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बर्नपुर में 70 साल पुराने पांच कूलिंग टावर ध्वस्त

सेल-आइएसपी के प्रत्येक टावर की ऊंचाई 72 मीटर व व्यास 30 से 48 मीटर था

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बर्नपुर. पश्चिम बर्दवान जिले के बर्नपुर में स्थित सेल (सेल) सुविधा में लगभग 70 साल पुराने पांच हाइपरबोलिक कंक्रीट नेचुरल ड्राफ्ट कूलिंग टावरों को आज दोपहर 12:15 बजे ध्वस्त कर दिया गया. प्रत्येक टावर 72 मीटर ऊंचा और 30 से 48 मीटर व्यास का था.

विस्फोटक विधि से प्राथमिक विध्वंस

प्राथमिक विध्वंस के लिए सबसे सुरक्षित और लागत प्रभावी तरीका विस्फोटकों का नियंत्रित उपयोग था, जिसके माध्यम से संरचनात्मक ढांचे को सफलतापूर्वक गिराया गया. इसके बाद, हाइड्रोलिक विध्वंस उपकरणों से लैस उत्खननकर्ताओं का उपयोग करके द्वितीयक यांत्रिक विध्वंस किया जाएगा.

तकनीकी चुनौतियां और विशेषज्ञता

मुंबई की मेसर्स एडिफिस इंजीनियरिंग को इस परियोजना का ठेका दिया गया था, जिसमें दक्षिण अफ्रीका की विस्फोटक विध्वंस विशेषज्ञ मेसर्स जेट डिमोलिशन (पीटीवाई) लिमिटेड ने सहयोग किया. कूलिंग टावरों के संरचनात्मक चित्र उपलब्ध नहीं होने के कारण, साइट पर प्रत्यक्ष जांच करके मुख्य भौतिक विशेषताओं का निर्धारण किया गया. प्रारंभिक विध्वंस डिजाइन पिछले निरीक्षणों और अनुभवों के आधार पर तैयार किया गया था, लेकिन साइट पर अतिरिक्त जांच के बाद कुछ पहलुओं को संशोधित किया गया.

इन टावरों का निर्माण 1950 के दशक में ब्लास्ट फर्नेस की स्थापना के दौरान हुआ था और ये लगभग 70 साल पुराने थे. आसनसोल में सेल आइएसपी के विस्तारीकरण के लिए यह कदम उठाया गया.

ऐतिहासिक विध्वंस और नयी परियोजना की नींव

गौरतलब है कि सेल-आइएसपी के लिए 6 अप्रैल का दिन ऐतिहासिक रहा. इस दिन, जहां एक ऐतिहासिक निर्माण अतीत के पन्नों में दर्ज हो गया, वहीं एक नये अध्याय की नींव रखने का मार्ग भी प्रशस्त हो गया. आइएसपी में नयी परियोजना के विस्तार के लिए संयंत्र के अंदर स्थित सैकड़ों वर्ष पुराने 5 कूलिंग टावरों को ध्वस्त किया गया. विदेशी विशेषज्ञों की देखरेख में इन 5 कूलिंग टावरों को 6 अप्रैल को दोपहर 12:00 बजे से 12:45 बजे के बीच ध्वस्त किया गया. आइएसपी अपनी क्षमता को 2.5 मिलियन टन से बढ़ाकर 7 मिलियन टन करने के लिए लगभग 35,000 करोड़ रुपये की लागत से एक नई परियोजना स्थापित कर रहा है, जिसे पूरा होने में लगभग 5 वर्ष लगेंगे.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

इंटक के नेता श्रीकांत शाह ने इन कूलिंग टावरों के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इनका निर्माण 1911-1917 के आसपास हुआ था, जब सर बीरेन मुखोपाध्याय इंग्लैंड से स्टील फैक्ट्री बनाने की योजना लेकर लौटे थे और दामोदर की अनुमानित रूपरेखा तैयार की गयी थी. उनकी देखरेख में फैक्टरी का निर्माण कार्य शुरू हुआ और इसी दौरान इन पांच हाइपरबोलिक कूलिंग टावरों का निर्माण हुआ.

इनका मुख्य कार्य इस्पात उद्योग में उपयोग किए जाने वाले गर्म पानी को ठंडा करना था. श्री शाह ने कहा कि सदियों पुराने इन विशाल इंजीनियरिंग संरचनाओं से हमारा इतिहास, यादें और भावनाएं जुड़ी हुई हैं.

बिजली आपूर्ति बाधित

दशकों पुराने कूलिंग टावरों के विध्वंस कार्य के कारण, रिवरसाइड सबस्टेशन और रिवर बैंक सबस्टेशन के दोनों खंडों में सुबह 8:00 बजे से शाम 4:00 बजे तक, कुल 8 घंटे के लिए बिजली आपूर्ति बंद रही. इस वजह से, रविवार को रिवरसाइड टाउनशिप और रिवर बैंक टाउनशिप में 8 घंटे तक बिजली आपूर्ति बाधित रही. सेल-आईएसपी के टाउन सर्विस विभाग के अनुसार, रिवरसाइड टाउनशिप और रिवर बैंक सबस्टेशन में बिजली आपूर्ति शाम 4:00 बजे तक सामान्य कर दी गयी.

आधुनिकीकरण और लागत अनुकूलन

जनसंपर्क विभाग के अधिकारी भास्कर कुमार ने बताया कि सेल-आइएसपी के आधुनिकीकरण और विस्तार परियोजना के तहत 35,000 करोड़ रुपये की लागत से नये प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं. पुराने हाइपर कूलिंग टावरों को ध्वस्त कर उनके स्थान पर नये प्लांट का निर्माण किया जायेगा. उन्होंने बताया कि जगह की कमी और लागत को कम करने के उद्देश्य से इन कूलिंग टावरों को ध्वस्त किया गया है.

सुरक्षा उपाय

विध्वंस से पहले सुरक्षा अधिकारी, फायर ब्रिगेड और प्रशासन ने व्यापक स्तर पर अभ्यास किया था. पूरे इलाके की घेराबंदी कर दी गई थी और विदेशी विशेषज्ञ लगातार सभी पहलुओं की जांच कर रहे थे ताकि किसी भी प्रकार की क्षति या जनहानि से बचा जा सके.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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