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और अधूरी ही रह गयी अप्पाजी की यह ख्वाहिश…गिरिजा ख्वाहिश

वाराणसी : काशी उनके दिल में बसती थी और वह चाहती थी कि यहां ऐसा संगीत का केंद्र बने जहां वह अंतिम समय तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देती रहें लेकिन ठुकरी की मल्लिका पद्मभूषण गिरिजा देवी की यह ख्वाहिश अधूरी ही रह गयी. बनारस घराने की मजबूत स्तंभ गिरिजा देवी ने कल रात कोलकाता […]

वाराणसी : काशी उनके दिल में बसती थी और वह चाहती थी कि यहां ऐसा संगीत का केंद्र बने जहां वह अंतिम समय तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देती रहें लेकिन ठुकरी की मल्लिका पद्मभूषण गिरिजा देवी की यह ख्वाहिश अधूरी ही रह गयी. बनारस घराने की मजबूत स्तंभ गिरिजा देवी ने कल रात कोलकाता में अंतिम सांस ली. वह कोलकाता में आईटीसी म्यूजिक रिसर्च अकादमी में फैकल्टी सदस्य थीं. उन्होंने कुछ अर्सा पहले भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा था कि अगर बनारस में संगीत अकादमी होती तो उन्हें शिव की नगरी छोड़कर जाना ही नहीं पड़ता. उन्होंने कहा था, मैं पिछले 50 साल से बनारस में संगीत अकादमी बनाने के लिये जमीन देने का अनुरोध कर रही हूं लेकिन किसी ने नहीं सुनी.

उन्होंने यह भी कहा था कि मेरी ख्वाहिश है कि संगीत को बेहतरीन नगीने देने वाले इस शहर में विश्व स्तरीय अकादमी हो जहां बनारसी संगीत को पीढ़ी दर पीढ़ी सौंपा जा सके. अपने शिष्यों और करीबियों के बीच अप्पाजी के नाम से जानी जाने वाली इस महान गायिका ने यह भी कहा था , अगर यहां ऐसी अकादमी होती तो मैं कोलकाता क्यों जाती. मशहूर शास्त्रीय गायक पंडित छन्नू लाल मिश्रा ने भी कहा कि उनके जीवित रहते उनकी यह इच्छा जरूर पूरी होनी चाहिए थी. उन्होंनेकहाकि गिरिजा देवी का बनारस से घनिष्ठ नाता था और कोलकाता में रहते हुए भी उनका मन यहीं बसा था. बनारस को वाकई ऐसी अकादमी की जरूरत है ताकि यहां का संगीत जीवित रहे.

उन्होंने इच्छा जतायी थी कि छात्र यहां रहकर बनारसी संगीत को समझे और महसूस करें. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में शास्त्रीय संगीत की प्रोफेसर डॉक्टर रेवती साकलकर ने कहा कि गिरिजा के बिना काशी सुनी हो गयी है. अप्पाजी से ठुमरी, दादरा, कजरी सीखने वाली साकलकर ने कहा , आज शिव की नगरी काशी गिरिजा : पार्वती का नाम : के बिना सुनी हो गयी. हम सभी कलाकार ऐसा महसूस कर रहे हैं मानो कोई सुर लगाना चाह रहे हैं और लग ही नहीं रहा. वह बनारस की ही नहीं बल्कि भारत की आन , बान और शान थीं. उन्होंने कहा, बनारस ने संगीत को बिस्मिल्लाह खान, बिरजू महाराज और गिरिजा देवी जैसे अनमोल नगीने दिये हैं. संगीत के इस गढ़ में ऐसी अकादमी होनी चाहिए कि यहां के संगीत की अलग अलग शैलियां पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहे.

वहीं मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की दत्तक पुत्री और शास्त्रीय गायिका सोमा घोष ने भी कहा कि अप्पाजी के रहते ऐसी अकादमी बन जानी चाहिए थी. उन्होंने कहा , अप्पाजी, मेरी गुरु मां बाघेश्वरी देवी की बडी बहन थीं और हम सभी के लिये पूजनीय थीं. अगर समय रहते यहां संगीत अकादमी बन गयी होती तो वह कोलकाता कभी जाती ही नहीं. घोष ने कहा, बनारस में संगीत के लिये कुछ नहीं बचा. कहां गई गुरु शिष्य परंपरा ? संगीत सीखने के इच्छुक बनारस के बच्चे आज दर दर भटक रहे हैं. बड़े कलाकार असुरक्षा में जी रहे हैं क्योंकि उन्हें कोई भविष्य नहीं दिखता.

हमने अप्पाजी को खो दिया जिनके पास देने के लिये इतना कुछ था कि सीखने में सात जन्म कम पड़ जाते. वाराणसी में संगीत अकादमी और संग्रहालय बनाने की मांग बरसों से की जा रही है. इसके अभाव में न तो कलाकारों की धरोहरें सुरक्षित हैं और न ही उनकी विरासत को अगली पीढी के सुपुर्द करने का कोई मंच है. पिछले दिनों बिस्मिल्लाह खान के घर से उनकी अनमोल शहनाइयां चोरी होना इसका जीवंत उदाहरण है.

मोना पार्थ सारथी से बातचीत पर आधारित

Prabhat Khabar Digital Desk
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