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जस्टिस कर्णन ने चीफ जस्टिस खेहर समेत आठ जजों को सुनायी पांच साल की सजा

कोलकाता : न्यायिक अवमानना के आरोपों का सामना कर रहे कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन ने सोमवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और उच्चतम न्यायालय के सात अन्य न्यायाधीशों को पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनायी. उच्चतम न्यायालय से टकराव को बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि […]

कोलकाता : न्यायिक अवमानना के आरोपों का सामना कर रहे कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन ने सोमवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर और उच्चतम न्यायालय के सात अन्य न्यायाधीशों को पांच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनायी.

उच्चतम न्यायालय से टकराव को बढ़ाते हुए न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि आठ न्यायाधीशों ने ‘संयुक्त रूप से 1989 के अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम और 2015 के संशोधित कानून के तहत दंडनीय अपराध किया है.’ उन्होंने शीर्ष अदालत की सात न्यायाधीशों की पीठ के सदस्यों के नाम लिये जिनमें प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ हैं. पीठ ने न्यायमूर्ति कर्णन के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की थी और उनके न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज पर रोक लगा दी थी.

न्यायमूर्ति कर्णन ने सूची में उच्चतम न्यायालय की एक और न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर भानुमति का नाम भी जोड़ा जिनके खिलाफ इसलिए आदेश जारी किया गया क्योंकि उन्होंने न्यायमूर्ति कर्णन को न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज से रोका था. न्यायमूर्ति कर्णन ने चार मई को उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार मानसिक स्वास्थ्य जांच कराने से इनकार कर दिया था. उन्होंने डॉक्टरों के एक दल से कहा कि वह पूरी तरह सामान्य हैं और मानसिक रूप से स्थिर हैं.

न्यायमूर्ति कर्णन ने कहा कि शीर्ष अदालत के आठों न्यायाधीशों ने जातिगत भेदभाव किया है. उन्होंने कहा, ‘उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम, 1989 के तहत दंडित किया जायेगा.’ उन्होंने कहा कि आठ न्यायाधीशों ने एक सार्वजनिक संस्थान में मुझे अपमानित करने के अलावा एक दलित न्यायाधीश का उत्पीड़न किया है. उनके आदेशों से सभी संदेह से परे यह साबित हो गया है.

न्यायमूर्ति कर्णन ने यहां न्यू टाउन में रोजडेल टॉवर स्थित अपने आवास पर अस्थायी अदालत से जारी अपने आदेश में कहा, ‘इसलिए इस मामले में अदालत का फैसला जरूरी नहीं है.’ उन्होंने अपने आदेश में प्रत्येक के लिए पांच-पांच साल कैद की सजा सुनायी और एससी-एसटी कानून की धारा 3 की उपधाराओं (1)(एम), (1) (आर) और (1) (यू) के तहत तीन आधार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया. न्यायमूर्ति कर्णन ने निर्देश दिया कि तीनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी और यदि जुर्माना अदा नहीं किया गया तो उन्हें छह महीने की कैद और काटनी होगी. उन्होंने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि आदेश प्राप्त होने के एक सप्ताह के अंदर नयी दिल्ली के खान मार्केट स्थित राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग में जमा की जाये.

न्यायमूर्ति कर्णन ने यह भी कहा कि उनके द्वारा 13 अप्रैल को जारी आदेश अभी प्रभावी है जिसमें उन्होंने सात न्यायाधीशों की पीठ के सदस्यों को 14 करोड़ रुपये का जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया था. उन्होंने निर्देश दिया था, ‘उच्चतम न्यायालय से संबद्ध रजिस्ट्रार जनरल प्रत्येक के वेतन से यह राशि वसूल करेंगे.’ उन्होंने न्यायमूर्ति भानुमति को दो करोड़ रुपये का मुआवजा अदा करने का निर्देश भी दिया.

शीर्ष अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ लिखे गये न्यायमूर्ति कर्णन के अनेक पत्रों का स्वत: संज्ञान लिया है और आठ फरवरी से उनके प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारों के उपयोग पर रोक लगा रखी है. न्यायमूर्ति कर्णन अवमानना कार्यवाही के सिलसिले में 31 मार्च को उच्चतम न्यायालय में पेश हुए थे. वह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा करने वाले उच्च न्यायालय के पहले न्यायाधीश हैं.

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