महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की आशंका के बीच राज्य सरकार को पत्र लिखेगा मानवाधिकार आयोग
कोलकाता. राज्य सरकार द्वारा अलीपुर महिला सुधार गृह में महिला कैदियों के लिए गर्भावस्था परीक्षण शुरू किये जाने के बाद अब पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग राज्य के अन्य सुधार गृहों में भी इस प्रक्रिया को अनिवार्य करने की सिफारिश करने जा रहा है. आयोग के अध्यक्ष और कलकत्ता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य जल्द ही राज्य सरकार को इस संबंध में पत्र लिखेंगे. क्या है प्रस्ताव : आयोग का कहना है कि महिला कैदियों के साथ यौन दुर्व्यवहार की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए, जेल में प्रवेश, पैरोल पर बाहर जाते समय और लौटने के वक्त महिला कैदियों की गर्भावस्था जांच आवश्यक है. इसके लिए पर्याप्त संख्या में परीक्षण किट्स का स्टॉक रखना होगा.
मेदिनीपुर दौरे के बाद निर्णय : आयोग की एक टीम ने हाल ही में मेदिनीपुर सुधार गृह का दौरा किया था. उसके बाद यह अनुशंसा की जा रही है कि सभी महिला सुधार गृहों में इस तरह की जांच को लागू किया जाये ताकि किसी प्रकार के विवाद या आरोप से बचा जा सके.
सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार
इस मामले में राज्य सरकार से अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली है. आयोग ने पहले भी इस विषय में अनुरोध किया था, लेकिन अब इसे औपचारिक पत्र के माध्यम से दोहराया जायेगा.
पृष्ठभूमि : सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट की निगरानी
गौरतलब है कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य के सभी सुधार गृहों की स्थिति की जांच का आदेश दिया था. अदालत द्वारा नियुक्त वकील की रिपोर्ट में कई चिंताजनक तथ्य सामने आये थे, जिनमें महिला कैदियों के गर्भवती होने के मामले भी शामिल थे. इसके बाद उच्च न्यायालय ने महिला सुधार गृहों और नाबालिग गृहों में पुरुषों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वत: संज्ञान लेते हुए सभी राज्यों को आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये थे, ताकि महिला कैदियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
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