सांकतोड़िया : सेवानिवृत्त कोलकर्मियों को गंभीर बीमारी के लिए इलाज कराने हेतु मेडिकल स्कीम के तहत सदस्य बनाया जा चुका है, पर अभी तक फंड संचालन के लिए कमेटी नहीं बन सकी. फंड में कर्मी की ओर से 40 हजार तथा प्रबंधन की ओर से 18 हजार रुपये जमा किये गये हैं. इस राशि से कंपनी गंभीर बीमारी के उपचार के लिए असीमित राशि प्रदान करेगा.
इसीएल समेत कोल इंडिया लिमिटेड की आठ अनुषांगिक कंपनी में कार्यरत कर्मियों के लिए मेडिकल स्कीम लागू हो चुकी है. जेबीसीसीआइ-10 की बैठक में इस मसले पर प्रमुखता से निर्णय लिया गया था. पहले कंपनी से सेवानिवृत्त हुए कर्मियों को अब तक प्राथमिक इलाज की ही व्यवस्था थी, पर गंभीर बीमारी के लिए कर्मियों को स्वयं के खर्च वहन करना पड़ता था. अफसरों की तरह कर्मियों को भी गंभीर बीमारी का इलाज कराने हेतु असीमित राशि खर्च करने पर प्रबंधन ने स्वीकृति जताते हुए स्कीम में 58 हजार रुपये जमा करने का प्रस्ताव रखा था. इसमें सेवानिवृत्तकर्मियों का अंशदान 40 तथा प्रबंधन की हिस्सेदारी 18 हजार रुपये थी.
मेडिकल स्कीम का सदस्य बनने के लिए 31 दिसंबर, 2017 की तिथि निर्धारित की गई थी.स्कीम का लाभ लेने अधिकांश रिटायर कर्मी सदस्य बनकर अपनी हिस्सेदारी की राशि जमा कर चुके हैं, पर अभी तक स्कीम का संचालन कैसे एवं किस तरह किया जायेगा, प्रबंधन यह तय नहीं कर सका है. श्रमिक नेताओं ने पहले ही स्कीम संचालन के लिए कमेटी या ट्रस्ट बनाने का प्रस्ताव रखा था. प्रबंधन ने इस मसले पर एपेक्स कमेटी या जेबीसीसीआइ की उपसमिति के समक्ष चर्चा करने कहा था.
स्टैंडराइजेशन कमेटी की बैठक दो बार आयोजित की गई, पर इस मसले पर कोई चर्चा नहीं हुई. छह माह से मामला पेंडिंग है और सेवानिवृत्त कर्मी इस योजना का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं. आगामी बैठक में इस प्रस्ताव पर प्रमुखता से निर्णय लिये जाने की संभावना है. सीआइएल ने सेवानिवृत्त कर्मियों को सामान्य बीमारी होने पर प्रतिवर्ष 25 हजार रुपये खर्च करने की भी सुविधा प्रदान की. इसके तहत पति-पत्नी दोनों को पृथक-पृथक राशि मिलेगी. साथ ही कंपनी के विभागीय चिकित्सालय में भी इलाज की छूट पहले की तरह मिलती रहेगी.
इस तरह सामान्य बीमारी में आठ हजार रुपये तक खर्च का भुगतान प्रबंधन करेगा. कोलकर्मियों के लिए शुरू की गई मेडिकल स्कीम की समीक्षा प्रत्येक वर्ष में की जायेगी,. अब तक मेडिकल स्कीम की कोई समीक्षा नहीं होती थी. इसकी वजह यह थी कि रिटायरमेंट के बाद कर्मियों को सिर्फ विभागीय चिकित्सालय में ही इलाज कराने की सुविधा थी, गंभीर बीमारी होने खर्च स्वयं वहन करना पड़ता था.