जब राजनयिक कुछ कहते हैं तो यह देखना भी महत्वपूर्ण होता कि क्या छूट गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सार्क नेताओं से मुलाक़ात के बाद विदेश सचिव सुजाता सिंह ने एक बयान पढ़ा. इसमें बताया गया था कि मोदी ने बहुत से नेताओं से पहली बार मिलते हुए क्या कहा.
भूटान के नेता से मुलाकात में उन्होंने कहा कि भूटान और भारत के बीच "ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं."
मॉरीशस के नेता से कहा कि "भारत और मॉरीशस के संबंध विशेष और अनूठे हैं" और दोनों देश का "इतिहास, वंश और रिश्तेदारी" साझा है.
मोदी ने कहा कि नेपाल एक ऐसा देश था "जिसके साथ भारत का साझा इतिहास, भूगोल और प्राचीन सभ्यता के समय अनुबंध हैं."
बांग्लादेश के बारे में उन्होंने कहा कि भारत का उसके साथ "संघर्ष, इतिहास, संस्कृति और भाषा साझा है."
जब सुजाता सिंह ने पाकिस्तान के बारे में बयान पढ़ा तो उसमें किसी तरह की कोमल बात नहीं थी, न ही साझा सांस्कृतिक संबंधों की स्वीकार्यता थी.
हिंसा में कमी
पाकिस्तान पर विदेश सचिव का बयान कुछ इस तरह शुरू हुआ, "प्रधानमंत्री (पाकिस्तान के) नवाज़ शरीफ़ से मुलाकारत में प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने आतंकवाद को लेकर अपनी चिंताओं को रेखांकित किया. यह संदेश दिया गया कि पाकिस्तान अपने क्षेत्र या अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र के भारत के ख़िलाफ़ आतंकवाद फैलाने के लिए इस्तेमाल न होने देने के अपने वायदे को पालन करे."
उन्हें यकीन दिलाने के लिए, मोदी ने आगे कहा कि दोनों देश "2012 की कार्ययोजना के आधार पर तुरंत ही पूरी तरह सामान्य व्यापार की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं."
हालांकि शरीफ़ को यह भी सुनाया गया कि चरमपंथी हमलों का ख़तरा समझौतों को रोक रहा है.
भारत की सरकार बहुत अरसे से यह दावा करती रही है कि पाकिस्तान भारत में हिंसा भड़काता रहा है, ख़ासतौर पर जम्मू और कश्मीर में. हालांकि तथ्य यह है कि चरमपंथी हिंसा, ख़ासतौर पर इस्लामिक प्रकार की, भारत में ख़त्म हो गई है.
कश्मीर में चरमपंथी हिंसा 2001 में चरम पर थी जब 4507 लोग मारे गए थे, जिनमें से 1067 आम नागरिक थे और 590 सुरक्षा बलों के सदस्य. भारतीय संसद पर हमले के बाद पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने वादा किया था कि वह सीमा-पार से चरमपंथी गतिविधियों को ख़त्म कर देंगे और 2002 की शुरुआत में उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा समेत चार गुटों पर प्रतिबंध लगा दिया था.
उसके बाद कश्मीर में हिंसा चरमपंथ की शुरुआत होने के बाद से अब तक चरमपंथ अपने न्यूनतम पर स्तर पर पहुंच गया है. 1990 में चरमपंथी की शुरुआत में 1177 लोग मारे गए थे जिनमें 862 आम नागरिक थे और 132 सुरक्षाबलों के सदस्य.
उसके बाद मारे जाने वालों की संख्या हर साल बढ़ती ही रही और 1995 तक (जब बेनज़ीर भुट्टों दूसरी बार प्रधानमंत्री बनी थीं) तक यह 2900 तक पहुंच गई थी. मुशर्रफ़ के सत्ता संभालने के बाद हिंसा में बढ़ोत्तरी हुई और मरने वालों की संख्या साल 2000 में 3200 तक पहुंच गई.
2001 के उच्चतम स्तर और मुशर्रफ़ के वायदे के बाद मौतों की संख्या हर साल घटती ही रही. पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख केपीएस गिल के आंकड़ों के अनुसार जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2002 में 3022 से घटकर वर्ष 2003 में 2542, वर्ष 2004 में 1810, वर्ष 2005 में 1739, वर्ष 2006 में 1116, वर्ष 2007 में 777, वर्ष 2009 में 541, वर्ष 2010 में 375, वर्ष 2011 में 183, वर्ष 2012 में 117, वर्ष 2013 में 181 और इस साल 59 रह गई है जिनमें से 37 चरमपंथी हैं.
श्रेय देना होगा
अगर हम यह मानते हैं कि पाकिस्तान इनमें से ज़्यादातर को शुरू करने के लिए ज़िम्मेदार है तो हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि उसी के प्रयासों से यह कम हो रहे हैं. हकीकत यह है कि भारत ने कभी भी ठीक से उसकी इस कोशिश को स्वीकार नहीं किया, ख़ासतौर पर मुशर्रफ़ के समय में.
कश्मीर के बाहर भारत में इस्लामिस्ट हिंसा बहुत कम है. 2014 में अब तक सिर्फ़ एक ही मौत हुई है.
पाकिस्तान में बड़े पामाने पर हिंसा जारी है और 2013 में 5379 लोग मारे गए थे तो इस साल अब तक 1718 अपनी जानें गवां चुके हैं.
मोदी ने शरीफ़ पर मुंबई हमलों की सुनवाई को लेकर भी दबाव डाला, और ज़्यादातर पर्यवेक्षक भी यही बात कहेंगे के यह ठीक नहीं चल रही है. लेकिन पाकिस्तान भी यह दावा कर सकता है कि भारत 2007 में 60 लोगों की जान लेने वाले, समझौता एक्सप्रेस के धमाकों के अभियुक्तों पर मुक़दमा चलाने में ढिलाई बरत रहा है.
इसकी जांच, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक गुट पर केंद्रित होती जा रही है, किसी निष्कर्ष पर पहुंचती नहीं लग रही और मुक़दमे का हाल भी कुछ ऐसा ही है.
भारत को यह मानकर कि पाकिस्तान चरमपंथ पर अपनी क्षमतानुसार अधिकतम कार्रवाई करेगा, पाकिस्तान के साथ व्यापार और अन्य क्षेत्रों में खुलकर आगे आना चाहिए. इसके परिणाम इससे साफ़ भी कर देंगे.
अफ़गानिस्तान से अमरीका के वापस जाने और तालिबान के देश के दक्षिण हिस्से पर कब्ज़ा करने की आशंका पाकिस्तान और संभवतः भारत में भी स्थितियां बदल सकती है. दोनों देशों के हक़ में यही होगा कि वे ऐसा होने से पहले जल्द से जल्द संबंध सामान्य करने की कोशिशें करें.
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