बूढ़े होने के बाद अधिकतर लोग बुढ़ापे के बारे में सोच-सोच कर डिप्रेशन में आ जाते हैं. इससे उनका स्वास्थ्य और खराब हो जाता है. घर में बैठे रहने से बुजुर्गों के प्रति लोगों का सम्मान भी कम हो जाता है. ऐसे में जरूरत है सकारात्मक सोच के साथ खुद को किसी काम में व्यस्त रखने की. रिटायरमेंट के बाद भी ‘तकि सर’ के लिए कुछ नहीं बदला. आज भी वही दिनचर्या व जिंदादिली उन्हें औरों के बीच खास बनाये हुए है.
‘मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया’.. कुछ ऐसा ही फलसफा है पटना के मो तकिउद्दीन साहब का. जीवन के 74 बसंत देख चुके तकिउद्दीन साहब सीनियर सेकेंडरी स्कूल, गया से प्राचार्य के पद से रिटायर हुए हैं. वर्तमान में मिर्जा गालिब टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज में सेवा भाव से वित्तरहित एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर हैं, साथ ही वह कॉलेज के प्रबंध समिति के सदस्य भी हैं. कॉलेज की स्थापना में भी उनका सक्रिय योगदान रहा है. इनका मुख्य कार्य प्रशासन एवं सलाह से संबंधित है. हालांकि उनके देखने और सुनने की क्षमता कम हो चुकी है, लेकिन जीवन जीने के प्रति उनका जज्बा ही है कि उनका मस्तिष्क आज भी नवयुवकों के सामान तीव्र गति से कार्य करता है. कम दिखने के कारण वे अपना अधिकांश कार्य जूनियर्स को बोलकर करवाते हैं.
रिटायरमेंट के बाद भी बने हुए हैं कर्मचारियों के चहेते
तकिउद्दीन साहब के जूनियर संतोष कुमार जो कॉलेज में लेक्चरर के पद पर कार्यरत हैं, का कहना है कि उनके द्वारा किये गये कार्य 100 प्रतिशत सही एवं कॉलेज को लाभ पहुंचानेवाले होते हैं. उनकी मौजूदगी से ही माहौल खुशनुमा हो जाता है. एक तरफ वो गलतियां करने पर डांटते भी हैं, तो दूसरी तरफ अच्छा काम करने पर प्रोत्साहन भी देते हैं. काम के समय काफी तनाव भरे माहौल को भी अपनी बातों से हल्का बना देते हैं. अत: कॉलेज के कर्मचारियों के बीच उनका काफी सम्मान है. रिटायरमेंट के लिए बाद भी यहां के कर्मचारी उन्हें आज भी उतना ही चाहते हैं.
परिवार से पाते हैं सेवा व सम्मान
पत्नी का देहांत हो चुका है. तीन पुत्र हैं, जिनकी शादी हो चुकी है. एक बैंक मैनेजर, दूसरे का बिजनेस और तीसरे स्कूल में टीचर हैं. पोता-पोती व एक नातिन के साथ भरा-पूरा परिवार है. बच्चों के बीच वे फुरसत के लम्हे बिताना पसंद करते हैं, वहीं जरूरत पड़ने पर उनका मार्गदर्शन भी करते हैं. खुद आत्मनिर्भर हैं, तो पुत्रों पर किसी प्रकार का दवाब नहीं डालते हैं. परिवार भी उन्हें पूरा प्यार, सेवा व सम्मान देता है. वे एक वटवृक्ष की तरह हर पल पूरे परिवार को अपनी छाया देते हैं.
पैसे के लिए नहीं करते हैं काम
इस उम्र में काम करने के बारे में पूछने पर वे बताते हैं कि वे पैसे के लिए काम नहीं करते हैं. वे स्वयं को व्यस्त रखने के लिए काम करते हैं. उनका मानना है कि बूढ़े होने के बाद अधिकतर लोग बुढ़ापे के बारे में सोच-सोच कर डिप्रेशन में आ जाते हैं. इससे उनका स्वास्थ्य और अधिक खराब हो जाता है. वहीं घर में बैठे रहने से बुजुर्गों के प्रति लोगों का सम्मान भी कम हो जाता है. इन्हीं कारणों से वे स्वयं को काम में व्यस्त रख कर बुढ़ापे को खुद से दूर रखते हैं. दिनचर्या के बारे में बताते हैं कि समय अनुशासन का विशेष पालन करते हैं, संयमित जीवन जीते हैं व सादा भोजन ही लेते हैं. इससे सदा ऊर्जावान महसूस करते हैं और जीवन के प्रति सकारात्मक नजरिया पाते हैं.
प्रस्तुति : अजय कुमार
मैं ऐसे रहता हूं स्वस्थ
रात को समय से सोता हूं और सबेरे जल्दी उठ जाता हूं.
प्रतिदिन सूर्योदय से पहले लगभग 25 मिनट मॉर्निंग वाक करता हूं.
हल्का व्यायाम रोजाना करता हूं.
सुबह के नाश्ते में अंकुरित चना, मूंग, सेब, मधु एवं त्रिफला का सेवन करता हूं.
हल्का व सुपाच्य भोजन ही करता हूं.
रात को खाने के बाद थोड़ी देर जरूर टहलता हूं उसके बाद ही सोने जाता हूं.
मो. तकिउद्दीन
(सीनियर सेकेंडरी स्कूल, गया से प्राचार्य के पद से रिटायर्ड एवं वर्तमान में मिर्जा गालिब टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज, पटना में सेवा भाव से एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर की भूमिका में कार्यरत.