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‘बिसात पर जुगनू’ वंदना राग का पहला उपन्यास है. वे समकालीन पीढ़ी की प्रमुख कथाकार हैं और उनकी कहानियों को अपने विषय व वर्णन शैली के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. अपने पहले उपन्यास में उन्होंने 19वीं शताब्दी के एक ऐसे प्रसंग को उठाया है, जिसको लेकर हिंदी क्या, हिंदुस्तान में ही चर्चा […]

‘बिसात पर जुगनू’ वंदना राग का पहला उपन्यास है. वे समकालीन पीढ़ी की प्रमुख कथाकार हैं और उनकी कहानियों को अपने विषय व वर्णन शैली के लिए विशेष रूप से जाना जाता है. अपने पहले उपन्यास में उन्होंने 19वीं शताब्दी के एक ऐसे प्रसंग को उठाया है, जिसको लेकर हिंदी क्या, हिंदुस्तान में ही चर्चा कम होती है.
भारत और चीन के तीन परिवारों के माध्यम से यह उपन्यास कहीं न कहीं यह कहने का प्रयास करता है कि दोनों पड़ोसी देशों को एक तरह से औपनिवेशिक गुलामी झेलनी पड़ी और दमन से गुजरना पड़ा, लेकिन दोनों देशों के लोगों में इतना अपरिचय है. यह सवाल किसी हिंदी उपन्यास में पहली बार उठाया गया है. लेकिन यह उपन्यास एकरैखीय नहीं है. इसमें आयी कहानियों के अनेक सिरे हैं. एक सिरा पटना कलम चित्र शैली से जुड़े परिवारों से जुड़ता है, दूसरा सिरा चांदपुर रियासत से जुड़ता है, तीसरा सिरा चीन के यू यान परिवार से जुड़ता है, जिसकी वंशज ली-ना दशकों बाद भारत आती है और सभी सिरों को जोड़ने का प्रयास करती है.
वह भारत में आ बसे एक चीनी डॉक्टर के चित्र के सहारे उसकी तलाश में आती है और पटना में अपने परिवार के बिसराये गये सिरे उसे मिलते हैं. उपन्यास एक स्तर पर पहचानों के संघर्ष के इस दौर में यह संकेत भी देता प्रतीत होता है कि देश, राष्ट्र, जाति, धर्म कुछ मायने नहीं रखता. इंसान की कामना सदा से प्रेम की रही है, शांति की रही है. यह प्रेम ही है कि चीन का एक बच्चा चांदपुर रियासत में आकर कान्हा सिंह बनकर रहता है और चीनी नहीं, अपनी देसी पहचान के साथ जीवन यापन करता है.
उपन्यास की कहानियों में 1857 की क्रांति, अफीम व्यापार को लेकर अंग्रेजों का शोषण है, नफरत और हिंसा का माहौल है, लेकिन प्रेम है, जो उन्नीसवीं सदी के उस जाति आधारित समाज में भी पटना कलम के कलाकार शंकर लाल को खदीजा बेगम से एक कर देता है, परगासो को ठाकुर सुमेर सिंह से मिला देता है और एक चीनी बच्चे को कान्हा सिंह बना देता है. यह उपन्यास अपने स्त्री किरदारों के लिए भी याद किया जायेगा. चीन की यू यान हो या ली-ना, चांदपुर की खदीजा बेगम या दलित स्त्री परगासो सभी संघर्ष और विद्रोह का प्रतीक हैं.
उपन्यास के शिल्प में रोजनामचे, अखबार की खबरों, इश्तहारों, इतिहास की तिथियों के माध्यम से ऐसा ताना-बाना रचा गया है कि यह एक ऐतिहासिक उपन्यास लगने लगता है, लेकिन इसके सवाल समकालीन हैं, और यह एक राजनीतिक उपन्यास भी लगता है. साल 1840-1910 के बीच के काल की यह कहानी 2001 में पूरी होती है. तब यह उपन्यास इतिहास से ज्यादा भविष्य की कथा लगने लगती है कि एक समय ऐसा आयेगा, जब लोग केवल मनुष्यता की पहचान के साथ जीयेंगे.
बिसात पर जुगनू/ वंदना राग/ राजकमल प्रकाशन/ 299 रुपये
– प्रभात रंजन
Prabhat Khabar Digital Desk
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