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बागवानी की तरफ बढ़ रहे हैं छोटे चाय किसान
जलपाईगुड़ी. छोटे चाय किसानों को चाय पत्ते का उचित दाम नहीं मिल रहा है. विश्व चाय दिवस पर यह आरोप लगाते हुए चाय किसानों ने चाय पत्ते के साथ-साथ पपीते, केले और स्ट्राबेरी की खेती भी शुरू की है. उत्तर बंगाल के ज्यादातर छोटे चाय किसान अब बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं. उत्तर […]
जलपाईगुड़ी. छोटे चाय किसानों को चाय पत्ते का उचित दाम नहीं मिल रहा है. विश्व चाय दिवस पर यह आरोप लगाते हुए चाय किसानों ने चाय पत्ते के साथ-साथ पपीते, केले और स्ट्राबेरी की खेती भी शुरू की है. उत्तर बंगाल के ज्यादातर छोटे चाय किसान अब बागवानी की तरफ रुख कर रहे हैं.
उत्तर बंगाल में छोटे चाय किसानों की कुल संख्या करीब 1 लाख 20 हजार है. इस इलाके में बड़े, छोटे बागान और बॉटलीफ को मिलाकर कुल लगभग 1470 लाख किलो चाय का उत्पादन होता है. इसमें छोटे चाय बागानों के कच्चे पत्ते से उत्पादन में भागीदारी 42 फीसदी है. उत्तर बंगाल में बॉटलीफ फैक्टरियों की संख्या 164 है.
जलपाईगुड़ी जिला लघु चाय किसान समिति के सचिव तथा कंफेडरेशन ऑफ स्माल टी ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय गोपाल चक्रवर्ती ने बताया कि छोटे बागानों में एक किलो पत्ते पर 11 रुपये का उत्पादन खर्च आता है. लेकिन कभी-कभी ही ऐसा होता है कि एक किलो चाय पत्ते का दाम 18 रुपये किलो तक मिलता है. बाकी समय दाम 14 रुपये तक ही सीमित रहता है. ऐसे में साल-दर-साल चाय की खेती मार खा रही है. इसीलिए हम लोग उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के सहयोग से नकदी फसलों की ओर उन्मुख हो रहे हैं. छोटे चाय बागान 25 एकड़ के अंदर ही रहते हैं. चाय बागानों की खाली जमीन पर, चाय के पेड़ों से कुछ दूरी पर पपीते, स्ट्राबेरी, केला आदि की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. चाय पत्ते से होनेवाले नुकसान की भरपाई के लिए बहुत से छोटे चाय किसान बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं.
उत्तर बंग विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के अधीन सेंटर फॉर फ्लोरीकल्चर एंड बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) के तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडे ने बताया कि वे लोग विभाग के अधीन उन्नत किस्म के पपीते की खेती करने में सफल हुए हैं. चाय किसान एक एकड़ में पपीते के 1200 के पौधे रोप सकते हैं. इसमें से 200 पौधे मर सकते हैं. एक पेड़ से साल भर में 60 किलो फल मिल जाता है. अगर 20-25 रुपये किलो का दाम भी मान लें, तो एक एकड़ पपीते की खेती में 12-14 लाख रुपये की आमदनी संभव है. अगर उत्पादन और अन्य खर्च हटा दें, तो किसान को करीब 5-7 लाख रुपये का लाभ होगा. पपीते के ये पेड़ चार महीने में ही फल देने लगते हैं. अगर आगामी वर्ष के फरवरी में पपीते के पौधे रोप दिये जायें, तो जुलाई से उत्पादन मिलना शुरू हो जायेगा. श्री पांडे ने बताया कि उनका विभाग इच्छुक किसानों को पूरी सलाह देगा.
सिलीगुड़ी के एक व्यवसायी अमित मिश्र ने बताया कि पपीते के साथ-साथ स्ट्राबेरी, केला की खेती करने से उन्हें काफी लाभ हुआ है. अगर चाय किसान भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हैं तो उन्हें फायदा होगा. जिले के बहुत से चाय किसान बागवानी को अपना रहे हैं. समिति के जिला अध्यक्ष रजत कार्जी ने बताया कि वे चाय खेती को बचाये रखते हुए ही बागवानी के विकल्प को अपनायेंगे.
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