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उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज में बनेगा आधुनिक दवाखाना

सभी महंगी दवाइयों को रखने की विशेष व्यवस्था दवाइयों के एक्सपायर होने की समस्या से मुक्ति प्रबंधन के प्रस्ताव को राज्य सरकार ने दी मंजूरी पांच करोड़ की लागत से शीघ्र शुरू होगा निर्माण कार्य मोहन झा सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज में अत्याधुनिक दवाखाना बनाये जाने की कवायद शुरू कर […]

सभी महंगी दवाइयों को रखने की विशेष व्यवस्था

दवाइयों के एक्सपायर होने की समस्या से मुक्ति
प्रबंधन के प्रस्ताव को राज्य सरकार ने दी मंजूरी
पांच करोड़ की लागत से शीघ्र शुरू होगा निर्माण कार्य
मोहन झा
सिलीगुड़ी : उत्तर बंगाल के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज में अत्याधुनिक दवाखाना बनाये जाने की कवायद शुरू कर दी गयी है. मेडिकल कॉलेज परिसर में ही करोड़ो रूपये की लागत से एक अत्याधुनिक दवाखाना बनाये जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गयी है. इस अत्याधुनिक दवाखाना बन जाने के बाद रोगियों को काफी लाभ होगा. सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य सरकार द्वारा रोगियों को दी जाने वाली दवा समय पर हो जाने के कारण नष्ट नहीं होगी. दवाइयां नष्ट होने के बजाए रोगियों तक पहुंचेगी. दवाखाना बनने से उसकी गुणवत्ता भी लंबे समय तक बनी रहेगी.
उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में इलाज कराने वाले रागी आरोप लगाते रहते हैं कि आवश्यक मंहगी दवाइयां बाहर दुकान से खरीदनी पड़ती है. मरहम-पट्टी, सीरींज, कुछ इंजेक्शन, ग्लूकोज व कम कीमत वाली कुछ दवाइयों के अलावे सरकारी तौर पर कुछ नहीं मिलता है. मंहगी दवाइयां बाहर से ही खरीदनी पड़ती है. जबकि कई बार एक्सपायर होने के बाद दवाइयों को फेंकने का आरोप भी उठा है. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज में प्रतिदिन मरीजों की संख्या इतनी अधिक होती है दवाइयां बचने की गुंजाइश ही नहीं है. फिर भी दवाइयां बचती हैं और मियाद खत्म होने के बाद उसे कचरे में फेंक दिया जाता है.
आज से करीब दो वर्ष पहले करोड़ो की दवा कचरे में फेकने का मामला सामने आया था. उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल प्रबंधन ने भारी मात्रा में एक्सपायरी दवाइयों को कचरे के ढेर में फेंक दिया था. वर्ष 2016 में इस मामले की जांच की गयी थी. जांच में मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों की लापरवाही भी सामने आयी. जांच में पाया गया कि करीब एक करोड़ रूपए की दवा नष्ट हुयी है. इसके बाद उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में एक नया और अत्याधुनिक दवाखाना बनाने की मांग ने जोर पकड़ा.
वर्तमान में मेडिकल कॉलेज अधीक्षक कार्यालय के बगल में दवाखाना है. यह दवाखाना एक स्टोर रूम की तरह है. इस कमरे में गल्ले माल की तरह दवाइयां रखी जाती है. दवाइयों को रखने की समुचित व्यवस्था न होने की वजह से थाक के कतार में सबसे नीचे पड़े कार्टून की दवाइयां वैसे ही खराब हो जाती है. दवाइयों से पूरा कमरा अस्त-ब्यस्त रहता है. कर्मचारियों की निगाहें ऐसी दवाओं पर नहीं पड़ती है.
आंख व हाथ भी नहीं पहुंचता. इन्ही कई कारणों की वजह से दवाईयां नष्ट हो जाती है अथवा उसकी मियाद खत्म हो जाती है. वर्ष बाद कमरे की सफाई के दौरान भारी मात्रा में नष्ट दवाइयां निकलती है. राज्य सरकार मरीजों के बेहतर इलाज के लिए दवाइयां मुहैया कराती है. जबकि इन्हीं कई कारणों की वजह से रोगियों तक दवा नहीं पहुंचती है और उन्हें बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ती है.
सीरप, इंजेक्शन व अन्य महंगी व विशेष पद्धति से तैयार महंगी दवाइयों को एसी कमरे में विशेष तौर पर रखा जाता है. जबकि उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में इस प्रकार की दवा को रखने की विशेष व्यवस्था नहीं है.
मिली जानकारी के अनुसार एक अत्याधुनिक दवाखाना बनाने की मांग कई बार उठने पर प्रबंधन ने इस पर गौर किया. रोगी कल्याण समिति की बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के बाद सहमति बनी. राज्य स्वास्थ विभाग को भी प्रस्ताव भेजा जा चुका है. दवाखाने का निर्माण लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) को सौंप दिया गया है. इस एसी दवाखाने को एक करोड़ पांच लाख रूपये की लागत से बनाया जा रहा है. इसमें दवाइयों को रखने के लिए अलग-अलग केबिन के साथ समुचित व्यवस्था रहेगी.
अत्याधुनिक दवाखाना बनने के बाद सभी सभी प्रकार की दवाइयां यहां उपलब्ध करायी जायेगी. इस संबंध में उत्तर बंगाल मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के अधीक्षक डॉ. मैत्रेयी कर ने बताया कि यहां एक अत्याधुनिक दवाखाने की आवश्यकता है. इससे दवाइयों का स्टॉक बढ़ाना संभव होगा. साथ ही दवाइयों को नष्ट होने से भी बचाया जा सकेगा. राज्य सरकार रोगियों के लिए दवायां मुहैया कराती है. उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है. इसी दिशा में पहल करते हुए एक अत्याधुनिक दवाखाना निर्माण करने की कवायद शुरू की गयी है.

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