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अब नयी तकनीक से होगी हार्ट वाल्व की मरम्मत

आम तौर पर इस तरह के मरीजों की ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है. ज्यादातर मामले में सर्जीप जोखिम भरा रहता है.

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कोलकाता. हार्ट वाल्व की मरम्मत के लिए नयी तकनीक की खोज की गयी है, जिसका नाम माइट्रल रेगुर्गिटेशन (एमआर) है. यह तकनीक अब कोलकाता में भी उपलब्ध है. यह जानकारीर हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ शुभ्र बनर्जी और डॉ सुमंत मुखोपाध्याय ने कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में दी. डॉ बनर्जी ने कहा कि हार्ट वाल्व की मरम्मत ना करने पर मरीज की मौत हो सकती है. इस नयी तकनीक से गंभीर अवस्था में गये मरीजों को बचाया जा सकता है. आम तौर पर इस तरह के मरीजों की ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है. ज्यादातर मामले में सर्जीप जोखिम भरा रहता है. पर नयी तकनीक में किसी प्रकार की जोखिम नहीं है. डॉ बंदोपाध्याय ने कहा कि एमआर की मदद से अब तक 31 मरीजों का सफल इलाज किया गया है. हार्ट वाल्व की मरम्मत उक्त तकनीक से कराने के लिए अब पश्चिम बंगाल के लोगों को दूसरे राज्य जाने की जरूरत नहीं. मौके पर एमआर तकनीक से इलाज के बाद स्वस्थ हुए दो मरीज भी थे. डॉ बनर्जी ने कहा कि माइट्रल वाल्व हमारे हृदय के कुल चार वाल्वों में से एक है. हृदय की सामान्य कार्यप्रणाली को बनाये रखने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है. वाल्व एक उपकरण है जो केवल एक दिशा में खुलता है. बाएं आलिंद और बाएं वेंट्रिकल के बीच माइट्रल वाल्व वेंट्रिकल के दो कक्षों को अलग करता है. जब शुद्ध और अशुद्ध रक्त एक साथ मिल जाते हो जाता है तो लोग बीमार हो जाते हैं. शरीर का पूरा तंत्र गड़बड़ हो जाता है. इस समस्या से निपटने के लिए ओपन हार्ट सर्जरी से माइट्रल वाल्व की मरम्मत की जाती है. लेकिन ज्यादातर मामलों में मरीज की शारीरिक स्थिति इतनी खराब होती है कि सर्जरी करना जोखिम भरा होता है. क्योंकि एनेस्थीसिया के तहत छाती की हड्डी काटकर सर्जरी करना मरीज के लिए सुरक्षित नहीं है. वहीं उक्त आधुनिक इंटरवेंशनल विधि में, कमर में एक छोटा सा छेद किया जाता है और कैथेटर की मदद से माइट्रल वाल्व छेद की मरम्मत की जाती है. इस इंटरवेंशनल प्रक्रिया का चिकित्सा नाम माइट्रल ट्रांसमीटर एज टू एज रिपेयर (एम टीईईआर) है. 12 दिन के भीतर मरीज ठीक होकर घर लौट सकता है.

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