दक्षिण मालदा में तृणमूल कांग्रेस हमेशा ही कमजोर रही है. इसलिए इस बार उसने कांटा से कांटा निकालने की रणनीति तैयार की है. जिन नेताओं को इस बार विधानसभा चुनाव में करारी हार के लिए जिम्मेदार माना गया है, पार्टी ने उन्हें हाशिये पर धकेलने का फैसला कर लिया है. दूसरी तरफ वाम और कांग्रेस के नेता सांगठनिक क्षमता पर भरोसा करते हुए एक के बाद एक चुनाव जीतने में सफल रहे हैं. ऐसे नेताओं को तृणमूल में लाकर बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है.
तृणमूल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जिले में नया नेतृत्व तैयार करने में युवाओं को खास महत्व दिया जायेगा. ऐसे युवा चेहरों की तलाश की जा रही है जिनमें सांगठनिक कौशल हो. दक्षिण मालदा कमिटी के लिए एक महिला नेता को दूसरी पार्टी से लाये जाने की चर्चा है. वह विश्वविद्यालय स्तरीय छात्र राजनीति में काफी सक्रिय रही हैं और उनके संगठन परिचालन की क्षमता से लोग वाकिफ हैं. पंचायत प्रशासन में उक्त महिला नेता कितना दक्ष साबित होंगी, इसे लेकर तृणमूल विचार कर रहा है. तृणमूल नेतृत्व का विश्वास है कि जिसने राज्य स्तरीय राजनीति को देखा-समझा है, वह एक लोकसभा क्षेत्र में पार्टी को आसानी से संभाल लेगा. पार्टी सूत्रों के मुताबिक उक्त महिला नेता को दक्षिण मालदा लोकसभा क्षेत्र के अध्यक्ष के साथ राज्य प्रशासन में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. तृणमूल सूत्रों ने बताया कि उत्तर मालदा में पार्टी संगठन को दुरुस्त करने के लिए तृणमूल विरोधी दल के एक तेजतर्रार नेता पर नजर गड़ाये हुए है.
अकेले दम पर उसने अपनी छोटी सी पार्टी को इलाके में मजबूत स्थिति में खड़ा कर दिया है. उस पर तृणमूल की नजर है. पिछले दिनों कुछ हालिया घटनाओं के चलते उत्तर मालदा का यह विरोधी नेता अपने दल की भूमिका से क्षुब्ध चल रहा है. इसे लेकर तृणमूल उत्साहित है. तृणमूल का शीर्ष नेतृत्व उक्त नेता को उत्तर मालदा लोकसभा क्षेत्र में पार्टी की जिम्मेदारी सौंपना चाहती है.
पार्टी सूत्रों ने बताया कि दक्षिण मालदा और उत्तर मालदा के लिए तृणमूल कांग्रेस जिन दो नये चेहरों को लाना चाहती हैं वे अल्पसंख्यक समुदाय से हैं. पार्टी को उम्मीद है कि इनके आने से अल्पसंख्यकों के वोट उसे और ज्यादा मिल सकेंगे. 18 जून को कोलकाता के नेताजी इनडोर स्टेडियम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल के अन्य शीर्ष नेता पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं के साथर बैठक करेंगे. अगर उक्त दोनों नेता उस दिना अपना दल छोड़कर तृणमूल में शामिल हो जाते हैं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इधर इन दोनों नेताओं के समर्थक भी इस कोशिश में लगे हैं कि ये तृणमूल में शामिल हो जायें. सत्तारूढ़ दल में शामिल होने से इनके समर्थकों का भी प्रभाव बढ़ेगा.