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छठ महापर्व: मिट्टी के भाव बिक रहे मिट्टी के चूल्हे, समय के साथ कद्रदानों की संख्या में कमी
सिलीगुड़ी : कल रविवार को नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत हो जायेगी. छठ को सूर्योपासना का महान पर्व कहते हैं. काफी दिनों से इसकी तैयारी की जा रही है.अब तो शहर के विभिन्न छठ घटों में तैयारी अंतिम चरण में है. खास बात यह है कि यूपी, बिहार में लोकप्रिय पर्व छठ पूजा […]
सिलीगुड़ी : कल रविवार को नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत हो जायेगी. छठ को सूर्योपासना का महान पर्व कहते हैं. काफी दिनों से इसकी तैयारी की जा रही है.अब तो शहर के विभिन्न छठ घटों में तैयारी अंतिम चरण में है. खास बात यह है कि यूपी, बिहार में लोकप्रिय पर्व छठ पूजा को अब पूरे देश के साथ ही विदेशों में भी मनाया जाने लगा है. जो इसके महत्व को और ज्यादा बढ़ा देता है.
आज भी छठ व्रत पारम्परिक करीके से होता है. आधुनिकता की जरा भी छाप यहां नहीं दिखती. पुराने रीति रिवाज के अनुसार ही इस पर्व को मनाया जाता है.व्रतधारी अपने हाथों से प्रसाद बनाकर छठ माता तथा सूर्य देवता को अर्पण करते हैं. परंपरा के अनुसार प्रसाद को मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाया जाता है. मिट्टी के चूल्हे पर छठ प्रसाद बनाने की परम्परा सदियों पुरानी है.
लेकिन कहते हैं ना समय के साथ-साथ सबकुछ बदल जाता है.आधुनिकता की छाप देर से ही सही लेकिन छठ व्रत पर भी दिखने लगी है.मिट्टी के बने चूल्हे भी आधुनिकता के शिकार होने लगे हैं. सिलीगुड़ी में भी छठव्रती मिट्टी के चूल्हे पर ही प्रसाद बनाते हैं. फिर भी ऐसे छठव्रतियों की संख्या भी कम नहीं है जो प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का उपयोग नहीं कर रहीं हैं.
बहरहाल, छठ के इस मौके पर सिलीगुड़ी के वर्द्धमान रोड पर मिट्टी के चूल्हों की दुकान लगने लगे हैं.हांलाकि इक्का-दुक्का लोग ही इस चूल्हे में अपनी रुची दिखा रहे हैं. चूल्हा बेचने वालों का कहना है कि बदलते समय के साथ मिट्टी के चूल्हे के कद्रदान भी कम हो रहे हैं. लोग चूल्हा के मुकाबले गैस तथा इन्डक्शन का उपयोग करते हैं. जिसका सीधा असर उनके व्यापार पर पड़ रहा है.
चूल्हा बेचने वाली महिलाएं ममता सहनी, जिवशी सहनी आदि ने बताया कि वे पिछले कई वर्षों से इस काम को कर रही हैं.छठ पूजा में चूल्हा बनाने में चिकनी मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मिट्टी को वे सुकना, सालबारी जैसे इलाकों से मंगवाती है. उसी मिट्टी से चूल्हे का निर्माण कर छठ पूजा से पहले बाजारों में बेचती हैं. उन्होंने बताया कि पहले छठ पूजा के खरना से लेकर अर्घ्य में चढ़ाने वाले पूरे प्रसाद को चूल्हे में बनाया जाता था. पहले हिन्दीभाषी इलाकों में मिट्टी के चूल्हों की जबरदश्त बिक्री होती थी.
उनलोगों ने बताया कि एक चूल्हे के निर्माण में 100 रुपये के आसपास खर्च आता है. जबकि बिक्री 110 से 120 रूपये में होती है और वो भी बड़ी मुश्किल से. इनलोगों ने कहा कि समय के साथ गैस तथा इंडक्शन का उपयोग बढ़ने लगा है. जिससे इन चूल्हों के कद्रदान कम हो रहे हैं. उनका कहना है कि इन चूल्हों को बेच कर होने वाले मुनाफे से ही परिवार चलता है. इस वर्ष चूल्हे की बिक्री कुछ खास नहीं है. ऐसी परिस्थिति में दो वक्त की रोजी-रोटी जुटाना भी मुश्किल हो गया है.
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