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झारखंड के इस जिले में मलेरिया का सबसे ज्यादा खतरा, 3 जिलों का एपीआई 3 से अधिक

Malaria Elimination News: स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बोर्न डिजीजेज कंट्रोल की ओर मलेरिया उन्मूलन के लिए विशेष रूप से तैयार ‘नेशनल स्ट्रैटेजिक प्लान : मलेरिया एलीमिनेशन 2023-2027’ पर गौर करेंगे, तो झारखंड की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. यह वर्ष 2015 तक कैटेगरी-3 में था और वर्ष 2022 में यह कैटेगरी-2 में आ गया. इसका मतलब यह हुआ कि वर्ष 2015 तक झारखंड के जिलों में एपीआई 1 से अधिक था और अब यहां एपीआई 1 से कम है. बावजूद चिंता की बात यह है कि झारखंड के 3 ऐसे जिले हैं, जहां एपीआई अब भी 3 से अधिक हैं.

Malaria Elimination News: भारत वर्ष 2027 तक मलेरिया उन्मूलन के लक्ष्य पर काम कर रहा है. राज्य सरकारों के साथ मिलकर केंद्र सरकार ने कई योजनाएं बनायीं हैं. उस पर अमल भी किया जा रहा है. फलस्वरूप मलेरिया उन्मूलन की दिशा में भारत को बड़ी सफलता मिली है. बावजूद इसके, वर्ष 2022 में देश के 18 ऐसे जिले हैं, जहां एपीआई (Annual Parasite Index – API) 2 या उससे अधिक थी. वर्ष 2015 में इन जिलों की संख्या 110 थी. बहरहाल, मलेरिया के लिहाज से देश के सबसे संवेदनशील 18 जिलों में झारखंड के भी 3 जिले शामिल हैं.

1947 में 8 लाख लोगों की हो जाती थी मलेरिया से मौत

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सामुदायिक स्वास्थ्य अनुसंधान, सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ की उपनिदेशक और गढ़चिरौली में मलेरिया उन्मूलन के लिए कार्यबल की सदस्य सुप्रियालक्ष्मी तोटीगर के अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है. सुप्रियालक्ष्मी तोटीगर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 1947 में भारत में लगभग 7.5 करोड़ मलेरिया के मामले सामने आते थे. 8 लाख लोगों की मलेरिया से मौत हो जाती थी. वर्ष 2023 तक इस आंकड़े में बड़ी गिरावट आयी है. इस वर्ष 2,27,564 लोग मलेरिया से पीड़ित हुए और मात्र 83 लोगों की इससे मौत हुई.

Supriyalaxmi Totiger

“1947 में भारत में लगभग 7.5 करोड़ मलेरिया के मामले सामने आते थे. 8 लाख लोगों की मलेरिया से मौत हो जाती थी. वर्ष 2023 तक इस आंकड़े में बड़ी गिरावट आयी है. इस वर्ष 2,27,564 लोग मलेरिया से पीड़ित हुए और मात्र 83 लोगों की इससे मौत हुई.

सुप्रियालक्ष्मी तोटीगर, सामुदायिक स्वास्थ्य अनुसंधान, सोसाइटी फॉर एजुकेशन, एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ की उपनिदेशक और गढ़चिरौली में मलेरिया उन्मूलन के लिए कार्यबल की सदस्य, गढ़चिरौली, महाराष्ट्र

क्या है वार्षिक परजीवी सूचकांक एपीआई

वार्षिक परजीवी सूचकांक (Annual Parasite Index – API), जो प्रति 1,000 जनसंख्या पर एक वर्ष में पाये गये मलेरिया के मामलों की संख्या को दर्शाता है, एक प्रमुख मानक है. API यदि 2 से अधिक हो, तो वह क्षेत्र उच्च बोझ वाला माना जाता है. ऐसे जिलों में मलेरिया उन्मूलन के लिए केंद्रित प्रयास तेज करने की जरूरत है.

मच्छरों के प्रजनन के लिए पर्याप्त है 2 मिली ठहरा हुआ पानी

सुप्रियालक्ष्मी के मुताबिक, शहरी और वन क्षेत्रों के लिए मलेरिया नियंत्रण की रणनीति अलग-अलग होती है. वन क्षेत्रों में भारी मानसूनी वर्षा के कारण लंबे समय तक पानी ठहर जाता है, जिससे मच्छरों के पनपने के लिए आदर्श स्थितियां बनती है. आदिवासी समुदाय जीवनयापन के लिए जंगलों पर निर्भर हैं. इसलिए मलेरिया के मच्छर की चपेट में आने का जोखिम अधिक होता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि केवल 2 मिलीलीटर ठहरा हुआ पानी भी मच्छरों के प्रजनन के लिए पर्याप्त है.

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पीएम मोदी की मौजूदगी में बना था मलेरिया उन्मूलन अभियान का प्लान.

एयर कंडीशनर और कूलर में जमे पानी भी बढ़ाते हैं समस्या

सुप्रियालक्ष्मी तोटीगर आगे कहतीं हैं कि शहरी क्षेत्रों में खराब जल निकासी प्रणाली और एयर कंडीशनर या कूलर में जमा पानी मलेरिया की समस्या को बढ़ाते हैं. इसलिए शहरी क्षेत्रों में मलेरिया नियंत्रण के लिए अलग रणनीति पर काम करने की आवश्यकता होती है. सुप्रियालक्ष्मी कहतीं हैं कि किसी क्षेत्र को मलेरिया से मुक्त तब माना जाता है, जब वहां स्थानीय स्तर पर कोई नया मामला दर्ज नहीं होता.

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मलेरिया को खत्म करने के लिए समेकित रणनीति

तोटीगर के मुताबिक, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक समेकित रणनीति लागू की जा रही है, जिसमें शीघ्र जांच व उपचार, मच्छरों से मानव संपर्क रोकना, शारीरिक अवरोध बनाना और मच्छरों के प्रजनन को रोकना शामिल है. इस रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मलेरिया फैलाने वाले प्लाज्मोडियम परजीवी का उन्मूलन है. उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर, सतत विकास लक्ष्य (SDGs) के अंतर्गत मलेरिया उन्मूलन का लक्ष्य वर्ष 2030 है. भारत ने इससे भी अधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय करते हुए 2027 के अंत तक मलेरिया उन्मूलन का संकल्प लिया है.

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केंद्र सरकार ने मलेरिया के खात्मे के लिए उठाये हैं कई कदम.

मलेरिया के मामले में झारखंड की स्थिति में हुआ है सुधार

स्वास्थ्य मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बोर्न डिजीजेज कंट्रोल की ओर से मलेरिया उन्मूलन के लिए विशेष रूप से तैयार ‘नेशनल स्ट्रैटेजिक प्लान : मलेरिया एलीमिनेशन 2023-2027’ पर गौर करेंगे, तो झारखंड की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. यह वर्ष 2015 तक कैटेगरी-3 में था और वर्ष 2022 में यह कैटेगरी-2 में आ गया. इसका मतलब यह हुआ कि वर्ष 2015 तक झारखंड के जिलों में एपीआई 1 से अधिक था और अब यहां एपीआई 1 से कम है. बावजूद चिंता की बात यह है कि झारखंड के 3 ऐसे जिले हैं, जहां एपीआई अब भी 3 से अधिक हैं.

झारखंड में सबसे चिंताजनक स्थिति पश्चिमी सिंहभूम की

सबसे चिंताजनक स्थिति पश्चिमी सिंहभूम जिले की है. यहां का एपीआई 8.8 है, जो झारखंड में सबसे ज्यादा है. इसके अलावा संताल परगना के गोड्डा और पाकुड़ जिले में भी एपीआई बहुत ज्यादा है. इन दोनों जिलों का एपीआई 3.5-3.5 है. हालांकि, अच्छी बात यह है कि देश के कई राज्यों के जिले अभी भी ऐसे हैं, जो झारखंड से कई गुणा ज्यादा खतरनाक स्थिति में हैं. वहां एपीआई 56 से भी ज्यादा हैं. मिजोरम का लावंगतलाई ऐसा ही एक जिला है, जिसका एपीआई 56.2 पाया गया है. मिजोरम के लुंगलेई में 28, मामिट में 33.2, साइहा में 24.4 हैं. झारखंड के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के बीजापुर में यह 30.8, दंतेवाड़ा में 25.7 और नारायणपुर में 13.4 है.

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मलेरिया उन्मूलन के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियां.

कैटेगरी-3 से निकलकर 2 में आया झारखंड

वर्ष 2015 में झारखंड कैटेगरी-3 में था, जहां एपीआई 1 से अधिक था. वर्ष 2022 में झारखंड कैटेगरी-3 से निकलकर उससे बेहतर स्थिति में यानी कैटेगरी-2 में आ गया, जहां एपीआई 1 से कम था, लेकिन कुछ जिलों में यह 1 से अधिक रहा. ऐसे जिलों में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मेघालय, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं. आंध्रप्रदेश, बिहार, नगालैंड, तमिलनाडु, तेलंगाना, असम, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य वर्ष 2015 में कैटेगरी-2 में थे. ये इस कैटेगरी से निकलकर कैटेगरी-1 में चले गये हैं, जहां सभी जिलों में एपीआई 1 से कम है. यानी प्रति 1000 व्यक्ति में 1 व्यक्ति मलेरिया से पीड़ित होता है.

2030 तक दुनिया से मिटाना है मलेरिया को

  • 2030 तक मलेरिया को खत्म करना है, ईस्ट एशिया समिट 2015 के एसिया-पैसेफिक लीडर्स अलायंस में वैश्विक नेताओं के बीच बनी थी सहमति. मोदी भी थे मौजूद.
  • केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रहीं हैं, भारत तेजी से इस दिशा में आगे बढ़ रहा है.
  • 2015 से 2022 के बीच में मलेरिया के कुल मामलों में 85 फीसदी की कमी आयी है, जबकि मलेरिया से होने वाली मौतों में 78 फीसदी की कमी आयी है.
  • स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत बनाकर और वैश्विक पहल को अपनाकर यह सफलता मिली है.
  • मलेरिया उन्मूलन में देश की दो प्रमुख संस्थाएं द नेशनल हेल्थ मिशन और द नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल पूरी मुस्तैदी से काम कर रहीं हैं.
  • मलेरिया के खात्मे के लिए नेशनल सेंटर फॉर वेक्टर बोर्न डिजीजेज कंट्रोल (एनसीवीबीडीसी) ने राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और जिलों के लिए नेशनल स्ट्रैटेजिक प्लान 2023-27 तैयार किया है, ताकि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सके.

भारत की उपलब्धियां

  • 2017-22 के बीच मलेरिया के मामलों में 79 प्रतिशत की कमी आयी
  • 2017-22 के बीच मलेरिया से मौत के मामलों में 58 प्रतिशत की गिरावट आयी
  • 128 जिलों में मलेरिया का कोई मामला सामने नहीं आया
  • 603 जिलों का एपीआई 1 से कम रहा (वर्ष 2022 में)
  • 6249.80 करोड़ रुपए का बजट मंजूर किया गया है एनएसपी 2023-2027 के लिए, ताकि मलेरिया की रोकथाम से संबंधित योजनाओं को लागू किया जा सके, उसका मैनेजमेंट इन्फॉर्मेसन सिस्टम को ट्रैक किया जा सके

मलेरिया उन्मूलन के लिए फोकस एरिया

  • ऑपरेशनल रिसर्च
  • थेराटिक एफिकेसी स्टडीज
  • क्वालिटी अश्योरेंस ऑफ आरडीटी
  • वेक्टर कंट्रोल
  • ड्रग एंड इंसेक्टिसाइड रेजिस्टेंस स्टडीज
  • जीआईएस मैपिंग

34 राज्यों में मलेरिया प्रमुख बीमारी के रूप में चिह्नित

देश के 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मलेरिया एक प्रमुख बीमारी के रूप में चिह्नित है. बिहार और अंडमान एवं निकोबार द्वीप ने अब तक मलेरिया को नोटिफायबल डिजीज (उल्लेखनीय रोग) में शामिल नहीं किया है.

NUHM अर्बन मलेरिया एलिमिनेशन प्लान भी तैयार

“जनजातीय मामलों के मंत्रालय” के साथ “ज्वाइंट ट्राइबल एक्शन प्लान फॉर मलेरिया एलीमिनेशन” के लिए समझौता किया गया है. NUHM अर्बन मलेरिया एलिमिनेशन प्लान भी तैयार किया गया है.

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