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एक और बड़े संकट की ओर बढ़ते रोहिंग्या मुसलमान

बांग्लादेश का दक्षिणी इलाका, तराई में बेतरतीबी से फैले से बांस के तंबू और आने वाले ‘ख़राब मौसम’ की आहट. इन तंबुओं में रोहिंग्या मुसलमानों का ठिकाना है और आने वाले वक़्त में मॉनसून की बारिश और तूफ़ानी हवाएं उनके लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं. इस इलाके में बर्मा से जान बचाकर बांग्लादेश आए […]

बांग्लादेश का दक्षिणी इलाका, तराई में बेतरतीबी से फैले से बांस के तंबू और आने वाले ‘ख़राब मौसम’ की आहट.

इन तंबुओं में रोहिंग्या मुसलमानों का ठिकाना है और आने वाले वक़्त में मॉनसून की बारिश और तूफ़ानी हवाएं उनके लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.

इस इलाके में बर्मा से जान बचाकर बांग्लादेश आए नब्बे हज़ार रोंहिंग्या मुसलमानों पर आने वाले ‘ख़राब मौसम’ के बादल मंडरा रहे हैं.

पिछले साल अगस्त में शुरू हुए रोहिंग्या शरणार्थी संकट के बाद हाल ही में मैंने इन शिविरों में कुछ हफ़्ते गुजारे.

बीबीसी ने वहां ये देखा कि दुनिया की सबसे सघन शरणार्थी बस्ती आने वाले तूफ़ानी मौसम के लिए किस कदर तैयार है और ये भी कि क्या वे कभी अपने घर वापस लौट सकेंगे.

रोहिंग्या के बाद अब म्यांमार में कचिन संकट

‘पहले रोहिंग्या शरणार्थी परिवार की म्यांमार वापसी’

दिल्ली में जलकर ख़ाक़ हुए रोहिंग्या कैंप से उठता सवालों का धुआं

कौन हैं रोहिंग्या?

बौद्ध बहुल म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की दस लाख से ज़्यादा आबादी रहती है. उन्हें दुनिया के ‘सबसे ज़्यादा सताये गए अल्पसंख्यकों’ में शुमार किया जाता है.

अस्सी के दशक में म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों से देश की नागरिकता छीन ली थी और तभी से उन पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए.

रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ म्यांमार में लगातार हिंसा होती रही. इतना ही नहीं म्यांमार की प्रधानमंत्री आंग सान सू ची ने उन्हें रोहिंग्या कहने से इनक़ार कर दिया.

अपने आधिकारिक भाषण में आंग सान सू ची ने अपने आधिकारिक भाषण में रोहिंग्या मुसलमानों को बंगाली कहकर संबोधित किया.

ऐसा लगा मानो नोबेल शांति पुरस्कार विजेता दूसरे बर्मी लोगों की तरह ही रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी मान रही थीं.

हालांकि रोहिंग्या मुसलमान खुद को म्यांमार का रहने वाला मानते हैं.

‘रोहिंग्या मुसलमानों के लिए फ़ेसबुक बना जानवर’

रोहिंग्या मुसलमान संकट की आख़िर जड़ क्या है?

रोहिंग्या मुसलमानों की घर वापसी के लिए समझौता

बांग्लादेश में इतने सारे रोहिंग्या क्यों हैं?

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि म्यांमार के रखाइन प्रांत से तकरीबन सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने अपनी जान बचाने के लिए पिछले साल बांग्लादेश में शरण ली थी.

रोहिंग्या मुसलमानों का ये पलायन म्यांमार की सेना की क्रूरतापूर्ण कार्रवाई के बाद हुआ था.

हालांकि सेना का कहना था कि रोहिंग्या चरमपंथियों ने पुलिस चौकियों पर हमला किया था जिसके बाद उन्होंने कार्रवाई की.

रोहिंग्या मुसलमानों के सैंकड़ों गांव जला दिए गए और बड़े पैमाने पर बलात्कार और हत्याएं की गईं.

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार एजेंसी यूएनएचसीआर ने कहा, "रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ म्यांमार की कार्रवाई नरसंहार की तरह है और इसे ख़ारिज नहीं किया जा सकता है."

तूफ़ान को लेकर फिक्र क्यों?

बांग्लादेश दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां ख़तरनाक़ समुद्री तूफ़ान आते हैं और मॉनसून की जबर्दस्त बारिश होती है.

कॉक्स बाज़ार बांग्लादेश का वो इलाका है जहां देश में सबसे ज़्यादा बारिश होती है और रोहिंग्या मुसलमानों के ज़्यादातर शरणार्थी शिविर यही हैं.

बांग्लादेश में मई के महीने मॉनसून की शुरुआत हो जाती है. माना जा रहा है कि आने वाले मौसम इन शरणार्थी शिविरों में बीमारियां और बर्बादी लेकर आएगा.

तूफ़ान और मॉनसून से रोहिंग्या मुसलमानों को ख़तरा?

रोहिंग्या मुसलमानों का जिस पैमाने पर पलायन हुआ था, उसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.

बांग्लादेश की सरकार ने एक पहाड़ी इलाके की तलहटी वाली ज़मीन उनके शरणार्थी शिविरों के लिए आवंटित की.

यहीं पर इन लोगों ने पेड़-पौधे और झाड़ियां साफ़ कीं और इन्हीं ढलानों पर अपने रहने के लिए बांस के तंबू लगाए.

ये तंबू इतने कमज़ोर हैं कि आने वाले हफ़्तों में मामूली सी तेज़ हवाएं भी इन्हें उड़ा ले जा सकती हैं.

जिन पहाड़ी ढलानों पर उनके तंबू हैं, वहां भूस्खलन से लेकर अचानक आने वाली बाढ़ तक का ख़तरा है.

संयुक्त राष्ट्र ने इन शरणार्थी शिविरों की हालत सुधारने पर जोर भी दिया है और उनकी तरफ़ से ये कहा भी गया है कि ये बांस के तंबू शायद ही किसी तूफ़ान का सामना कर पाएं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी संभावित महामारी जैसी स्थिति को लेकर चेतावनी जारी की है और कहा है कि बड़े पैमाने पर जानोमान का नुक़सान हो सकता है.

रोहिंग्या शरणार्थियों की मदद के लिए क्या किया जा रहा है?

इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं. बांस के तंबू कैसे मजबूत किए जाएं, रोहिंग्या शरणार्थियों को ये बताने के लिए ख़ास तौर पर ट्रेनिंग क्लासेज दी गई हैं.

उनके तंबुओं तक भूस्खलन और अचानक आने वाली बाढ़ को पहुंचने से रोकने के लिए रेत की बोरियां पहाड़ी ढलानों और रास्तों पर रखी जा रही हैं.

नई सड़कें और पुल बनाए गए हैं ताकि शरणार्थी शिविरों तक आने-जाने के रास्ते खुले रहें.

बारिश के पानी को निकालने के लिए नए कलवर्ट और ड्रेनेज चैनल बनाए जा रहे हैं ताकि बाढ़ के असर को कम किया जा सके.

खानपान का सामान इकट्ठा करने के लिए आपातकालीन गोदाम बनाए गए हैं ताकि बाढ़ में इस इलाके के अलग-थलग पड़ जाने के बाद भी ज़रूरी चीज़ों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके.

मॉनसून का ख़तरा जिन 15 हज़ार शरणार्थियों पर सबसे ज़्यादा मंडरा रहा था, उनके लिए अलग से 50 हेक्टेयर ज़मीन खाली कराया गया है.

तूफ़ान आ गया तो क्या होगा?

क्या तूफ़ान आने की सूरत में ये शरणार्थी शिविर खाली कराए जा सकते हैं? इसका जवाब है, नहीं.

हालांकि बांग्लादेश में तूफ़ान की चेतावनी देने वाली सिस्टम सक्रिय है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों का कहना है कि शरणार्थी शिविरों को खाली कराए जाने की कोई योजना नहीं है.

इन शरणार्थी शिविरों में बहुत से लोग रह रहे हैं और ऐसी कोई महफूज जगह नहीं है जहां उन्हें ले जाया जा सकता है.

दूरदराज के किसी द्वीप पर बसाने की योजना

क़रीब दो दशक पहले बंगाल की खाड़ी में एक दलदली द्वीप ‘भसान चार’ उभरकर आया था.

बांग्लादेश ने यहां तक पहुंचने के लिए पुल बनाएं और इसका इस्तेमाल रक्षा उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है.

अप्रैल में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने इस बात की पुष्टि की थी कि उनकी सरकार एक लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को निचले इलाकों में ले जाने की योजना पर काम कर रही है.

उन्होंने कहा, शरणार्थी शिविर सेहत के लिए ठीक नहीं हैं. हम उनकी रिहाइश के लिए बेहतर जगह तैयार कर रहे हैं जहां वे घरों में रह सकें और अपनी जीविका के लिए कुछ काम कर सकें.

संयुक्त राष्ट्र सहायता एजेंसियां बांग्ंलादेश सरकार की इस योजना को लेकर चिंतित लग रही हैं.

उन्हें डर है कि अगर रोहिंग्ंया शरणार्थियों को भसान चार में बसा दिया गया तो वे अलग-थलग पड़ जाएंगे और उन्हें समुद्री तूफ़ानों, बाढ़ और मानव तस्करों के ख़तरों का पहले से ज़्यादा सामना करना पड़ेगा.

रोहिंग्या मुसलमानों की घर वापसी?

शरणार्थी शिविरों में रहने वाले ज़्यादातर रोहिंग्या मुसलमान इस सवाल के जवाब में यही कहते हैं कि वे म्यांमार में अपने घर लौटना चाहते हैं

बांग्लादेश और म्यांमार के बीच इस सिलसिले में पिछले साल नवंबर में एक समझौता भी हुआ है.

लेकिन छह महीने बीत जाने के बाद भी एक भी रोहिंग्या मुसलमान अभी तक अपने घर नहीं लौटा है.

हालांकि म्यांमार ने ये दावा किया है कि पांच लोगों के एक रोहिंग्या परिवार की घर वापसी हुई है लेकिन बांग्ंलादेश ने इसे तमाशा करार दिया है.

बांग्लादेश का कहना है कि म्यांमार की ओर से ग़लती हुई है.

शेख हसीना ने कहा भी है, म्यांमार ये कहता है कि वे रोहिंग्या मुसलमानों को वापस लेने के लिए तैयार हैं लेकिन वे इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहे हैं.

दूसरी तरफ़ म्यांमार का कहना है कि वे शरणार्थियों की वापसी के लिए उनकी पुष्टि कर रहे हैं और इस सिलसिले में बांग्लादेश ने उन्हें ज़रूरी जानकारी मुहैया नहीं कराई है.

म्यांमार की तरफ़ से ये कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र को वह इसके लिए इजाजत देने के साथ-साथ ये भी सुनिश्चित करेगा कि रोहिंग्या शरणार्थी बिना किसी डर के घर वापस लौट सकें.

मुमकिन है कि आने वाले महीनों में कुछ रोहिंग्या शरणार्थी घर वापस लौट भी जाएं, लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि कोई इस बात की उम्मीद नहीं कर रहा है कि बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर रोहिंग्या मुसलमानों वापस म्यांमार लौटेंगे.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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