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”मेरे कलेजे के टुकड़े को मुझसे अलग मत करो…”

"फूल सी बच्ची का महज 30 घंटे में ये क्या हाल हो गया. न दूध पीती है और न ही ही कोई फ़ूड सप्लीमेंट. पुचकार कर कुछ खिलाओ भी तो तुरंत उल्टी होती रही. रात भर बुखार से तपती रही. पल भर के लिए मुझसे अलग नहीं होना चाहती. देखिए कितनी शॉक्ड है. उस रात […]

"फूल सी बच्ची का महज 30 घंटे में ये क्या हाल हो गया. न दूध पीती है और न ही ही कोई फ़ूड सप्लीमेंट. पुचकार कर कुछ खिलाओ भी तो तुरंत उल्टी होती रही. रात भर बुखार से तपती रही. पल भर के लिए मुझसे अलग नहीं होना चाहती. देखिए कितनी शॉक्ड है. उस रात मैं रोती रही. तड़प-तड़प कर कहती रही, मुझे ज़मीन पर सुला दो पर मेरे कलेजे के टुकड़े नाव्या को अलग मत करो. मां के बिना ये नहीं रह सकती."

ये सब कहते हुए शैलजा तिर्की तेज़ी से बेडरूम में चली जाती हैं. जहां से रोने की आवाज़ आती है.

घर के सभी लोग नाव्या टेरेसा को गोद में लेने के लिए आतुर हैं. बच्चे खिलौनों से इस मासूम का मन बहलाने की कोशिश करते हैं पर वो मां को पल भर नहीं छोड़ना चाहती.

कुछ देर बाद शैलजा कमरे से बाहर आती हैं. कुछ बातें करती हैं. फिर ये कहते हुए पति के साथ घर से निकल पड़ती हैं, "वक्त कम है. डॉक्टर के पास जाना है. कल रात भी अस्पताल गई थी. पूरा परिवार परेशान है, प्लीज़…"

नाव्या की ख़ामोश ज़ुबां और एकटक ताकती आंखें भी बहुत कुछ बयां करती रहीं. शैलजा कहती हैं, "दिन भर बच्चा जिस हाल में रहे, रात में उसे मां चाहिए ही."

फ़िलहाल वो चाहती हैं कि बच्ची स्वस्थ हो जाए और हर हाल में उनके पास ही रहे. नाव्या अभी तेरह महीने की है. जन्म के सात दिन बाद से ही शैलजा उसे पाल रही हैं.

लातेहार ज़िले के एक सुदूर गांव की नाबालिग युवती ने बीते साल 14 जून को रांची स्थिति मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी में इस बच्ची को जन्म दिया था.

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बच्ची कैसे पहुंची पुलिस के पास?

हाल ही में रांची स्थित मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी पर आरोप लगे हैं कि वहां से कथित तौर पर बच्चों को बेचा जा रहा है और इसके बाद एक सिस्टर और एक महिलाकर्मी को गिरफ़्तार कर जेल भेजा गया है.

जबकि चैरिटी से सभी लड़कियों को दूसरी जगह शिफ़्ट कर दिया गया है और कई स्तरों पर तफ्तीश जारी है.

शैलजा की सास रोज़ केरकेकट्टा बताती हैं कि पुलिस के हवाले से मीडिया में ये बातें बताई जा रही थी कि सिमडेगा के एक दंपती ने भी मिशनरी ऑफ चैरिटी से एक बच्चे को पचास हज़ार रुपये में खरीदा है.

वह कहती हैं, ‘तब हमें लगा कि पुलिस के पास ख़ुद जाना चाहिए.’

11 जुलाई को दिन में जन्म देने वाली और पालने वाली दोनों माएं नाव्या को लेकर पुलिस के पास पहुंचीं. साथ में दोनों परिवारों के सदस्य भी थे.

बच्ची को जन्म देने वाली लड़की ने मौके पर शपथ पत्र के जरिए बताया कि दोनों परिवारों की आपसी रज़ामंदी से बच्ची को शैलजा तिर्की को लालन- पालन के लिए सौंपा गया है.

फिर पुलिस ने पूछताछ के बाद सभी को चाइल्ड वेलफ़ेयर कमेटी के सामने पेश किया.

रोज़ केरकेकट्टा ने बताया, "दोपहर से रात तक कमेटी को हमलोग सारी जानकारी देते रहे. तस्वीरें दिखाकर अपना पक्ष रखते रहे. मेरी बेटी धरने पर बैठ गई, लेकिन बच्ची को छोड़ने के लिए कोई तैयार नहीं था. तमाम हो- हुज्जत के बीच रात में नाव्या को एक शेल्टर होम ले जाया गया."

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ऐसे मिली वापस

शैलजा बताती हैं, "पलक झपकते ही बच्ची आंखों से दूर हो गई. मैं बेहोश हो गई. किसने मुझे संभाला कुछ याद नहीं. होश आया तो मैं चीखती रही. प्लीज़ मुझे ज़मीन पर सुला दो, लेकिन मेरी बच्ची को मुझसे अलग मत करो."

अलबत्ता नाव्या को जन्म देने वाली मां भी इस दौरान रोती रहीं और गुहार लगाती रहीं.

अगले दिन यानी 12 जुलाई को शैलजा अपने परिवार के साथ फिर शेल्टर होम पहुंचीं.

बेटी पर नज़र पड़ते ही सभी की आंखें डबडबा गईं. बच्ची घबराई सी थी. कुछ पलों के लिए उसे शैलजा की गोद में दिया गया.

इसके बाद सभी लोग चाइल्ड वेलफ़ेयर कमेटी के पास आए. गुज़ारिश करते रहे कि बच्ची को उन्हें सौंपा जाए.

इससे पहले शैलजा के परिवार वालों ने रांची ज़िला प्रशासन के आला अधिकारियों और राज्य की महिला बाल कल्याण मंत्री लुइस मरांडी से बात कर पूरी स्थिति की जानकारी दी.

मौके की नज़ाकत भांपते हुए ज़िला समाज कल्याण पदाधिकारी कंचन सिंह ने शेल्टर होम को निर्देश दिया कि बच्ची को उसके पालने वाली मां शैलजा तिर्की को सौंपा जाए.

देर रात शैलजा और उनके पति सितेश माइकल किड़ो नाव्या को लेकर घर लौटे.

क्या कहते हैं अधिकारी?

कंचन सिंह ने बीबीसी को बताया, "चाइल्ड वेलफ़ेयर कमेटी या प्रशासन पहले बच्चे का हित देखता है. इसलिए ये कदम उठाए गए. मुझे जानकारी मिली कि बच्ची की स्थिति ठीक नहीं है. ट्रॉमा की स्थिति बनती जा रही थी. इधर उसे पालने वाली मां भी बदहवास होती जा रही थीं."

कंचन सिंह कहती हैं कि बच्ची तेरह महीने की है. लिहाजा उसे इतना बोध तो होता ही होगा कि पल-पल ख्याल रखने वाले, प्यार- स्नेह देने वाले माता- पिता से एकबारगी अलग कर दिया गया है. इन्हीं विशेष परिस्थितियों में उसे शैलजा को सौंपा गया.

एक सवाल के जवाब में कंचन सिंह बताती हैं कि बच्चे की अगर ठीक से देखभाल हो रही है तो विशेष परिस्थिति के इस मामले में गाइडलाइन के तहत शैलजा और उनके पति गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करेंगे तो कानूनन तौर पर बच्चा उनका होगा.

ग़ौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में एक दंपती के हाथों बच्चा बेचे जाने का मामला सामने आने के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमेटी रांची ने मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई है.

इसी सिलसिले में चैरिटी से गिरफ्तार की गई महिला कर्मचारी और सिस्टर से पूछताछ के बाद पुलिस और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने दावा किया था कि कुछ और माओं के नाम मिले हैं जिनके बच्चे कथित तौर पर बेचे गए.

इनमें लातेहार की वो लड़की (नाव्या को जन्म देने वाली मां) भी शामिल थीं.

इसी मामले में पुलिस ने उत्तर प्रदेश के दंपती के अलावा रांची के मोरहाबादी से भी एक बच्चे को बरामद किया है.

बच्चा गोद लेना जुर्म नहीं

शैलजा कहती हैं, "हो सकता है कि कुछ कानूनी प्रक्रियाएं पूरी नहीं की गई हों लेकिन मैंने कोई जुर्म नहीं किया है और ना ही इसे जन्म देने वाली मां ने. वो प्रक्रिया पूरी करने को तैयार हैं."

शैलजा का नैहर रांची में है और ससुराल सिमडेगा में. लेकिन वो रांची में ही रहती हैं. उनके पति एक बैंक में अधिकारी हैं.

उनकी सास रोज़ केरकेट्टा जोर देकर कहती हैं, "ये कतई खरीद-फरोख्त का मामला नहीं है. हमलोगों को इसका भरोसा भी नहीं होता कि मदर की संस्था में कोई गलत काम होता है."

अलबत्ता इस पूरी कहानी में पीड़ा और ममता छिपी है.

रोज़ बताने लगी कि शालू (शैलजा के घर का नाम) की शादी साल 2013 में हुई थी. मेडिकल परामर्श में बताया गया कि गर्भ धारण करने में जान को ख़तरा हो सकता है.

"इस बीच शालू की मां यानी मेरी समधन का संपर्क उस लड़की (जन्म देने वाली) के परिवार वालों से हुआ, जो लातेहार के रहने वाले हैं. उनलोगों ने पूरी कहानी बताई. फिर दोनों परिवार जान- पहचान के निकले. एक ही धर्म और समुदाय के."

"पिछले साल 14 जून को बच्ची को जन्म देने के कुछ ही दिनों बाद उस लड़की को उसकी मां और मौसी चैरिटी होम से ले गए और बच्ची को शालू ने लिया."

"हमलोगों ने नाव्या की छठी में समाज, परिवार के बहुत लोगों को बुलाया था. जाहिर है कुछ भी छिपा नहीं है."

"तब शालू कॉलेज में पढ़ाती थी. उसने मुझसे कहा, मां, बच्ची की जतन से परवरिश करने की खातिर नौकरी छोड़ रही हूं. इस फ़ैसले पर सभी सहमत थे, क्योंकि उसकी आंचल में खुशियां थीं."

रोज़ केरकेट्टा के सवाल भी हैं कि किसी बच्चे को नाम देना और कलेजे से लगाकर पालना मामूली नहीं होता.

"हमलोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा रही है. कभी ग़लत काम नहीं किया. क्या पता था मामला इतना तूल पकड़ेगा. यकीनन वो तीस घंटे का दौर बेहद पीड़ा वाला था."

"12 तारीख की देर रात जब बेटा और बहू बच्ची को लेकर घर आए तो सारी रात हमलोग जगे रहे."

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