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राजग्राम में पत्थर खदान बंद, 25 हजार श्रमिक हो गये बेरोजगार

त्यौहारों से पहले पत्थर उद्योग से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी पर संकट

मुकेश तिवारी, बीरभूम

जिले के राजग्राम क्षेत्र में पत्थर उद्योग के बंद होने से करीब 25 हजार श्रमिकों की रोजी-रोटी पर संकट गहराने लगा है. जिला प्रशासन के निर्देश के बाद पिछले छह माह से सभी क्रेशर और पत्थर खदान बंद पड़े हैं. इसके चलते त्यौहारों के मौसम में मजदूरों के सामने रोजी-रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.

कभी था इलाके की शान

राजग्राम का पत्थर उद्योग कभी इलाके की शान माना जाता था. यहां का पत्थर रेल और ट्रकों के जरिये राज्य के साथ-साथ दूसरे प्रांतों में भी भेजा जाता था. चार बड़ी कंपनियों और सैकड़ों छोटे क्रेशर यूनिटों में हजारों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते थे. खदानों से जुड़े ड्राइवर, पेलोडर ऑपरेटर और मशीन चालकों की भी कमाई इसी उद्योग पर निर्भर थी.

राजनीतिक पहल

राजग्राम तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष गाउस अली ने श्रमिकों की दिक्कतों को गंभीर बताते हुए कहा कि नियम-कानून का पालन करते हुए उद्योग को पुनः शुरू किया जाये. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर जल्द कदम नहीं उठाया गया तो हजारों परिवार भुखमरी की कगार पर पहुंच जायेंगे. मामला महकमा शासक और जिला अधिकारी के पास पहुंच चुका है.

राजग्राम पत्थर उद्योग का बंद होना केवल एक उद्योग का संकट नहीं, बल्कि पूरे इलाके की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला मसला है. अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि सरकार और जिला प्रशासन श्रमिकों के हित में क्या कदम उठाते हैं.

श्रमिकों का आक्रोश

स्थानीय श्रमिकों का कहना है कि पत्थर उद्योग बंद होने से उनकी जिंदगी अस्त-व्यस्त हो गयी है. राजग्राम ब्लॉक के गोपालपुर, मणिपुर, श्रीपुर, मथुरापुर और बडुआ जैसे गांवों में सैकड़ों परिवार सीधे तौर पर इस उद्योग से जुड़े थे. कई बार मुरारई श्रमिक संगठन के बैनर तले जुलूस और विरोध प्रदर्शन भी किये गये. बीडीओ को ज्ञापन सौंपा गया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.

अवैध उत्खनन पर कार्रवाई

जिला प्रशासन की रिपोर्ट के अनुसार कंपनियों ने बरुआ-गोपालपुर मौजा के लगभग 40 भूखंडों से अवैध उत्खनन किया था. करीब 17 मिलियन क्यूबिक फीट पत्थर बिना रॉयल्टी चुकाये निकाले गये. इस पर कंपनियों पर जुर्माना लगाया गया, जिसके बाद रेलवे ने भी यहां से अपना कारोबार रोक दिया.

श्रमिकों की गुहार

श्रमिक कालू सोरेन और हरिपद मंडी ने कहा कि पत्थर खदान बंद होने से हजारों लोग बेरोजगार हो गये हैं. कुछ परिवार पलायन कर चुके हैं, लेकिन ज्यादातर श्रमिक इसी उम्मीद में टिके हैं कि सरकार उद्योग को फिर से चालू करेगी. श्रमिक गणेश भगत ने बताया कि वे 2001 से काम कर रहे हैं और पहले अच्छी कमाई होती थी, लेकिन अब परिवार चलाना मुश्किल हो गया है.

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