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सिक्किम में लगायी गयी भूस्खलन चेतावनी प्रणाली

कोलकाता : सिक्किम में अमृता विश्व विद्यापीठम (एवीवी) ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) आधारित भूस्खलन चेतावनी प्रणाली लगायी है, जो हिमालयी क्षेत्र में अपनी तरह की पहली प्रणाली है. संस्थान के सेंटर फॉर वायरलेस नेटवर्क्स एंड एप्लीकेशन की निदेशक डॉ मनीषा सुधीर ने बताया कि यह सिक्किम के गंगताेक जिले के चांदमरी गांव के चारों […]

कोलकाता : सिक्किम में अमृता विश्व विद्यापीठम (एवीवी) ने इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आइओटी) आधारित भूस्खलन चेतावनी प्रणाली लगायी है, जो हिमालयी क्षेत्र में अपनी तरह की पहली प्रणाली है. संस्थान के सेंटर फॉर वायरलेस नेटवर्क्स एंड एप्लीकेशन की निदेशक डॉ मनीषा सुधीर ने बताया कि यह सिक्किम के गंगताेक जिले के चांदमरी गांव के चारों ओर 150 एकड़ में फैले घने आबादीवाले क्षेत्र की निगरानी करेगी.

इस क्षेत्र में पहले भी भूस्खलन हो चुके हैं. यहां पहली बार 1997 में भूस्खलन दर्ज किया गया था. इस परियोजना को भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और अमृता विश्व विद्यापीठम द्वारा संयुक्त रूप से वित्तीय मदद दी जाती है. उन्होंने कहा : परियोजना स्थल से नियंत्रण कक्ष तक डाटा का प्रवाह शुरू हो गया है. करीब 200 सेंसर भूमि के अंदर 13 मीटर तक लगाये गये हैं और विभिन्न डाटा का विश्लेषण कर उन्हें प्रेषित किया जा रहा है. हम करीब तीन वर्षों से यहां काम कर रहे हैं.
उन्होंने बताया कि प्रणाली की विश्वसनीयता में सुधार और जल्द चेतावनी जारी करने की व्यवस्था को उन्नत बनाने के लिए तीन स्तरीय लैंडस्लाइड अर्ली वार्निंग विकसित किया गया है. डॉ सुधीर ने बताया कि भूस्खलन पृथ्वी पर तीसरी सबसे घातक प्राकृतिक आपदा है, जिसके कारण दुनिया भर में हर साल 300 से अधिक लोगों की मौत हो रही है.
भारत में घातक भूस्खलन की संख्या अन्य देशों की तुलना में अधिक है. इंडियन रोड्स कांग्रेस की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि पश्चिमी घाट और कोंकण हिल्स, पूर्वी घाट, उत्तर पूर्व हिमालय और उत्तर पश्चिम हिमालय जैसे क्षेत्रों सहित भारत की 15 प्रतिशत जमीन भूस्खलन के खतरे के प्रति संवेदनशील है. उत्तर पूर्व हिमालय में, सिक्किम-दार्जिलिंग बेल्ट में भूस्खलन का सबसे अधिक खतरा है. यही कारण है कि हमने हमारी भूस्खलन पहचान प्रणाली को स्थापित करने के लिए इस क्षेत्र को चुना है.
भूस्खलन के बारे में डेविड पेटली के वैश्विक डेटाबेस के मुताबिक दुनिया के शीर्ष दो भूस्खलन स्थल भारत में मौजूद हैं : हिमालयी आर्क के दक्षिणी किनारे और दक्षिण-पश्चिम भारत के तट, जहां पश्चिमी घाट स्थित हैं. दक्षिणी हिमालयी आर्क में न केवल टेक्टोनिक गतिविधियां होती हैं, बल्कि मानसून की बारिश और ढलानों में मानव निर्मित परिवर्तन ने इन पहाड़ियों को भूस्खलन के लिए अधिक संवदेनशील बना दिया है. एवीवी के कुलपति वेंकट रंगन ने बताया कि सिक्किम में यह दूसरी परियोजना है, जिसे सिक्किम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सहयोग से लागू किया गया है.
लोगों का जीवन बचाने की कवायद
अमृता विश्व विद्यापीठम ने एक विशेष प्रणाली की मदद से पहाड़ी क्षेत्रों में लोगों के जीवन को बचाने के लिए अभियान चलाया है. इस अभियान के तहत लगायी जानेवाली प्रणाली भूस्खलन की अग्रिम चेतावनी देती है, ताकि लोगों को आपदा से पहले सुरक्षित रूप से उस स्थान से हटा दिया जा सके. केरल के पश्चिमी घाटों में भारत की पहली ऐसी प्रणाली को सफलतापूर्वक स्थापित करने के बाद, अब सिक्किम-दार्जिलिंग बेल्ट में बारिश से प्रेरित भूस्खलन की समय पर चेतावनी देनेवाली दूसरी प्रणाली सिक्किम में भी स्थापित की जा रही है.

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