अशोक भौमिक
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महात्मा गांधी का वह छापा चित्र
अशोक भौमिक चित्रकार महात्मा गांधी के राजनीतिक जीवन में, ‘दांडी मार्च’ (1930) को एक बेहद महत्वपूर्ण घटना के रूप में याद किया जायेगा. साल 1930 में लाहौर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू करने का प्रस्ताव लिया गया और गांधी ने नमक आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च […]
चित्रकार
महात्मा गांधी के राजनीतिक जीवन में, ‘दांडी मार्च’ (1930) को एक बेहद महत्वपूर्ण घटना के रूप में याद किया जायेगा. साल 1930 में लाहौर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में अंग्रेजी शासन के खिलाफ ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू करने का प्रस्ताव लिया गया और गांधी ने नमक आंदोलन की शुरुआत 12 मार्च 1930 में की, जिसे हम दांडी मार्च के नाम से जानते हैं.
इस यात्रा में गांधी के साथ बहुत बड़ी तादाद में लोग जुटे थे. चित्रकार नंदलाल बोस (1882-1966), जो कि रबींद्र नाथ ठाकुर और महात्मा गांधी के बहुत करीब थे; इस आंदोलन के प्रचार में एक अहम भूमिका निभायी थी. उन्होंने 12 अप्रैल 1930 को लकड़ी पर खुदाई कर महात्मा गांधी का एक छापा चित्र बनाया था.
इस चित्र का आकार न तो ज्यादा बड़ा है और न ही यह बहुरंगी है, पर निर्विवाद रूप से यह भारत की आजादी की लड़ाई का सबसे महत्वपूर्ण चित्र है. एक छापा चित्र होने के कारण, इसके प्रिंट्स व्यापक जनसमाज तक पहुंच सके थे.
इस चित्र के माध्यम से चित्रकार नंदलाल बोस ने महात्मा गांधी की सादगी, आत्मविश्वास और अडिग इरादों वाले व्यक्तित्त्व को अत्यंत सरलता से प्रस्तुत किया था. बहुत जल्द इस चित्र की प्रतिलिपियां देश के कोने-कोने तक पहुंच गयी थीं और यह चित्र गुलामी की जंजीरों से मुक्त होने के लिए एक संघर्षरत राष्ट्र का प्रतीक सा बन गया था.
बेहद सरल लगनेवाले इस चित्र की शक्ति इसकी संरचना में है. काले-सफेद रंग के इस एकवर्णी चित्र में हम न केवल एक ‘चकित कर देनेवाली सरलता’ से ही रूबरू होते हैं, बल्कि ‘वुडकट’ माध्यम पर चित्रकार की गहरी पकड़ से भी परिचित होते हैं. हमें यह चित्र एक रेखांकन जैसा ही लगता है, पर गौर से देखने पर हम इसमें विविध प्रकार की रेखाओं का एक बेहद संतुलित प्रयोग देख पाते हैं.
महात्मा गांधी की चादर के अंदर के हिस्से में, जहा छोटी-छोटी टूटी रेखाओं का प्रयोग है, वहीं महात्मा गांधी के शरीर के लिए लंबी और लयात्मक रेखाओं का प्रयोग किया गया है. चित्र में महात्मा गांधी की आकृति के लिए इन दो प्रकार की रेखाओं के प्रयोग के कारण ही, महात्मा गांधी की कमजोर शारीरिक संरचना के बावजूद, उनकी भंगिमा में एक अद्भुत दृढ़ता का भाव स्पस्ट उभर कर आ सका है.
यह चित्र एक त्रिकोणीय संरचना है (पिरामिड जैसा). गौर से देखने पर इस चित्र में जो आत्मविश्वास और दृढ़ता दिखता है, वह इस विशेष संरचना की वजह से भी है. इस त्रिकोण का निर्माण- चित्र के आधार की एक सरल रेखा, दाहिने हाथ की लाठी और गांधी जी के बाएं पैर से हुआ है.
चित्र में, जहां मूलतः छोटी-बड़ी, टूटी-लंबी लयात्मक रेखाओं का प्रयोग हुआ है, वहीं इसके विपरीत लाठी और आधार रेखा के ‘ज्यामितीय’ और सीधी होने के बावजूद, इस पर हमारी नजर नहीं रुकती है. यह इस चित्र की एक अन्यतम विशेषता है, जो इसको कालजयी बनता है. इसमें संदेह नहीं कि वे लोग, जो गांधी को नहीं जानते या जो इस चित्र के ऐतिहासिक महत्व से अपरिचित हैं, उन्हें भी यह चित्र अपने सरल और उत्कृष्ट कलागुणों के कारण एक महत्वपूर्ण कलाकृति के रूप में सदा आकर्षित करता रहेगा.
यह चित्र किसी भी जनांदोलन में छापा चित्रों (प्रिंटमेकिंग) की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है. साथ ही हमें यह भी बताता है कि एक महान चित्र बनाने के लिए न तो उसका आकार का बड़ा होना अनिवार्य है और न ही कैनवास जैसे माध्यम और रंगों की उपलब्धता ही जरूरी है. चित्रकार नंदलाल बोस द्वारा ‘बापूजी’ शीर्षक से बने इस वुडकट की एक प्रिंट-प्रति दिल्ली स्थित नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट में संरक्षित है.
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