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इंजेक्शन में चूक से बच्चे हो सकते हैं अपंग

हर कदम पर स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता जरूरी है. खास कर बच्चों के प्रति इस कार्य में लापरवाही क्षम्य नहीं होती. यह जानना जरूरी है कि इंजेक्शन लगवाने में कभी-कभी चूक कहां हो जाती है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि नीम-हकीमों द्वारा इंजेक्शन लगाने में चूक के कारण अपंगता की स्थिति उत्पन्न हो […]

हर कदम पर स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता जरूरी है. खास कर बच्चों के प्रति इस कार्य में लापरवाही क्षम्य नहीं होती. यह जानना जरूरी है कि इंजेक्शन लगवाने में कभी-कभी चूक कहां हो जाती है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि नीम-हकीमों द्वारा इंजेक्शन लगाने में चूक के कारण अपंगता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. यानी जिस अंग में सुई लगायी गयी होती है वह निष्क्रिय (लकवाग्रस्त) हो सकता है.

सही जगह पर इंजेक्शन न देने के कारण नसें वैक्सीन के संपर्क में आकर सूख जाती हैं और जहां सुई लगायी गयी होती है वह अंग निष्क्रिय हो काम करना बंद कर देता है. इस संबंध में बलिया जनपद के शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अजीत सिंह बताते हैं कि सुई चार तरह से लगायी जाती है- इंट्रा वेनस (नस में), इंट्रा मसकुलर (मांसपेशी में), सबक्यूटैनियस (चमड़ी व मांसपेशी के बीच में) व इंट्रा डरमल (चमड़ी में). अधिकतर इंट्रा मसकुलर में इंजेक्शन लगता है. इसके तहत ग्लूटियल मसल (कमर के पीछे की मांसपेशी के ऊपरी व बाहरी हिस्से में) व डेल्ट्वाइड मसल (बांह के ऊपरी व बाहरी हिस्से में) सुई लगायी जाती है.

बच्चों में ग्लूटियल मसल या डेल्ट्वाइड मसल छोटी होती है, इसलिए सुई लगाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होती. ऐसे में अप्रशिक्षित कंपाउंडर द्वारा ग्लूटियन या डेल्ट्वाइड मसल में कहीं भी इंजेक्शन लगा देने से वैक्सीन का संपर्क नसों से हो जाता है और वहां की नसें सूख जाने से बच्चे का वह अंग निष्क्रिय हो सकता है. ऐसा भी होता है कि सही स्थान पर सुई लगाने के बावजूद मांसपेशी कम होने के कारण वह असुरक्षित स्थान पर चली जाती है और खतरा उत्पन्न हो सकता है.

सरकार व आइएपी (इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स) ने निर्देश जारी किया है कि बच्चों के जांघ के सामने व बाहरी हिस्से (एंटीरोलेटरल) में ही सुई लगायी जाये. डॉ सिंह ने बताते हैं कि बच्चों का इलाज करानेवालों में अधिकांश लोग गांव के भी होते हैं, जो इंजेक्शन लगवाने के लिए नीम-हकीमों या अप्रशिक्षित कंपाउंडरों की शरण लेते हैं. इससे बच्चों में इस तरह की समस्या आने की संभावना बनी रहती है. ऐसा न हो इसके लिए अभिभावकों को सतर्क रहना बेहद जरूरी है.
प्रस्तुति : रंजना सिंह, बलिया

बरतें सावधानी

बच्चों को इंजेक्शन आइएपी के निर्देशानुसार ही लगवाएं.

डिस्पोजेबल सीरिंज का ही प्रयोग करें

एक बार इंजेक्शन लगवा लेने के बाद उस डिस्पोजेबल सीरिंज का प्रयोग दोबारा न करें.

इंजेक्शन लगवाने के बाद उसे तोड़ कर ही फेंकें.

सुई के अगले हिस्से को अंगुली से टच न करें.

Prabhat Khabar Digital Desk
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