घर आने को कहते हैं. लेकिन वे घर लौटने से मना कर देते हैं. इसके दोनों संपूर्ण रूप से सांप के शरीर में परिवर्तित हो जाते हैं और कहीं निकल जाते हैं. इस वजह से आज भी गोमहा पर्व के दिन भांजे व भांजी को काम पर नहीं भेजा जाता है.