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कोरोना से जंग : डरिये मत, अपनी परंपराओं की ओर लौटिये, कोरोना से निबट लेंगे हम

कोरोना जैसे संक्रामक बीमारी से निबटने का सबसे प्रभावी तरीका है संक्रमित व्यक्ति को अलग (आइसोलेट) करके उसकी चिकित्सा व्यवस्था करना. कोरोना के संदर्भ में इसे कोरोनेटाइज करना कहा जा रहा है. हमारे पूर्वजों ने आज से सैकड़ों साल पहले ही यह भांप लिया था कि बसंत ऋतु खत्म होने का बाद संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

दिनकर ज्योति देवघर, रांची : कोरोना जैसे संक्रामक बीमारी से निबटने का सबसे प्रभावी तरीका है संक्रमित व्यक्ति को अलग (आइसोलेट) करके उसकी चिकित्सा व्यवस्था करना. कोरोना के संदर्भ में इसे कोरोनेटाइज करना कहा जा रहा है. हमारे पूर्वजों ने आज से सैकड़ों साल पहले ही यह भांप लिया था कि बसंत ऋतु खत्म होने का बाद संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इसे देखते हुए इससे निबटने की व्यवस्था भी बनायी गयी. इसी का एक उदाहरण है देवघर में पंडा समाज द्वारा मनाया जानेवाला मां गंवाली पूजा उत्सव. इस उत्सव के दौरान तीन दिनों तक स्थानीय लोग शहर में ही रहते हैं. पूजा के दौरान स्थानीय लोग शहर से बाहर नहीं जाते हैं और न ही बाहर के लोगों को नगर में आने की अनुमति होती है. इस तरह पूरे इलाके को आइसोलेट कर दिया जाता है. आज जिसे सेनेटाइजेशन कहा जा रहा है उसकी भी व्यवस्था हमारी परंपरा में है. उत्सव के दौरान एक सप्ताह पहले से पवित्रता का ख्याल रखा जाता है.

इस दौरान प्रतिदिन स्नान करना अनिवार्य होता है. साफ-स्वच्छ वस्त्र धारण करना होता है. पूजा के दैरान मंदिर परिसर में धुमना जलाया जाता है. यह एक तरह से वातावरण को सेनेटाइज करता है. इससे पर्यावरण शुद्ध होता है. धुमना के धुएं से हानिकारक सूक्ष्म जीव खत्म हो जाते हैं.

इस समय कोरोना का कहर पूरे विश्व पर बरपा हुआ है. इससे निबटने के तरीके ईजाद किये जा रहे हैं. लेकिन भारतीय परंपरा में ऐसे संक्रमण और महामारी से निबटने की पुख्ता व्यवस्था सैकड़ों साल पहले से हमारे पूर्वजों ने कर रखी है. इस समय पूरे विश्व में संदेश दिया जा रहा है कि हाथ मिलाने की जगह नमस्ते करें. यह भारती परंपरा है जिसे आज पूरा विश्व अपना रहा है. ऐसी ही दो और परंपरा से अपने पाठकों को यहां अवगत करा रहे हैं. एक है देवघर की गंवाली पूजा की परंपरा और दूसरी शीतला माता की पूजा.

देवघर बाबा मंदिर की गंवाली पूजा और मां शीतला की पूजा का समझिए संदेश : तीर्थ-पुरोहित बताते हैं कि चैत्र मास में मौसम बदलता है. बदले मौसम और तापमान के लगातार उतार-चढ़ाव के चलते इस समय महामारी फैलने की आशंका बनी रहती है. इसी समय बाबा बैद्यनाथ मंदिर में हर साल गंवाली पूजा होती है. इसमें मां काली की तय विधान के अनुसार पूजा की जाती है. शहर में प्रवेश व निकास रोकने के लिए शहर को चारों ओर से बांधा जाता है. इसमें मंत्रोच्चार से पूरब में त्रिकूट पर्वत, पश्चिम में डढवा नदी, उत्तर में हरलाजोरी व दक्षिण में श्मशान को बांधा जाता है. इस नियम को सभी स्थानीय नागरिक पालन करते हैं.

पूजा के दौरान सात्विक भोजन किया जाता है. इस संबंध में पंडा धर्मरक्षिणी सभा के अध्यक्ष प्रो डाॅ सुरेश भारद्वाज ने कहा कि इस बार 17 मार्च को नगर गंवाली पूजा का आयोजन हो रहा है. 16 मार्च सोमवार शाम को बाबा सहित मंदिर परिसर के सभी 22 मंदिरों में विशेष पूजा के बाद भव्य निमंत्रण यात्रा निकाली जायेगी. वहां माता शीतला की विशेष पूजा कर निमंत्रण दिया जायेगा. इसके दूसरे दिन मंगलवार 17 मार्च को मां काली की विशेष पूजा की जायेगी.

हमारे अनुष्ठान व धार्मिक प्रतीक भी देते हैं संदेश : इसी मौसम में हर जगह शीतला मां की भी पूजा होती है. इस बार यह पूजा भी मंगलवार 17 मार्च को है. इसमें भी लगभग इसी तरह के विधान किये जाते हैं. धूप-धूवन से वातावरण को शुद्ध किया जाता है.पूजा में नीम और हल्दी का उपयोग होता है, जो प्राकृतिक एंटीबायोटिक हैं. मां शीतला की प्रतिमा भी हमें कई संदेश देती है. उनके एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में मटका रहता है. झाड़ू और पानी का मटका दोनों ही स्वच्छता बनाये रखने का संदेश देते हैं. मां की सवारी गधा है. इसका संदेश है कि इस मौसम में चंचलता और उग्रता त्याग कर स्थिर और सुस्त हो जाना चाहिए. ज्यादा आवागमन और यात्रा से बचना चाहिए.

इन सबसे हम क्या सीखें : दोनों ही उदाहरण हमारे यहां सैकड़ों साल से चली आ रही परंपरा के हैं. कोरोना से निबटने के लिए इस संदेश को आत्मसात करना काफी है. इस बीमारी से डरें नहीं बल्कि अपनी परंपराओं पर चल कर इसे हरायें. स्वच्छता का ख्याल रखें. सात्विक भोजन करें. प्राकृतिक एंटीबायोटिक्स जैसे हल्दी, नीम, तुलसी पत्ता आदि का सेवन करें. किसी में बीमारी के लक्षण दिखे, तो बिना डरे उसके आइसोलेशन (अलग रखने) और इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित करें.

ऐसा करने से हम विश्व पर छाये इस महामारी के संकट से सरलता से निबट लेंगे. जब विश्व ऐसी चीजों से भयभीत हो रहा है, तब भारत की परंपरा से यह सीखने की जरूरत है कि हम तो ऐसे संकट से भी निबटने के लिए उत्सव मनाते हैं. उत्सव का रूप देकर एेसी महामारी को भी मात देने की व्यवस्था हमारे पूर्वजों ने कर रखी है. तो चलिए इस बीमारी से डरने की जगह इससे लड़ें और इसे हरायें.

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