सिलीगुड़ी. भाजपा ने दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को जायज ठहराया है और कहा है कि इस समस्या का समाधान तत्काल होना चाहिए, नहीं तो पहाड़ की स्थिति दिन पर दिन जटिल होती जायेगी. गोरखाओं को विदेशी कहना सही नहीं है. वह लोग अपनी पहचान के लिए अलग राज्य की मांग कर रहे हैं. ये बातें भाजपा के जिला उपाध्यक्ष नंदन दास ने कहीं. उन्होंने कहा कि पहाड़ पर संकट लगातार गहरा रहा है और इसकी कीमत वहां के आम लोगों को चुकानी पड़ रही है.
यह सही है कि गोरखा दार्जिलिंग में नेपाल से आये हैं. लेकिन सैकड़ों साल यहां रहने के बाद उनको नेपाल का कहना सही नहीं है. देश पर जब अंग्रेज शासन कर रहे थे, तब दार्जिलिंग में चाय बागान लगाने तथा मजदूरी के लिए वह लोग नेपाल से गोरखाओं को लेकर आये थे. देश की आजादी के बाद जिस तरह से अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया गया, उसी तरह से दार्जिलिंग के गोरखाओं को भी वापस नेपाल भेज देना चाहिए था. तब गोरखालैंड जैसी कोई समस्या ही नहीं होती.
अब गोरखाओं की पूरी पीढ़ी बदल गयी है. ऐसे में उन्हें नेपाल का कहना सही नहीं है. वास्तविकता यह है कि दार्जीलिंग पहाड़ के गोरखा पूरी तरह से भारतीय हैं. देश की आजादी के बाद तत्कालीन सरकारों ने गोरखाओं को मान्यता देने के लिए सेना में गोरखा रेजीमेंट तक का गठन किया. उनकी जातीय पहचान की जो मांग है उसे गलत नहीं ठहराया जा सकता.
श्री दास ने बंगाल विभाजन को बड़ा मुद्दा बनाने वालों को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि बंगाल का विभाजन तो पहले ही हो चुका है. देश की आजादी के समय ही पूर्वी तथा पश्चिम बंगाल बन गया. अब बंगाल विभाजन के नाम पर मतभेद की राजनीति की जा रही है. पहाड़ तथा समतल के लोगों के बीच दूरी बढ़ायी जा रही है.
समतल क्षेत्र में पहाड़ के लोगों के प्रति नफरत भर गया है, तो पहाड़ के लोगों में समतल क्षेत्र के प्रति. दोनों ही क्षेत्र के लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो रहे हैं. ऐसी ही स्थिति आगे भी बनी रही तो स्थिति को काबू में करना मुश्किल हो जायेगा. भाजपा ने पहले से ही गोरखाओं की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने का आश्वासन दिया है. अब केन्द्र में भाजपा की सरकार है, उन्हें उम्मीद है कि केन्द्र सरकार दार्जीलिंग के लोगों से बातचीत कर समस्या का कोई न कोई समाधान निकालेगी.