दो हजार वर्षों से चली आ रही राजसी परंपरा का जीवंत आयोजन
हंसराज सिंह, पुरुलिया
जिले के काशीपुर पंचकोट राजवंश के ऐतिहासिक देवी मंदिर में सोमवार से 16 दिवसीय भव्य दुर्गापूजा की शुरुआत हुई. लगभग दो हजार वर्षों से चली आ रही इस पूजा का शुभारंभ परंपरा अनुसार कृष्ण नवमी के दिन किया गया. यहां मां दुर्गा की चतुर्भुजा अष्टधातु प्रतिमा को राजराजेश्वरी स्वरूप में पूजा जाता है.
रामायण से प्रेरित षोडश कल्प पूजा जनश्रुतियों के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण वध से पहले 16 दिनों तक मां दुर्गा की साधना की थी. उसी परंपरा का अनुसरण करते हुए पंचकोट राजवंश में भी षोडश कल्प नियमों के तहत पूजा की जाती है. इस अनूठे आयोजन में मां दुर्गा को 16 कलाओं के रूप में साधना की जाती है, जिससे इसे “षोडश कल्प दुर्गापूजा ” कहा जाता है.अनूठी परंपराएं और रहस्यमयी अनुष्ठान
राजपरिवार के सदस्य सोमेश्वरलाल सिंहदेव के मुताबिक आज भी मंदिर में बलिप्रथा कायम है और मां के भोग में मांस-मछली की परंपरा है. दुर्गाष्टमी के दिन मंदिर प्रांगण में “श्रीनाद ” मंत्र का गुप्त पाठ किया जाता है, जिसे रहस्यमयी माना जाता है. इसी दिन सिंदूर-पात्र पर राजराजेश्वरी के चरणचिह्न प्रकट होते हैं, जो भक्तों के लिए आस्था और आश्चर्य का कारण है.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ऐतिहासिक विवरण के अनुसार लगभग 80-90 ईस्वी में विक्रमादित्य वंश के महाराजा जगतदल सिंहदेव के कनिष्ठपुत्र दामोदर शेखर सिंहदेव बहादुर ने “चाटला पंचकोट राज ” की स्थापना की थी और तभी से यहां राजराजेश्वरी की पूजा दुर्गा रूप में आरंभ हुई. आज भी राजवंश के उत्तराधिकारी इस आयोजन में अनिवार्य रूप से शामिल होते हैं. महा नवमी को विशेष पूजा और विजयादशमी पर घट विसर्जन के साथ यह पूजा संपन्न होती है. पूरे आयोजन के दौरान मंदिर परिसर उत्सवमय बना रहता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

