सिलीगुड़ी : पिछले एक दशक में गिद्ध की संख्या में 99 प्रतिशत तक की कमी आई है. गिद्धों की लगातार घट रही संख्या से पर्यावरण संतुलन नष्ट हो रहा है. गिद्धों के मरने के पीछे डाइक्लोफिनेक सोडियम दवा को कारण बताया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में इस दवा का इस्तेताल मवेशियों के इलाज के लिए किया जाता जाता है. जब गिद्ध मृत मवेशियों का मांस खाते हैं तो रीनल फेलियर होने से उनकी मौत हो जाती है.
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गिद्धों की घट रही संख्या से पर्यावरण संतुलन पर खतरा
सिलीगुड़ी : पिछले एक दशक में गिद्ध की संख्या में 99 प्रतिशत तक की कमी आई है. गिद्धों की लगातार घट रही संख्या से पर्यावरण संतुलन नष्ट हो रहा है. गिद्धों के मरने के पीछे डाइक्लोफिनेक सोडियम दवा को कारण बताया जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में इस दवा का इस्तेताल मवेशियों के इलाज के […]
इस दवा के विकल्प को लेकर विभिन्न पर्यावरण संस्थाएं देशव्यापी प्रचार-प्रसार अभियान चला रही है. गिद्धों के संरक्षण विषय को लेकर रविवार को शहर के रामकिंकर हॉल में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, डायरेक्टरेट ऑफ फॉरेस्ट (वेस्ट बंगाल) तथा हिमालयन नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन (नेफ) की ओर से एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. जिसमें पर्यावरण विशेषज्ञों ने गिद्धों की घटती संख्या पर चिंता जतायी. इस जागरूकता कार्यक्रम में विभिन्न स्कूल, कॉलेजों के छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया.
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के डायरेक्टर सचिन रानाडे ने जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि गत एक दशक में 99 फीसदी गिद्धों की मौत हो चुकी है. उन्होंने बताया कि गिद्ध मृत मवेशियों को खाकर पर्यावरण को साफ-सुथरा रखते हैं.
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