रांची : आज कुरमी संघर्ष मोरचा का चक्का जाम है. स्व सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को राज्यसभा का प्रत्याशी नहीं बनाये जाने के खिलाफ मोरचा ने चक्का जाम की घोषणा की है. सुधीर महतो का परिवार आंदोलनकारी रहा है. झारखंड के आंदोलन में निर्मल दा का योगदान कोई भूल नहीं सकता.
सुधीर महतो के निधन के बाद उनकी पत्नी सविता महतो को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा झारखंड मुक्ति मोरचा ने की थी. सविता माटी की बेटी है. ऐसे लोगों को राज्यसभा जाना भी चाहिए. आम अवाम भी यही चाहता है. लेकिन, यह जिम्मेवारी राजनीतिक दलों की थीं.
राजनीतिक दलों की छांव में जीत कर आनेवाले विधायकों की थी. सुधीर महतो और उनके पूरे परिवार ने झामुमो के लिए खून-पसीना बहाया है, तो उस परिवार का कर्ज किस दल पर है. झामुमो ने सविता महतो को राज्यसभा का प्रत्याशी बनाया तो उसके लिए राजनीतिक रास्ता कौन बनाता. गंठबंधन के दलों के बीच समन्वय और दबाव बनाने की जिम्मेवारी किसकी थी.
अफसरों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए तो राजनीतिक सहयोगी घमसान मचा देते हैं. सविता महतो के नाम पर सहमति बनाने के लिए क्या हुआ. सविता महतो के लिए दूसरे दल भी झारखंडी सवाल पर दलीय प्रतिबद्धता छोड़ समर्थन में सामने क्यों नहीं आये.
सविता महतो राज्यसभा नहीं गयीं, इसमें आम जनता का क्या कसूर किसका है. चार फरवरी को चक्का जाम होगा, परेशानी किसको होगी. लोगों की नुमाइंदगी करनेवाले ही जब अपनी जिम्मेवारी न निभायें, तो फिर जनता इसकी कीमत क्यों चुकाये. चक्का जाम से पूरा राज्य अस्त-व्यस्त होगा.
रोटी-रोजी के लिए दूर-दराज से शहर आनेवाले मजदूरों को परेशानी होगी. बच्चों, महिलाओं का सड़क पर चलना मुश्किल होगा. राजनीतिक दावं पेंच में सविता महतो पहले राज्यसभा नहीं जा सकीं, अब राजनीतिक का दूसरा खेल शुरू हो गया है. पूरे मसले को एक जातिगत जामा पहनाने की कोशिश हो रही है. इस पूरे प्रकरण को जातिगत दायरे में देखने से झारखंड का भला होनेवाला नहीं है. राजनीतिक दलों की निष्ठा और मूल्यों को जांचने-परखने का समय है. मूल्यांकन राजनीतिक चरित्र का होना चाहिए.
।। उमापति महतो ।।
(लेखक पेटरवार के निवासी हैं. प्रभात खबर को अपनी भावना पत्र के माध्यम से भेजी. पत्र हम हू-ब-हू छाप रहे हैं)