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कीबोर्ड में लगे अक्षर टेढ़े-मेढ़े क्यों रखे गए हैं, आखिर क्या है QWERTY की कहानी?

Qwerty Keyboard: क्या आपको पता है कि हमारे कंप्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल में जो कीबोर्ड होता है, उस पर QWERTY लेआउट क्यों दिया गया है? कभी सोचा है कि ABCD वाले असली क्रम में बटन क्यों नहीं बनाए गए? आइए जानते हैं कि आखिर इसकी असली वजह क्या है.

Qwerty Keyboard: अगर आपने कभी कीबोर्ड इस्तेमाल किया हो या फिर उसे ध्यान से देखा हो तो शायद आपके मन में भी ये सवाल एक बार जरूर उठा होगा कि उसमें अक्षर ऐसे टेढ़े-मेढ़े क्यों रखे गए हैं? इन्हें सीधे A, B, C, D… के हिसाब से क्यों नहीं सजाया गया? अगर हां, तो आपको जानकर हैरानी होगी कि ये सब यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे एक खास वजह है. असल में इसके पीछे की कहानी काफी मजेदार है, जो सीधा-सीधा पुराने जमाने के टाइपराइटर से जुड़ी हुई है. आइए आपको आज इसके बारे में  बताते हैं.

टाइपराइटर और ‘जैम’ की दिक्कत

आज से पहले जब डिजिटल कीबोर्ड नहीं थे तब लोग टाइपराइटर पर टाइप किया करते थे. 19वीं सदी के आखिर में जब पहले-पहले टाइपराइटर बने, तो उनमें एक बड़ी दिक्कत आती थी. इसमें अक्षर मेटल की पतली छड़ों पर बने होते थे. जैसे ही कोई की (Key) दबाते, वो मेटल ऊपर से नीचे गिरकर स्याही लगी रिबन पर लगती और कागज पर अक्षर छप जाता.

अब दिक्कत तब होती थी जब कोई बहुत तेजी से टाइप करता और दो पास-पास वाले बटन एक साथ दब जाते. ऐसे में दोनों छड़ें आपस में फंसकर अटक जाती थीं. फिर टाइपिंग रुक जाती और कई बार टाइपराइटर खोलकर छड़ों को अलग करना पड़ता था. ये काम काफी झंझट वाला और समय खाने वाला था.

क्रिस्टोफर शोल्स और QWERTY लेआउट का जन्म

क्रिस्टोफर लैथम शोल्स और QWERTY लेआउट (Qwerty Keyboard) की कहानी बड़ी दिलचस्प है. टाइपराइटर में सबसे बड़ी दिक्कत ये थी कि जब लोग तेज-तेज टाइप करते, तो जिन अक्षरों का इस्तेमाल ज्यादा होता है (जैसे “TH”, “HE”, “IN”, “ER”), उनकी छड़ें आपस में टकराकर अटक जाती थीं.

इस समस्या से निपटने के लिए शोल्स ने एक जुगाड़ निकाला. क्रिस्टोफर लैथम शोल्स वही शख्स हैं जिन्होंने QWERTY कीबोर्ड (Qwerty Keyboard) का आविष्कार किया था. उन्होंने सोचा कि अगर इन अक्सर साथ आने वाले अक्षरों को कीबोर्ड पर थोड़ा दूर-दूर रख दिया जाए तो टकराने का चांस कम हो जाएगा. उन्होंने अंग्रेजी में कौन से अक्षर कितनी बार इस्तेमाल होते हैं, इसका हिसाब लगाया और उसी के आधार पर नया लेआउट बनाया. यही लेआउट बाद में “QWERTY” कहलाया, क्योंकि कीबोर्ड की पहली लाइन के शुरू के छह अक्षर यही थे Q, W, E, R, T, Y. 

QWERTY की कहानी

1870 के आसपास एक कंपनी ने शोल्स वाला डिजाइन लेकर टाइपराइटर बनाना शुरू किया. ये टाइपराइटर काफी हिट रहा और धीरे-धीरे लोगों के बीच पॉपुलर होता गया. लाखों लोग इसी लेआउट (Qwerty Keyboard) पर टाइप करना सीख गए, तो ये धीरे-धीरे एक तरह का स्टैंडर्ड बन गया.

बाद में जब टाइपराइटर की दिक्कतें खत्म हो गईं और इलेक्ट्रिक से लेकर डिजिटल कीबोर्ड तक आ गए, तब भी ये लेआउट (QWERTY Keyboard) इतना फेमस हो चुका था कि इसे बदलने की जरूरत ही पड़ी. लोग इसके इतने आदी हो चुके थे कि आज भी हर जगह कीबोर्ड पर यही लेआउट इस्तेमाल होता है.

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Ankit Anand
Ankit Anand
अंकित आनंद ने GGSIP यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन में ग्रेजुएशन की है. वर्तमान में, वह प्रभात खबर.कॉम में टेक और वायरल सेक्शन की खबरें कवर करते हैं. प्रभात खबर में शामिल होने से पहले उन्होंने ZEE न्यूज़ में असिस्टेंट प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया है. इन्हें लाइफस्टाइल, ट्रैवल, स्पोर्ट्स और पॉलिटिक्स जैसे विषयों पर लिखने में रुचि है. इसके अलावा अंकित को नई चीजें सीखना, किताबे पढ़ना, फिल्में और क्रिकेट देखना पसंद है.

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