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आधार पर फ़ैसले के पीछे 92 साल का यह पूर्व जज

सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर मंगलवार को जो फ़ैसला दिया, उसने आम लोगों से जुड़ी कई चीज़ों के लिए आधार की अनिवार्यता को ख़त्म कर दिया. इस मामले में कई याचिकाकर्ता रहे, लेकिन पहले याचिकाकर्ता रहे जस्टिस केएस पुट्टास्वामी. आने वाली पीढ़ियां आधार के मामले को क़ाग़ज़ों पर केएस पुट्टास्वामी बनाम भारतीय संघ के रूप […]

सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर मंगलवार को जो फ़ैसला दिया, उसने आम लोगों से जुड़ी कई चीज़ों के लिए आधार की अनिवार्यता को ख़त्म कर दिया.

इस मामले में कई याचिकाकर्ता रहे, लेकिन पहले याचिकाकर्ता रहे जस्टिस केएस पुट्टास्वामी.

आने वाली पीढ़ियां आधार के मामले को क़ाग़ज़ों पर केएस पुट्टास्वामी बनाम भारतीय संघ के रूप में याद रखेंगी.

निजता के अधिकार वाले मामले में भी रहे याचिकाकर्ता

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जस्टिस पुट्टास्वामी 92 वर्ष के हैं और हर सवाल का सावधानी से जवाब देते हैं.

टेलीविज़न पर उन्होंने फ़ैसले के जो हिस्से देखे-सुने हैं, उस आधार पर वह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का बहुमत फ़ैसला ‘निष्पक्ष और जायज़’ लगता है.

जस्टिस पुट्टास्वामी कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज हैं और आंध्र प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य हैं.

वह आधार के साथ-साथ निजता के अधिकार मामले के भी पहले याचिकाकर्ता हैं. निजता के अधिकार मामले में शीर्ष अदालत ने निजता को मौलिक अधिकार माना था.

2012 में जब आधार मामले पर केंद्र सरकार के कार्यकारी आदेश के ख़िलाफ़ जनहित याचिका दाख़िल करने का फ़ैसला किया, तब उन्हें अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि वह भारत के न्यायिक इतिहास के दो महत्वपूर्ण फ़ैसलों का हिस्सा बनेंगे.

बुधवार को जब आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया तो रिपोर्टर जस्टिस पुट्टास्वामी की प्रतिक्रिया लेने पहुंच गए. जस्टिस पुट्टास्वामी अपनी चिर परिचित सादगी के साथ उनसे मिले.

कर्नाटक हाईकोर्ट में उनके साथ रहे जस्टिस रामा जोइस कहते हैं, "जस्टिस पुट्टास्वामी बेशक एक बहुत विनम्र इंसान है. वो हमेशा से ऐसे रहे हैं."

जस्टिस जोइस पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रहे हैं. वह बिहार और झारखंड के राज्यपाल और भाजपा से राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं.

जस्टिस पुट्टास्वामी ने सरकारी आदेश की चर्चा सबसे पहले जस्टिस जोइस से की थी और उसी के बाद जनहित याचिका दाख़िल करने का फैसला किया था.

चाय पर बातचीत में हुआ था याचिका का फैसला

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उनके बेटे बीपी श्रीनिवास के मुताबिक, " 2010 में उनके कुछ दोस्त दिल्ली से आए थे और चाय पर उनसे बातचीत चल रही थी. तभी इस बारे में बातचीत हुई कि सरकार एक एग्ज़ीक्यूटिव आदेश जारी करके नागरिकों के फिंगर प्रिंट नहीं ले सकती."

जस्टिस जोइस ने बताया, "उन्होंने चर्चा की कि किन आधारों पर जनहित याचिका दाख़िल की जा सकती है. उन्होंने बस याचिका दाख़िल कर दी लेकिन जिरह के लिए कभी अदालत नहीं गए. दूसरे वक़ीलों ने जिरह की."

इन वकीलों में सबसे पहले थे सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यन.

‘आम लोगों के लिए आधार उपयोगी नहीं’

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AFP

जस्टिस पुट्टास्वामी ने बीबीसी हिंदी से कहा, "जब मैंने याचिका डाली तब वह एक एग्ज़ीक्यूटिव आदेश था. आधार एक्ट उसके बाद आया. और अब कोर्ट ने इस एक्ट के दो सेक्शन हटा दिए हैं जो संविधान के अनुच्छेद 19 के ख़िलाफ़ थे."

"मेरा मत ये है कि आधार एक्ट अपराधियों की धर-पकड़ के लिए तो ठीक है, लेकिन मेरे और आपके जैसे आम नागरिकों के लिए यह उपयोगी नहीं है."

इस फैसले पर विस्तार से राय मांगे जाने पर उन्होंने कहा, "मैं बिना पूरा फ़ैसला पढ़े अपनी राय नहीं बना सकता."

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