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खुफिया विभाग की रिपोर्ट : गोरखालैंड आंदोलन को हवा दे सकता है चीन

सिलीगुड़ी. इन दिनों दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में जारी गोरखालैंड आंदोलन को चीन और हवा दे सकता है. चीन का सहयोग लेने के लिए गोरखालैंड आंदोलनकारी पड़ोसी देश नेपाल और चीन के साथ संपर्क साधने में लगे हुए हैं. चीन को भी लग रहा है कि भारत को परेशान करने का यह अच्छा मौका है. वैसे […]

सिलीगुड़ी. इन दिनों दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में जारी गोरखालैंड आंदोलन को चीन और हवा दे सकता है. चीन का सहयोग लेने के लिए गोरखालैंड आंदोलनकारी पड़ोसी देश नेपाल और चीन के साथ संपर्क साधने में लगे हुए हैं. चीन को भी लग रहा है कि भारत को परेशान करने का यह अच्छा मौका है. वैसे भी इन दिनों पड़ोसी राज्य सिक्किम में भारत-चीन सीमा पर तनातनी बनी हुई है. इस प्रकार की रिपोर्ट खुफिया विभाग ने केंद्र सरकार को सौंपी है.

उसके बाद जहां केंद्र सरकार इस समस्या से निबटने की लिए रणनीति बनाने में लगी है, वहीं बंगाल सरकार को भी सतर्क कर दिया गया है. इतना ही नहीं, पहाड़ की राजनीति पर गहरी पकड़ रखनेवालेवाले राजनीतिक विश्लेषकों ने भी कुछ ऐसा ही दावा किया है. इनकी मानें, तो पहाड़ पर जारी हिंसक आंदोलन को केंद्र व राज्य सरकारें संयुक्त रूप से जल्द नहीं निपटती हैं, तो इसके गंभीर परिणाम केवल पश्चिम बंगाल को ही नहीं, बल्कि सिक्किम के साथ पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है. दार्जिलिंग पार्वतीय क्षेत्र भौगोलिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा दािर्जलिंग जिले से लगती है.

चीन की सीमा भी ज्यादा दूर नहीं है. हाल ही में सिक्किम सरकार द्वारा गोरखालैंड आंदोलन को समर्थन करने के कुछ ही घंटों बाद चीनी सेना ने अंतरराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन कर सिक्किम क्षेत्र के भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की हिमाकत की. भारत के कई बंकर भी तहस-नहस कर दिये. हालांकि भारतीय जवानों ने भी चीनी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया. अपने वर्षों के अनुभव के आधार पर यहां के प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक उदय दुबे का कहना है कि भले ही चीनी सेना को भारतीय फौजियों ने खदेड़ दिया हो, लेकिन चीन ने इस घुसपैठ के जरिये अपने काले मंसूबों को उजागर कर दिया है. साथ ही मौके की ताक में भी है.

श्री दुबे का कहना है कि देश इन दिनों अलगाववादी संगठनों के आंदोलनों से जूझ रहा है. जम्मू-कश्मीर में पहले ही अलगाववादियों ने आग लगा रखी है और अब दार्जिलिंग भी सुलगने लगा है. इसी बीच, पूर्वोत्तर भारत के प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन केएलओ, उल्फा जैसे आधे दर्जन से भी आतंकवादी संगठन फिर एकसाथ फन उठाने को तैयार दिख रहे हैं. वैसे भी अभी हाल ही में गोरखालैंड आंदोलन को दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में और तेज करने के लिए मोरचा के शीर्ष नेताओं ने पूर्वोत्तर राज्यों के आतंकी संगठनों के अलावा नेपाल के आतंकी संगठनों के साथ भी कई दौर की गुप्त मीटिंग की है. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि देश के आंतरिक मामलों में बाहरी और आतंकी शक्तियों के हस्तक्षेप को नेस्तनाबूद करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अभी से ही अधिक चौकस होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर और अलर्ट होने की जरूरत है. इसके अलावा, देश के संवेदनशील मुद्दों को आपसी बातचीत के जरिये जल्द सुलझाने की भी आवश्यकता है, नहीं तो अलगाववादी संगठन पड़ोसी देशों के साथ मिलकर भारत को गंभीर परिणाम देने के लिए तत्पर बैठे हैं. लेकिन सुरक्षा के इन गंभीर मुद्दों पर दार्जिलिंग जिले के कोई भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी किसी भी तरह की टिप्पणी करने से बचने की कोशिश कर रहे हैं.

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