सिलीगुड़ी: कौन कहता है बौने केवल सर्कस के जोकर या फिर समाज में हंसी के पात्र होते हैं. उनमें भी आम इंसानों के तरह ही जिंदगी जीने का जज्बा होता है. यह कहना आश्चर्य नहीं होगा कि उल्टे उनमें आम इंसानों से अधित क्षमता होती है. ऐसा ही कुछ जज्बा असम के कई बौनों में […]
सिलीगुड़ी: कौन कहता है बौने केवल सर्कस के जोकर या फिर समाज में हंसी के पात्र होते हैं. उनमें भी आम इंसानों के तरह ही जिंदगी जीने का जज्बा होता है. यह कहना आश्चर्य नहीं होगा कि उल्टे उनमें आम इंसानों से अधित क्षमता होती है. ऐसा ही कुछ जज्बा असम के कई बौनों में देखा जा रहा है. जो समाज में फैली भ्रांतियों को चुनौती दे रहे हैं.
असम से बाहर पूरे देश में कई जगहों पर अपनी जिंदगी पर बनाये गये कई नाटकों का मंचन कर यह सभी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी के तहत सिलीगुड़ी में असम से आये कुल 11 बौनों समेत कुल 22 युवक-युवतियों की एक टीम ने बुधवार को स्थानीय दीनबंधु मंच (टाउन हॉल) में बॉलीवुड कलाकार सह नाट्यकार पवित्र राभा के सान्निध्य में ‘किनो कौन’ नामक नाटक का उम्दा नाट्य मंचन कर दर्शकों को दांतों तले अंगूली दबाने पर मजूबर कर दिया. सभी कलाकारों ने बौनों की जिंदगी से नाटक के जरिये रुबरु कराया और खूब वाह-वाही लूटी.
नाट्य मंचन से पहले एक बौना कलाकार मैक्स तिरकी ने प्रभात खबर के प्रतिनिधि ने भेंट कर उनकी जिंदगी पर बातचीत की तो उन्होंने कई अनछुए पहलुओं पर बेबाक बातें की. मैक्स का कहना है कि मेरे नाट्य गुरु पवित्र दा हैं. उनके संपर्क में आने से पहले उनकी जिंदगी केवल घर के चार दिवारी के अंदर ही घूंट रही थी. वजह चौखट के बाहर कदम रखा नहीं लोग तरह-तरह से मजाक करते और हंसी उड़ाते. समाज के बीच केवल हंसी का पात्र बनकर रह गये थे. लेकिन जब से पवित्र दा के संपर्क में आया तबसे उसकी बोझिल जिंदगी पूरी तरह से तब्दील हो गयी. मैक्स का कहना है कि आज केवल वह ही नहीं बल्कि उनके जैसे तकरीबन 25 बौने पवित्र दा के वजह से सम्मान भरी जिंदगी जी रहे हैं.
उसने बताया कि आज सात साल पहले पवित्र दा ने हमारी प्रतिभाओं को पहचाना और हम सभी को अपने थियेटर ग्रुप ‘दपन द मिरर’ से जोड़ा. साथ ही असम के उदालगुड़ी जिला के तांग्ला नामक गांव में उनके द्वारा पांच बीघा जमीन पर बनाये गये ‘थियेटर विलेज’ में लाया. जहां हम सभी उनसे नाट्य कला सीखते हैं. वहीं पर खेती बाड़ी कर अपना संसार भी चलाते हैं. पवित्र दा के सान्निध्य में उन लोगों ने किनो कैनो व रांग नंबर जैसे अब-तक कुल पांच नाटकों को संपादित कर चुके हैं. जिनका पूरे देश में मंचन भी किया जा रहा है. ऐसा ही कुछ कहना है दिलीप काकोटी, रंजीत दास, नयन दइमारी, तोरा सोना, रंजू वेश्य, थिमथियास तिर्की, धन दास, सिबिरिना देइमारी व अन्य युवक-युवती और महिला-पुरुष बौने नाट्य कलाकारों का भी.
असम के तांग्ला में बनाया थियेटर विलेज : वहीं, बॉलीवुड कलाकार सह नाट्यकार पवित्र राभा मूल रुप से असम के वासिंदा हैं. वह चर्चित बॉलीवुड हिंदी फिल्म मैरीकॉम, मुखबिर जैसे कई नामी फिल्मों में अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं. पवित्र ने प्रभात खबर को बताया कि वह 2002 से नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से जुड़े.
2003 में ‘दर्पण द मिरर’ नामक अपना थियेटर ग्रुप स्थापित किया. 2008 में बौनों को लेकर समाज की भ्रांतियों को दूर करने और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की ठानी. इसके लिए सबसे पहले उन्होंने असम के विभिन्न क्षेत्रों से बौनों को अपने थियेटर ग्रुप से जोड़ा. बाद में तकरीबन 20-25 बौनों और उनके पूरे परिवार को लेकर असम के ही तांग्ला गांव में अपना थियेटर विलेज बनाया. नाट्य कला को लेकर सबसे पहले उन सभी को 45 दिनों के कार्यशाला में प्रशिक्षित किया.
यहीं उनकी प्रतिभा को परखा गया. जिसने नाट्य कला में रुचि दिखायी उन सभी को नाटक के हरेक पहलुओं की जानकारी दी गयी और कला का पूरा अभ्यास कराया गया. बाद में 2012 से उम्दा नाट्यकारों को लेकर पवित्र ने कई नाटकों को संपादित किया जिसे आज पूरी दुनिया के सामने पेश किया जा रहा है. पवित्र की माने तो आज उनके थियेटर ग्रुप की ख्याति इतनी फैल चुकी है कि देश के विभिन्न प्रांतों से भी कई बौने कलाकार उनकी ग्रुप में शामिल होना चाहते हैं. हाल ही में पुणे से चार बौने कलाकार उनकी ग्रुप से जुड़ चुके हैं.