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राष्ट्रीय हीरो को धर्म में संकीर्ण करना शर्मनाक
आसनसोल : काजी नजरूल यूनिवर्सिटी (केएनयू) के पूर्व कुलपति, पूर्व डीन सह अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सजल कुमार भट्टाचार्या ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के महानायक भगत सिंह ने कम उम्र में जितना बडा बलिदान दिया, उन्हें उतनी लोकप्रियता नहीं मिल पायी. भगत सिंह को किसी धर्म के साथ जोड़े जाने को उन्होंने सर्वथा […]
आसनसोल : काजी नजरूल यूनिवर्सिटी (केएनयू) के पूर्व कुलपति, पूर्व डीन सह अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सजल कुमार भट्टाचार्या ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के महानायक भगत सिंह ने कम उम्र में जितना बडा बलिदान दिया, उन्हें उतनी लोकप्रियता नहीं मिल पायी. भगत सिंह को किसी धर्म के साथ जोड़े जाने को उन्होंने सर्वथा अनुचित बताते हुए कहा कि वे भारतीय थे. उन्हें धर्म में बांधना सही नहीं है.
इसी यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ देबाशीष नंदी ने कहा कि सशस्त्र आंदोलन के समर्थक भगत सिंह देशसेवा को ईश्वर की सेवा के समान मानते थे. उन्होंने कहा कि इस दौर का युवा स्वार्थी और त्याग भाव से विमूख हैँ. भगत सिंह को किसी धर्म या समुदाय विशेष से जोड़े जाने या किसी राजनीति मंशा से उनके धर्मीकरण किये जाने को उन्होंने ओछी स्तर की राजनीति बतायी. उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रीय स्तर के नेता थे. उन्हें धार्मिक संकीर्णता में बांधना अनुचित है.
यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफेसर कुणाल देबनाथ ने कहा कि भगत सिंह ने स्वतंत्रता को अपना सर्वस्व माना था. वे इसके लिए किसी भी हद तक जाने को संकल्पित थे. वे धर्म को ज्यादा महत्व नहीं देकर कर्म को प्रधान मानते थे. उन्होंने भगत सिंह को धर्म विशेष से जोड़े जाने को अनुचित बताते हुए उन्हें राष्ट्रीय हीरो बताया. उन्होंने कहा कि उन्हें धर्म के दायरे में बांधने से उनकी ख्याति संकुचित हो जायेगी.
यूनिवर्सटी के हिंदी विभागाध्यक्ष सह कला संकाय के डीन डॉ बिजय कुमार भारती ने कहा कि भगत सिंह फ्रांस, आयरलेंड, रूस जैसे देशों के क्रांति आंदोलन से प्रेरित थे. इसलिए उनका रूझान समाजवादी विचारधारा की ओर था. वे धर्म को आजादी के आंदोलन के लिए कमजोर कड़ी मानते थे. भगत सिंह जैसे राष्ट्रभक्त व वीर सेनानी को किसी धर्म विशेष के साथ जोड़े जाने को उन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि भगत सिंह पूरे देश के हैँ. उन्हें किसी धर्म विशेष के बंधनों में संकीर्ण नहीं किया जा सकता है.
बीबी कॉलेज, आसनसोल के प्रिंसिपल डॉ अमिताभ बासू ने कहा कि जालियांवालाबाग कांड का भगत सिंह पर काफी असर पड़ा था. वे लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. धर्म को स्वतंत्रता संग्राम में बाधक मानते हुए उनकी विचारधारा में परिवर्तन हुआ था और वे नास्तिक बन गये थे. श्री बासू ने भगत सिंह को राष्ट्रीय यूथ आइकॉन बताते हुए उन्हें धार्मिक संकीर्णता में बांधने को अनुचित कदम बताया.
इसी कॉलेज के इतिहास विभाग के डॉ त्रिदिप संथापा कुंडू ने भगत सिंह को मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित बताया. उन्होंने कहा कि वे सशस्त्र आंदोलन के समर्थक होने के बावजूद किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाये बिना लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाना चाहते थे. भगत सिंह को किसी धर्म विशेष के साथ जोड़े जाने को अनुचित बताते हुए कहा कि भगत सिंह खुद को किसी धर्म में नहीं बांधना चाहते थे. इससे उनके राष्ट्रीय छवि को क्षति हो सकती है.
बीसी कॉलेज के प्रिंसिपल फाल्गुनी मुखर्जी ने कहा कि स्वाधीन भारत और विकसित भारत का स्वपन उन्होंने देखा था. भगत सिंह के धर्मीकरण के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि भगत सिंह धर्म पर विश्वास नहीं करते थे. उन्हें किसी धर्म विशेष के दायरे में बांधना उनके कद को छोटा करने के समान है. वे राष्ट्रीय हीरो हैं जो देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणा दायक बने रहेंगे.
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