!!राजेंद्र कुमार!!
लखनऊ : यूपी की 17 वीं विधानसभा चुनाव की औपचारिक शुरुआत बुधवार को मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने कर दी. सात चरणों में होनेवाला चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है. चुनावों के नतीजों से केवल यह भर तय नहीं होगा कि यूपी में राज कौन करेगा, बल्कि इससे 2019 में केंद्र की सत्ता पर किस दल का कब्जा होगा? इसकी नयी इबारत लिखने की शुरुआत भी होगी. यही नहीं 2019 की जंग के लिए कौन सा दल, कहां और किसके साथ खड़ा होगा? यह बहुत कुछ यूपी चुनावी नतीजे तय करेंगे. जहां तक यूपी के चुनावी परिदृश्य की बात है, तो वह वर्ष 2012 के मुकाबले 2017 में काफी बदल चुका है. 2012 में चुनाव के समय सपा बहुत आक्रमक तेवर के साथ मैदान में थी. चूंकि उस वक्त वह सत्ता में नहीं थी इसलिए उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं थी. तब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव ने मायावती सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के मुद्दे को जम कर भुनाया था.
छात्रों को फ्री में लैपटॉप देने सरीखी योजना और डीपी यादव सरीखे दंबगों को राजनीति से दूर रखने जैसी अपनी सोच को उजागर करते हुए तब अखिलेश पार्टी संगठन की मदद से यूपी की सत्ता पर काबिज हो गये थे. लेकिन अब जब अखिलेश को फिर जनता के बीच जाना है, तो तसवीर बिल्कुल उलट है. सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश पार्टी पर वर्चस्व के लिए अपने ही पिता से झगड़ रहे हैं. चार महीने से यह संघर्ष चल रहा है. चुनाव चिह्न साइकिल को कब्जे में करने के लिए मुलायम और अखिलेश खेमा चुनाव आयोग के दरवाजे तक पहुंच गया है. सपा में दो फाड़ हो गया. सपा से जुड़े सांसद और विधायक इस संघर्ष से उलझन में हैं. वही हाल सपा समर्थक मुसलिम और यादव समाज का भी है. उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि चुनाव में सपा का क्या होगा. सपा मुखिया को पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने के चलते अखिलेश यादव की ईमानदार और सीधे साधे व्यक्ति की छवि दागदार हुई है, जो पिता का नहीं वह प्रदेश का कैसे होगा ? इस तरह के आरोप अखिलेश पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्या जनता के बीच लगा रहे हैं, तो मायावती उन्हें बबुआ मुख्यमंत्री बताते हुए मुजफ्फनगर दंगे के लिए जिम्मेदार ठहराती हैं.
अब इन हमलों का जवाब अखिलेश यादव को जनता के बीच देना होगा. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी चुनाव में जुटे हैं. वर्ष 2012 के चुनाव से लेकर आज तक कांग्रेस की स्थिति में कोई खास अंतर नहीं आया. बेनी प्रसाद वर्मा जैसे नेता कांग्रेस से नाता तोड़कर मुलायम सिंह यादव के साथ खड़े हैं. ऐसे में कांग्रेस नेता बिहार की तर्ज पर रालोद, जदयू और कुछ अन्य दलों के साथ मिल कर चुनाव लड़ने की तैयारी में है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यूपी की सत्ता पर भाजपा और बसपा को काबिज होने से रोकने के लिए अखिलेश को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन अभी बात बनी नहीं है. यूपी में अपने को सत्ता की प्रमुख दावेदार बतानेवाली बसपा सुप्रीमो मायावती चुनावों को लेकर खासी गंभीर दिख रही हैं.403 सीटों पर चुनाव लड़नेवाले सभी उम्मीदवार तय कर लिए हैं.
मायावती यूपी में मुसलिम और दलित वोटों को लाने के लिए 97 मुसलिम प्रत्याशी चुनाव में उतारने जा रही हैं. मायावती अपने पुख्ता चुनावी रणनीति और आक्रमक अंदाज से केंद्र सरकार और प्रदेश की अखिलेश सरकार पर हमले कर रही हैं. भाजपा ने अमित शाह की देखरेख में पार्टी यूपी की सत्ता में पहुंचने का प्लान तैयार किया है. जिसके तहत ही रैली, पंचायत और सम्मेलनों से भाजपा नेता बसपा, सपा और कांग्रेस सरकारों की खामियां बता रहे हैं.

