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भारंगम में गुणवत्ता ही नहीं प्रतिनिधित्व भी जरूरी

अमितेश, रंगकर्म समीक्षक बीसवें भारत रंग महोत्सव (भारंगम) का आगाज बीते फरवरी को दिल्ली के कमानी सभागार में हुआ. साल 1999 में पहले भारंगम का आयोजन हुआ था. अगर यह क्रम चलता तो यह 21वां भारंगम होता, लेकिन पिछले साल 20वें भारंगम को स्थगित कर थियेटर ओलम्पिक्स का आयोजन किया गया था. फिर भारंगम का […]

अमितेश, रंगकर्म समीक्षक
बीसवें भारत रंग महोत्सव (भारंगम) का आगाज बीते फरवरी को दिल्ली के कमानी सभागार में हुआ. साल 1999 में पहले भारंगम का आयोजन हुआ था.
अगर यह क्रम चलता तो यह 21वां भारंगम होता, लेकिन पिछले साल 20वें भारंगम को स्थगित कर थियेटर ओलम्पिक्स का आयोजन किया गया था. फिर भारंगम का क्या हुआ? पूछने पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के तत्कालीन निजाम का जवाब होता कि भारंगम स्थगित नहीं किया गया, इसे ओलम्पिक्स में मिला लिया गया है.
इस तर्क से भी यह 21वां आयोजन होना चाहिए, लेकिन इसे बीसवां राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने ही घोषित किया है. ओलम्पिक्स के आयोजन का भारतीय रंगमंच को क्या लाभ हुआ इसका आकलन होना शेष है.
बीसवें भारंगम के उद्घाटन सत्र में अतिथियों में संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, नृत्यांगना सोनल मान सिंह के साथ एनएसडी के भूतपूर्व निदेशक रामगोपाल बजाज भी थे, जो भारंगम के मौलिक सूत्रधार रहे हैं. मंच पर बजाज साहब की मौजूदगी को कमानी सभागार में मौजूद दर्शकों ने जिस अंदाज में सराहा, उससे जाहिर है कि रंगकर्मियों के बीच वे कितना लोकप्रिय हैं.
भारंगम में होनेवाले पिछले उद्घाटन समारोहों के निदेशकों के भाषण की तुलना में कार्यकारी निदेशक सुरेश शर्मा के वक्तव्य में एक ताजगी थी. कई वर्षों से मैंने देखा है कि उद्घाटन समारोह का भाषण एनएसडी के वार्षिक प्रतिवेदन की तरह दिया जाता रहा है.
सुरेश शर्मा ने सख्ती से अपने भाषण को भारंगम पर केंद्रित रखा और साफ किया कि एनएसडी भारंगम की सिर्फ कस्टोडियन है और उसका मुख्य ध्येय रंग प्रशिक्षण है.
भारंगम दर्शकों और रंगकर्मियों का है, वह सिर्फ दिल्ली का नहीं है छोटे शहरों का भी है. भारंगम में केवल गुणवत्ता नहीं प्रतिनिधित्व का भी ध्यान रखा जाता है, इसका उल्लेख करते हुए उन शैलियों से माफी भी मांगी गयी, जिनको भारंगम में प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका.
सुरेश शर्मा ने भारंगम की परिकल्पना के लिए रामगोपाल बजाज को धन्यवाद दिया. वहीं बजाज ने कहा कि दिल्ली में कमानी जैसे 100 सभागार होने चाहिए. रंग प्रशिक्षण की जरूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा मात्र अक्षर की नहीं है, यंत्रों की नहीं है, संवेदन की भी है, वह बाल्यकाल से ही होना चाहिए. संवेदन नहीं रहा है, तो प्रगति हमें राक्षस बना देगी, नाट्य इसमें जरूरी है.
आनंद शेष कहां रहेगा, यदि हम-आप मुस्कुरा न सकेंगे. सोनल मान सिंह ने नृत्य और नाट्य के संबंध और रचने की जिजीविषा को याद किया. संस्कृति मंत्री के भाषण में कार्यकाल पूरा होने की थकान थी. उद्घाटन समारोह में केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले का भाषण भी हुआ.
उद्घाटन प्रस्तुति आमोद भट्ट निर्देशित ‘कारंत के रंग’ थी, जिसमें रंगकर्मी और एनएसडी निदेशक बीवी कारंत के जीवन और रंग-संगीत को पेश किया गया. प्रस्तुति का स्तर ऐसा नहीं था, जो भारंगम की उद्घाटन प्रस्तुति बन सके.
इस बार भारंगम में चयनित सभी नाटक दिल्ली में नहीं हो रहे. कुछ को केवल समांतर प्रस्तुति में भेजा जा रहा है. जबकि भारंगम की परंपरा रही है कि चयनित और आमंत्रित सभी नाटक दिल्ली में होते रहे हैं और उन्हीं में से चुनिंदा नाटकों को समांतर भारंगम में भेजा जाता रहा है.
इस बार डिब्रुगढ़, वाराणसी, राजकोट, रांची और मैसूर में समांतर भारंगम हो रहा है. सूची देखने पर पता चला कि दिल्ली के कुछ समूहों को दिल्ली में ही रखा गया है. होना तो यह चाहिए था कि उन्हें बाहर भेजा जाता, ताकि दिल्ली से बाहर के समूहों को दिल्ली में अपना हुनर दिखाने का मौका मिलता. दिल्ली भारंगम का मुख्य केंद्र है, तो केंद्र में सारे नाटक होने चाहिए.
इस बार भारंगम 1 से 21 फरवरी तक चलेगा और इस दरम्यान 111 प्रस्तुतियां होंगीं, जिनमें विदेशी, लोकशैली के साथ एनएसडी स्नातकों की डिप्लोमा प्रस्तुतियां भी शामिल हैं.
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में भी गांधीजी पर आधारित प्रस्तुतियों का एक खंड रखा गया है, जिसके अंतर्गत देवेंद्र राज अंकुर, एमके रैना और अर्जुन देव चरण निर्देशित प्रस्तुतियां होंगी.

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